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श्रीलंका इतिहास की सबसे भीषण आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है
ज्योतिर्मय रॉय.
श्रीलंका (Sri Lanka) इतिहास की सबसे भीषण आर्थिक मंदी (Economic Crisis) के दौर से गुजर रहा है. श्रीलंका के पास कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा नहीं है. पिछले हफ्ते रेटिंग एजेंसी एस एंड पी (S&P) ने श्रीलंका की कर्ज रेटिंग को सीसीसी+ से घटाकर सीसीसी कर दिया है. श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के गवर्नर अजित निवार्ड कैबराल के अनुसार, 18 जनवरी को 50 करोड़ डॉलर के अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड मैच्योर हो जाएंगे. जिन देशों ने यह बॉन्ड खरीदा है, अब श्रीलंका सरकार को उन देशों को इतनी रकम चुकानी होगी, जिन्होंने उसके बॉन्ड खरीदे हैं.
लेकिन देश की विदेशी मुद्रा संकट को देखते हुए कारोबारी समुदाय, आर्थिक विश्लेषकों और विपक्षी राजनेताओं ने 2012 में जारी किए गए इन बॉन्डों के भुगतान को टालने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की सरकार से अपील की थी. उनका कहना है कि श्रीलंका के पास ईंधन, खाद्य पदार्थों, दवाओं, रसोई गैस, दूध के पाउडर आदि जैसी और अन्य दैनिक आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखने के लिए भी धन नहीं है. अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती देश के अंदर महंगाई के कारण फैल रही अराजकता को रोकना है, अन्यथा आर्थिक संकट के कारण श्रीलंका में गृहयुद्ध की आशंका है.
रेटिंग एजेंसी फिच के मुताबिक, श्रीलंका को कर्ज चुकाने के लिए अभी भी तीन अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा की जरूरत है. गौरतलब है कि पिछले दिसंबर में श्रीलंका ने चीन के साथ 1.5 अरब डॉलर की मुद्रा अदला-बदली (करेंसी स्वैप) की थी. कर्ज चुकाने के मामले में श्रीलंका का अब तक का रिकॉर्ड बेदाग रहा है. लेकिन घटते विदेशी मुद्रा भंडार के चलते अब इस रिकॉर्ड को बनाए रखना मुश्किल हो गया है.
संकट की घड़ी में भारत ने श्रीलंका के लिए दोस्ती का हाथ बढ़ाया
श्रीलंका के स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, भारत ने द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग को मजबूत करते हुए श्रीलंका को पेट्रोलियम उत्पादों को खरीदने के लिए 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी सहायता देने का वादा किया था. यह जानकारी श्रीलंका में भारत के उच्चायोग ने दी हे. उन्होंने अपने ट्वीट मे लिखा, "एक मित्र ने फिर से मदद के लिए हाथ बढ़ाया है. द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी को सक्रिय करते हुए, भारत ने पेट्रोलियम उत्पादों के लिए 50 करोड़ डॉलर के कर्ज का प्रस्ताव दिया है."
भारतीय उच्चायोग ने कहा है कि 15 जनवरी को भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे के बीच वर्चुअल बैठक के बाद भारत ने द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए श्रीलंका को विदेशी मुद्रा सहायता के रूप में 90 करोड़ डॉलर देने का वादा किया है. इसमें से 40 करोड़ डॉलर सार्क (SAARC) मुद्रा विनिमय समझौते के तहत दिए जाएंगे. भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, "भारत हमेशा श्रीलंका के साथ खड़ा रहा है और कोविड-19 महामारी के कारण हुई आर्थिक और अन्य समस्याओं से श्रीलंका को निकालने में हमेशा सहयोग करेगा."
सौभाग्य से, भारत ने सही समय पर श्रीलंका की मदद करने का फैसला किया, और श्रीलंका ने भारत की मदद से 18 तारीख को ही 50 करोड़ डॉलर के अंतरराष्ट्रीय सॉवरेन बॉन्ड का भुगतान कर दिया है. इसके साथ ही श्रीलंका फिलहाल विदेशी मुद्रा संकट से बचते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी छवि बनाए रखने में कामयाब रहा है. सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका के गवर्नर अजित कैब्राल ने ट्वीट कर बताया, ''श्रीलंका ने आज (18 जनवरी) परिपक्व होने वाले 50 करोड़ डॉलर के सॉवरेन बॉन्ड का भुगतान कर दिया है.'' अब एक अरब डॉलर का अगला बॉन्ड भुगतान जुलाई में बकाया है.
गृहयुद्ध में 40 हजार तमिल नागरिकों की अन्यायपूर्ण हत्या के लिए श्रीलंका से नाराज पश्चिमी देश
1983 और 2009 के बीच गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद, यह लगने लगा था की श्रीलंका में 21वीं सदी में सफल आर्थिक विकास के लिए एक रोल मॉडल बनने की क्षमता है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र की एक जांच समिति ने आरोप लगाया है कि गृहयुद्ध में एकतरफा जीत के लिए करीब 40 हजार तमिल नागरिकों को अन्यायपूर्ण तरीके से मारा गया.
नतीजतन, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और अधिकांश पश्चिमी देशों ने श्रीलंका को एक 'अछूत राज्य' बना दिया. गृहयुद्ध में जीत, वर्तमान प्रधान मंत्री और तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के शासन के दौरान हुई, जो वर्तमान राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई हैं. मध्य में एक कार्यकाल के लिए, महिंदा राजपक्षे को मैत्रीपाला सिरिसेना ने राष्ट्रपति चुनाव में हराया था.लेकिन उस समय श्रीलंकाई वोट की राजनीति, दलीय दबाव की प्रतियोगिता में बदल गई और अगला चुनाव राजपक्षे परिवार जीतकर सत्ता में लौट आया.
श्रीलंका में आर्थिक आपातकाल
एक साल से अधिक समय से श्रीलंका की अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है. देश में आयातित सामानों की बढ़ती कमी लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है. दैनिक आवश्यकताओं का संगठित भण्डार इतना मजबूत हो गया है कि दैनिक आवश्यकताओं की आपूर्ति में उत्पन्न होने वाले कृत्रिम संकट की निगरानी के लिए एक सैन्य जनरल के नेतृत्व में 'नागरिक आपूर्ति के नियंत्रक' नामक एक निगरानी एजेंसी की स्थापना के बाद भी, वर्तमान स्थिति को नियंत्रित करने में परेशानी हो रही है. कारों, सैनिटरी आइटम, कुछ इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के आयात पर सीधे प्रतिबंध लगा दिया गया है. श्रीलंका सरकार ने हाल ही में "आर्थिक आपातकाल" की स्थिति घोषित की है. देश कई महीनों से भयानक खाद्य संकट से जूझ रहा है.
अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की दर दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. श्रीलंकाई रुपये की विदेशी विनिमय दर कुछ दिन पहले 190 रुपये प्रति डॉलर थी, लेकिन पिछले एक महीने में यह बढ़कर 202 रुपये पार कर गया है. वर्तमान में, देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 1.5 बिलियन और 2.8 बिलियन डॉलर के बीच उतार-चढ़ाव होता है, जबकि श्रीलंका को अगले एक साल के भीतर लिए गए कर्ज पर ब्याज के तौर पर 6.3 अरब डॉलर चुकाने होंगे.
विशेषज्ञ का कहना है कि, कोरोना महामारी, विभिन्न परियोजनाओं के लिए विदेशों से उधार लेने की हड़बड़ी (विशेष कर चीन से) और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के रातों-रात कृषि क्षेत्र में "शत प्रतिशत जैविक खेती" शुरू करने के फैसला, वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार है. गोटाबाया ने देश के कृषिविदों और वैज्ञानिकों से परामर्श किए बिना, देश की कृषि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया. वैचारिक दृष्टि से 'जैविक खेती' की शुरुआत की घोषणा करना एक बात है, और इस पर अमल करना बड़ा कठिन हे. इसके लिए वैज्ञानिक तरीकों से विभिन्न स्थर पर लागू करने की आवशकता है. उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने भी इस फैसले को उचित महत्व नहीं दिया. नतीजतन, श्रीलंका के कृषि क्षेत्र को अभूतपूर्व फसल विफलता का सामना करना पड़ा और देश को खाद्यान्न की कमी से जूझना पर रहा है.. एक साल में खाद्यान्न उत्पादन घटकर एक चौथाई रह गया है.
दूसरी ओर, श्रीलंका में कोरोनावायरस महामारी ने श्रीलंका के महत्वपूर्ण विदेशी मुद्रा अर्जन क्षेत्र, पर्यटन क्षेत्र को लगभग नष्ट कर दिया है. पिछले दो वर्षों में, विश्व पर्यटन क्षेत्र उथल-पुथल की स्थिति में रहा है, जिससे बाहर निकलना अभी भी बहुत दूर है. इलायची और दालचीनी, श्रीलंका की निर्यात आय के दो अन्य प्रमुख स्रोत भी महामारियों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. इससे श्रीलंका की विदेशी आय घटा है. इसके साथ ही 2009 से विदेशी ऋण लेकर विभिन्न अनियोजित परियोजनाओं को शुरू करने की अंतिम कीमत अब चुका रहा है श्रीलंका.
'चीनी कर्ज' के जाल में फंसा श्रीलंका
श्रीलंका के बहुसंख्यक सिंहली, गृहयुद्ध को लेकर भारत से नाराज थे, जिसका फायदा उठाने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने चीन पर विश्वास किया. श्रीलंका की भू-राजनीतिक स्थिति के महत्व को देखते हुए, चीन ने हंबनटोटा में एक गहरे बंदरगाह और कोलंबो में बंदरगाह के पास एक चीनी शहर बनाने के लिए बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत आसान शर्तों पर श्रीलंका को परियोजना ऋण दिया. बाद में, जब हंबनटोटा गहरे समुद्र के बंदरगाह का निर्माण पूरा हुआ, तो यह पाया गया कि बंदरगाह के उपयोग की पर्याप्त मांग नहीं है.
बंदरगाह के राजस्व को बढ़ाने में बुरी तरह विफल होने के बाद, श्रीलंका को 99 साल के लिए इस बंदरगाह को चीन को पट्टे पर देने के लिए मजबूर होना पड़ा. कोलंबो में चल रहे चीनी शहर और कई हवाईअड्डा विस्तार परियोजनाएं एक समान स्थिति में हैं. इनमें से कोई भी परियोजना पर्याप्त आय उत्पन्न करने वाली परियोजना नहीं बनेगी क्योंकि उन्हें उचित 'परियोजना मूल्यांकन' पद्धति के साथ नहीं अपनाया नहीं गया है. इसलिए विशेषज्ञों का कहना है कि लालच के चलते श्रीलंका 'चीनी कर्ज' के जाल में फंस गया है. मामले को बदतर बनाने के लिए, श्रीलंका ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों से अरबों डॉलर ऐसे समय में जुटाए, जब सॉवरेन बांड 2022 में परिपक्व होने वाले थे. श्रीलंका के आर्थिक दिवालियेपन से सबक यह है कि जिस तरह से शाही परिवार ने वोट की राजनीति को "पारिवारिक तानाशाही" में बदल दिया है, वह एक समृद्ध अर्थव्यवस्था को भी गहरे संकट में डाल सकता है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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