सम्पादकीय

खेलप्रेमियों के लिए 'लाभार्थी योजना' से भारत में खेलों का ना हो जाए 'खेल'?

Rani Sahu
19 May 2022 4:49 PM GMT
खेलप्रेमियों के लिए लाभार्थी योजना से भारत में खेलों का ना हो जाए खेल?
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अभी एक हफ्ते भी नहीं हुए हैं कि जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टिंग अनिवार्य शेयरिंग एक्ट के दायरे को बढ़ाते हुए स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टिंग अनिवार्य शेयरिंग एक्ट में बदलाव किया

विमल कुमार

अभी एक हफ्ते भी नहीं हुए हैं कि जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टिंग अनिवार्य शेयरिंग एक्ट के दायरे को बढ़ाते हुए स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टिंग अनिवार्य शेयरिंग एक्ट में बदलाव किया. ज़्यादातर लोगों और जानकारों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया और माना कि कई मायनों में यह खेलप्रेमियों के लिए 'लाभार्थी योजना' की ही तरह है. चूंकि, अब प्राइवेट स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टर्स (स्टार स्पोर्ट्स, सोनी नेटवर्क, यूरो स्पोर्ट्स) को भारत की पुरुष और महिला क्रिकेट टीम के सभी मैच (वनडे, टी20, टेस्ट) पब्लिक ब्रॉडकास्टर यानि कि प्रसार भारती के साथ शेयर करने होंगे तो अब ये सभी मैच डीडी स्पोर्ट्स पर लाइव टेलीकास्ट होंगे. इसमें आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के सेमीफाइनल और फाइनल शेयर, पुरुष और महिला एशिया कप (वनडे-टी20) के सेमीफाइनल और फाइनल, अंडर-19 वर्ल्ड कप के मैचों में भारत शामिल होगा, उसे भी शेयर करना शामिल होगा.
इतना ही नहीं सभी ओलंपिक, हॉकी जूनियर वर्ल्ड कप (अगर भारत मेजबान है), हॉकी के वर्ल्ड कप और चैंपियंस ट्राफी के वो सभी मैच जिसमें भारतीय टीम खेलेगी और बैडमिंटन में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के वो सभी मैच जिसमें भारतीय खेलेंगे, उन्हें भी डीडी स्पोर्ट्स पर दिखाए जाएगा. महिला एशियन फुटबॉल कप और भारत में होने वाले अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप, फीफा वर्ल्ड कप के ओपनिंग, सेमीफाइनल और फाइनल मैच, टेनिस के डेविस कप और ग्रैंडस्लैम के मेंस और वुमेंस फाइनल मैच या फिर क्वार्टर फाइनल के बाद वो सभी मैच जिसमें भारतीय खिलाड़ी खेलेंगे. इसके अलावा मान्यता प्राप्त नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन द्वारा आयोजित इंटरनेशनल इवेंट्स, जो भारत में होंगे, वे भी डीडी स्पोर्ट्स को भी अनिवार्य शेयरिंग एक्ट में लाया गया है. इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार के इस फैसले से ग्रामीण इलाकों में या फिर ऐसे खेल प्रेमी जिनके पास पे-टीवी वाले चैनल्स देखने की सुविधा नहीं है उनके लिए ये एक बड़ी खुशखबरी है.
दरअसल, मार्च 2021 में जारी की गई अधिसूचना में सभी ओलंपिक खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों को नेशनल इंपार्टेंस इवेंट के रूप में घोषित किया गया था और अब उसका दायरा बहुत ज़्यादा बढ़ा दिया गया है. लेकिन, इस लाभार्थी योजना में सरकार का एक पैसा खर्च नहीं होगा क्योंकि दूरदर्शन तो कभी भी अरबों रुपयों में बिकने वाले राइट्स खरीदने के लिए सामने नहीं आता है. ऐसा निजी ब्रॉडकास्टर करते हैं जिसके चलते वो ना सिर्फ अपनी कमाई करते हैं बल्कि हर खेंलो का विकास भी होता है और हर फेडरेशन को इसका पेशवर लाभ भी मिलता है. यही वजह है कि ज़मीनी स्तर कोचिंग से लेकर सुविधाओं को लेकर पैसा पहुंचता है. आप बीसीसीआई के कामयाब मॉडल को देखें तो क्रिकेट की कामयाबी की सबसे बड़ी वजह उसके टीवी राइट्स का मुंहमागी कीमत पर बिकना है. और टीवी राइट्स से होने वाली कमाई के चलते ही बीसीसीआई बेइंतहा संसाधन वाली संस्था बनी है जिसकी राह पर फुटबॉल, बैडमिंटन, टेनिस , हॉकी और तमाम खेल चलने की कोशिश कर रहे हैं आदर्श स्थिति में तो हर खेलों का प्रसारण देश के हर नागरिक के पास मुफ्त में पहुंचना चाहिए क्योंकि इससे उस खेल का विकास होगा और उसकी लोकप्रियता बढ़ेगी.
लेकिन, यहां भी तो संतुलन वाला नज़रिया अपनाये जाने की ज़रुरत है. अगर निजी खेल चैनलों की करोड़ों की कमाई से मिलने वाली राइट्स को ज़बरदस्ती और वो भी बिना किसी लाभ के दूरदर्शन के साथ साझा करना पड़े तो भला कोई भी चैनल करोड़ों रुपये राइट्स लेने में खर्च क्यों करेगा. तर्क ये भी दिया जा सकता है कि अगर दूरदर्शन खेल-प्रेमियों के हित में इतना गंभीर है तो वो ओलंपिक और क्रिकेट के राइट्स के लिए खुद क्यों नहीं मैदना में उतरते हैं? इंग्लैंड में बीबीसी जो कि सरकार की फंडिग से चलती है वो भी खेलों के राइट्स के लिए पैसे खर्च करती है. बिल्कुल मुफ्त में उन्हें भी कुछ नहीं मिलता है. इस लेखक ने कई खेल-चैनलों के शीर्ष अधिकारियों से बात की और उन सभी का मानना ये है कि सरकार के इस फैसले से खेलों का खेल बिगड़ने की संभावना ज़्यादा है.
स्टार टीवी आज भारत में दिखाये जाने वाले मैचों में कमाई नहीं कर पाता है. पिछले 5 सालों में आईपीएल के राइट्स से भी स्टार बस किसी तरह से पैसा वसूल करने में ही कामयाब रहा है. और अगर भविष्य में आईपीएल के मैचों को भी इसी तरह से राष्ट्रीय अहमियत वाले खेलों का दर्जा दिया जाए तो कौन चैनल 50 हज़ार करोड़ खर्च करके इसके राइट्स खरीदना चाहेगा? और अगर राइट्स की मुंहमागी कीमतें नहीं मिलती है तो बीसीसीआई खिलाड़ियों को इतने पैसे कहां से देगा? कहने का मतलब ये है कि पूरा इको-सिस्टम ही हिल सकता है. निजी चैनलों के पेशेवर रवैये से कबड्डी जैसे खेल को भी कितना लोकप्रिय और कमाई वाला बना दिया गया है, अपने आप में एक बड़ी केस स्टडी है. पिछले 7 दशक तक दूरदर्शन ने तमाम संसाधनों के रहने के बावजूद ऐसे खेलों को प्रोत्साहित करने या फिर युवाओं के बीच आकर्षक बनाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टिंग अनिवार्य फीड शेयरिंग के लिए 'राष्ट्रीय अहमियत वाले खेल-आयोजन' की दलील दी है लेकिन सवाल तो यही है कि आखिर राष्ट्रीय अहमियत वाले खेल को परिभाषित कैसे किया जायेगा?अगर निजी चैनल ज़बरदस्ती फीड शेयर करने वाले इस एक्ट के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटातें है तो फिर इसका नुकसान कौन सहेगा? अंत्तराष्ट्रीय इवेंट और राष्ट्रीय इवेंट को भी परिभाषित करने के समय कुश्ती, मुक्केबाज़ी एथलेटिक्स, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल समेत कई लोकप्रिय खेलों को क्यों छोड़ दिया? हास्यास्पद बात ये है कि इंदिरा गांधी गोल्ड कप हॉकी जिसका आयोजन आखिरी बार 2005 में हुआ था वो भी राष्ट्रीय अहमियत वाले खेलों में शुमार है और ये दिखाता है कि अफसरशाहों ने कितनी गंभीरता से इस प्रस्ताव केस बारे में सोचा है.अफसरशाहों ने ना तो खेल- संस्थाओं के कोई विचार-विमर्श किया और ना ही उन्हें इस बात की ठोस जानकारी है कि आखिर सही मायनों में राष्ट्रीय अहमियत वाले खेल दरअसल कौन कौन हैं.
दरअसल, दूरदर्शन को निजी चैनल के मैच बिना एक पैसे खर्च किये 25 फीसदी रेवेन्यू कमाने की आदत पड़ गयी है और वो एक बार फिर से क्रिकेट से अपना फायदा उठाना चाहते हैं. वरना क्या वजह है कि आकाशवाणी चैनल्स पर दूरदर्शन की फीड देखते हुए कामेंट्री की जाती है? खेल-चैनलों की ये दलील है कि टीवी राइट्स एक तरह से भूमि-अधिग्रहण नियम की ही तरह है. अगर उस तर्क पर चला जाए तो दूरदर्शन को निजी चैनल की फीड लेकर खुद कमाई करना बिलकुल न्यायसंगत नहीं है. इसके चलते पिछले एक दशक में स्टार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उन्हें दूरदर्शन की मनमानी को रोकने में कामयाबी भी काफी हद तक मिली. कुछ दशक पहले तक दूरदर्शन के पास डेविस कप के राइट्स हुआ करते थे लेकिन वो उसे दिखाने की कोशिश भी नहीं करता था. 1993 से पहले क्रिकेट मैचों के प्रसारण के लिए बीसीसीआई को दूरदर्शन को फीस देनी पड़ती थी और गुज़ारिश करनी पड़ती थी किसी तरह से मैच डीडी पर दिखा दियें जाए.
आखिर में एक बात और, जब 2007 में पहली बार सरकार ने राष्ट्रीय अहमियत वाले खेलों की दलील दी थी तो उस वक्त दूरदर्शन टेररेसट्रिअल की पहुंच 90 फीसदी घरों में थी और केवल नेटवर्क की महज 10 फीसदी. लेकिन, आज केबल नेटवर्क करीब 98 फीसदी घरों में पहुंच चुका है जबकि दरदर्शन की टेररेसट्रिअल पहुंच कम हो गई है. ऐसे में अगर दूरदर्शन की सबसे ज़्यादा लोगों तक पहुंचने का तर्क पूरी तरह से गले से नहीं उतरता है.
Rani Sahu

Rani Sahu

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