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- बसंत की आभासी दुनिया
कृष्ण कुमार रत्तू: बदलती हुई तकनीक की विज्ञान के रहस्य से भरी हुई इस सदी के इन दिनों में लगता है सब कुछ बदल गया है। शेष जो बचा है, वह बदलने की देहरी पर रुका हुआ है। जीवन की तमाम विसंगतियों से गुजरते हुए अभिव्यक्ति की वेदना को झेलते हुए जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे आम से खास आदमी की दुनिया बेहद बदल गई है। तकनीकी संचार प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के संजाल ने दुनिया की दशा, दिशा मनोभाव और मनोविज्ञान की तमाम चीजों को बदल दिया है। इन दिनों हमारे गांव शहरों में तब्दील हो रहे हैं और शहर भीड़ के रेले में। यही है वर्तमान की जिंदगी का बचा हुआ सच और थके हुए आदमी का जिंदगी जीने का नजरिया और चेहरा।
बदलते वातावरण के वीतराग में जिस तरह की मौसमी तब्दीलियां और परिस्थितियां हमारे जीवन को प्रभावित करने लगी हैं। कुछ वर्ष तक पहले ऐसा नहीं था। एक सादा जीवन एक सहज नदी के पानी की तरह चलता जाता था, पर अब विज्ञान उपभोक्ता और तकनीक संचार की नई चकाचौंध संवेदनाओं पर हावी हो चुकी है। हमारा खान-पान, व्यवहार, आचार और पहनावा, सब कुछ बदल गया है । हमारे मौसम भी इतने बेगाने हो गए लगते हैं कि अब पक्षी भी पहचान से बच रहे हैं। हमारे घरों की मुंडेरे खाली हैं और आंगन सूने उदास शोक गीतों से भरने लगे हैं।
इन दिनों बसंत के इस मौसम में बसंत शायद रूठ गया है हमसे। बसंत पर साहित्य के कितने रूप दिखाई देते हैं। विशेषकर हिंदी साहित्य में नागार्जुन, निराला, पंत और केदारनाथ अग्रवाल की कविताओं में बसंत की जो महिमा है, उसका बखान उनको पढ़ते हुए बस महसूस किया जा सकता है, पर धरती की रूठी हुई बसंत का अब कैसे सामना किया जाए।
तकनीकी आभासी दुनिया में सब कुछ टेलीविजन या फिर मोबाइल के स्क्रीन तक सिमट गया है। ऐसा लगता है मानो भविष्य में मौसम भी शायद टेलीविजन की स्क्रीन पर ही रंग-बिरंगे अच्छे लगेंगे, पर जिंदगी बेरंग और नीरस होती जाएगी, क्योंकि यह कुछ पलों के लिए देखने की ही चीज है। जबकि धरती पर उतरे बसंत की अनुभूति जिंदगी को खुशबू से भर देता है। केदारनाथ अग्रवाल ने शायद इसीलिए लिखा था- 'अनोखी हवा हूं ,बड़ी बावली हूं… जिधर चाहती हूं, उधर घूमती हो मुसाफिर हूं।'
इस तरह की हवा का इंतजार अब कौन करता है। अब सब कुछ आभासी दुनिया का एक संसार बन गया है और यह इतना निराशामय और उदासी से भरा हुआ कि मोबाइल के बंद होते ही इस आभासी दुनिया का मायाजाल और माया लोक खत्म हो जाता है। जबकि प्रकृति की बसंत का उफान बसंती हवा के मौसम के साथ आदमी को तरोताजा और जिंदगी जीने का एक नया नजरिया प्रदान करता है।
कभी बसंत को प्रकृति और ऋतुओं का राजा माना जाता था। गुनगुनी धूप, बदलता मौसम और खुशबू से भरी हुई ताजगी वाली हवा का क्या नाम रखें! हमारी नई पीढ़ी जो कमरों से बाहर ही नहीं निकलती, वह इस हवा की महक से किस तरह मुखातिब होगी! ऐसा लगता है कि आने वाले वक्त में यह जिंदगी आभासी या सिर्फ स्क्रीन की जिंदगी हो जाएगी।
हम सोच सकते हैं कि कितनी समस्याएं और बदलते मनोविज्ञान में किस तरह की नस्ल हम भविष्य के लिए छोड़ कर जाने वाले हैं। यह सच है कि आज विज्ञान की दुनिया में तकनीक के बिना कुछ भी नहीं चल सकता है और नई दुनिया के लिए यह अति आवश्यक है। पर साहित्य और शब्दों की दुनिया में धरती पर घटा हुआ बसंत का मायालोक खुद महसूस करने की जरूरत है। हवा आप को छूकर आपकी नई जिंदगी को खुशबू से भर देगी। आपके एहसास और मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित होकर एक नई दुनिया में ले जाएंगे और वह दुनिया ताजगी और नए सोच-विचार की दुनिया होगी। लेकिन आभासी दुनिया में यह सब कुछ बिल्कुल असंभव है।
अभी भी समय है कि हम आभासी दुनिया को वहां तक सीमित रखें, जहां तक तकनीक के जरिए कुछ करना है। हमारे शब्द बेहद उदास हैं इन दिनों और हवा बिल्कुल सांस लेने के काबिल नहीं रही। हमने अपना जल, जंगल, जमीन जब सब नष्ट कर दिया है। लेकिन बसंत का मौसम आ गया है। अब एक नई जिंदगी की शुरुआत का वक्त है।
तकनीक की जिंदगी के साथ साथ आभासी दुनिया को उतना ही देखने की जरूरत है, जहां तक उसकी आवश्यकता है। अपनी विरासत और शब्दों की लहर में नई हवा के साथ नए जीवन का सृजन करते बसंत का नए अर्थों में नए सृजन के साथ स्वागत करने की जरूरत है, क्योंकि जिंदगी की नई हवा इन मौसमों की ताजगी के साथ ही उड़ान भरने का रास्ता देती है। प्रकृति की इस खुशबू से भरी हुई दुनिया में आभासी दुनिया का एक चित्र देख लिया जाए, बस यही काफी है। असली दुनिया प्रकृति और धरती की गोद में है, हम शायद यह भूल जाते हैं!