सम्पादकीय

छिटका दें खुशियां दूसरों के दामन में

Gulabi
7 Jan 2022 12:10 PM GMT
छिटका दें खुशियां दूसरों के दामन में
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किसी के जीवन में तिनके का सहारा बन जाना कभी-कभी बड़ी जिम्मेदारी का बोध करा देता है
किसी के जीवन में तिनके का सहारा बन जाना कभी-कभी बड़ी जिम्मेदारी का बोध करा देता है,वैसे तो हमें अपने व्यस्त जीवन में दूसरों की मदद करने की फुर्सत ही नहीं होती पर यदि संकट की घड़ी में हम किसी का सहारा बन सकें ,उसका हौसला बनाए रख सकें तो ये मानवता की ओर उठने वाला हमारा पहला कदम होगा,अपने आस-पास हमें कितने ही लोग मिल जाते हैं जिनके लिए कुछ करने की चाह हमारे मन में होती है पर ये कर गुजरने की चाह अगले ही पल गायब भी हो जाती है, हम किसी की मदद कर सकें, इससे बढ़कर खुशी कुछ और नहीं हो सकती,दूसरे की मदद का सुकून आत्मसन्तोष प्रदान करता है, अन्तस के भाव स्वयं को खुशियॉ देने वाले हो जाते हैं, आइना भी हमारा चेहरा देखकर खुशियां प्रकट करता है.
प्रकृति हो या जानवर मानव की अपेक्षा दूसरों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाने में ज्यादा सक्रिय होते हैं. फल, फूल,अन्न,वायु,जल देकर प्रकृति सहज रुप से मानव का कल्याण करती है,दूध,दही से तृप्त मनुष्य कभी इन निरीह पशुओं का गुणगान नहीं करता ,संसार में मनुष्य ईश्वर की श्रेष्ठतम कृति हैं,शरीर से भी और बुद्धि से भी. उस प्रभु की अमूल्य देन है. मानव जीवन पाकर इसे परोपकार में लगाकर देखिए कितनी शान्ति मिलती है,अपने लिए जीते हुए किसी और का सहारा बनना मानवता की बहुत बड़ी सेवा है,फिर ये सेवा का भाव बस या ट्रेन में खड़ी महिला को सीट देने का हो, वृद्धों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का हो, सिसकते, मुरझाते बच्चों को शिक्षा देने का हो,गरीब की झोपड़ी का छप्पर सवांरने का हो या अबलाओं का सहारा बनने का.
निराश्रितों का आश्रय बनने का हो या गरीबों का हमदर्द बनने का, परोपकार के लिए बढ़ता हर कदम स्वयं की उन्नति का परिचायक है. मेरे एक सहयोगी हैं सदैव दूसरों की मदद करतें हैं,उनकी मदद करने के भाव को बन्द आंखों से भी पढ़ने की क्षमता उस व्यक्ति में है जो काफी समय से उनकी मदद ले रहा है,रेलवे स्टेशन के पास बैठा एक भिखारी गुप्ता जी के पदचाप से ही पहचान लेता था कि गुप्ता जी उसके पास से गुजर रहे है गुप्ता जी भी जेब में हाथ डालकर जो भी नोट हाथ में आता उस अन्धे भिखारी के कटोरे में डाल देते,आत्म सन्तोष की मुस्कान से प्रफुल्लित हो जाते,यही नहीं किसी भूखे को देखते तो होटल मे बिठा देते,होटल वाले से कहते भाई इसका पेट भर दे और घर के लिए भी दे देना,और इस तृप्ति का अहसास उन्हें अपने भरे पेट होने के जैसा होता.
कहीं किसी लाचारी के भाव को प्रकट करते जनमानस की भावनाएं आपको विचलित करें तो उसकी उस लाचारी को दूर करने का मन बना लीजिए. अन्न,वस्त्र का दान ही सर्वोत्तम मदद नहीं है यदि हम किसी के जीवन के कठिनतम समय में उसके साथ खड़े हैं तो भी हम अपना जीवन सार्थक कर सकते हैं. हर युग में असंख्य महान लोग दूसरे के लिए ही जीते आयें हैं,दूसरों आजादी के लिए,दूसरों खुशियों के लिए, दूसरों के जीवन को जिन्दगी देने के लिए हमेशा से लोगों ने अपनी जिन्दगियां कुर्बान की हैं आज भी कुछ लोग अपने जीते जी ही अपने अंगो का दान भी कर रहे हैं,उनके दिल में परमार्थ की इतनी भावना होती है कि वे अपने जीवन की परवाह ना करके अपने अंगो का दान करने जैसी कठिन प्रतिज्ञा भी कर लेते हैं कितना सहज लगता है उन्हें किसी के लिए कुछ भी करना पर ये सब स्वीकार करना कितना कठिन है.
सीमा पर शत्रु दल से जूझते सैनिक देशवासियों के लिए ही प्राणों को संकट में डालते हैं,प्रकृति की अनुपम छटा में प्रकृति के प्रहारों को सहन करते हुए हुए हमारी रक्षा के लिए ही तन-मन समर्पित कर देते हैं,छोटा सा फलदार वृक्ष भी हमें कुछ ना कुछ देने की प्रेरणा देता है,अपने छोटे-छोटे कार्यों द्वारा दूसरों के जीवन को मिठास से भर देने की काबलियत तो कम से कम हमारे अन्दर होनी ही चाहिये,दीपक की लौ की भॉति अंधियारे गलियारों में हम उजाला तो कर ही सकते हैं,सर्द रातों की सुखद नींद देने में ,भूख से बिलखते परिवारों को दो निवाले खिलाने में,सूनी आखॅो से विद्यालयों को निहारते बच्चों की पढ़ाई कराने में,विवश जिन्दगियों में खुशियां लाने में,उदास पगडंडियों पर चलते कदमों का साथ देने में, कहीं तो ,कुछ तो कर सके जो खुद को सन्तोष दे सकें,विभिन्न कविताओं में जीवन के दर्द को समेटे हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री महादेवी वर्मा जी सदैव दूसरों के सुख की ही कामना करती रहीं,कितने ही व्यक्तित्व दूसरों के लिए सांसे लेते रहे.
निपट,अल्हड़,अनपढ़ ही तो थी वो,जीवन की वास्तविकता से दूर, पति के ताने बोलियों व पिटाई से त्रस्त उसको घर का काम देकर उसकी मदद ही तो की थी,अचानक पति की मुत्यु से उसकी दुनिया उजड़ गयी, उसका सहारा बनी, उसने तो अपनी मां ही कह डाला मुझे. अपनी बेटियों की मां तो मैं हूं ही पर उसकी मां बनकर मुझे अच्छा लगा ऐसा महसूस हुआ उसकी मदद करके जीवन सार्थक हो गया. ऐसे ही जीवन से जब-तब उधार लेकर-देकर किसी के ऋणी हो जाइए आपका ऋण अपने आप चुकता हो जाएगा,आपके सद्गुण विकसित हो जाएंगें, आप अपने ही मीत हो जाएंगे,जिन्दगी सुहानी लगने लगेगी,ईश्वर की ये सृष्टि और भी खूबसूरत लगेगी.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रेखा गर्ग लेखक
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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