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- जीत का जज्बा
Written by जनसत्ता; यह बात इस बार के फीफा विश्वकप में अर्जेंटीना के लियोनेल मेस्सी ने साबित कर दिखाया। वे अपनी टीम के साथ विश्व कप जीतने के संकल्प के साथ ही पहुंचे थे। हालांकि हर टीम जीतने के इरादे के साथ ही खेल के मैदान में उतरती है और उसके लिए अपनी सारी ताकत झोंक देती है। मगर मेस्सी ने विश्वकप शुरू होने से पहले ही एक तरह से संकेत दे दिया था कि इस बार की प्रतिस्पर्धा उनके लिए प्रतिष्ठा से जुड़ी है।
विश्वकप से संन्यास की घोषणा भी उन्होंने पहले ही कर दी थी। इसलिए दुनिया भर के खेल प्रेमियों की भावना उनसे जुड़ गई थी। सब यही चाहते थे कि मेस्सी की टीम जीते और वे एक शानदार पारी खेल कर विदा हों। मगर अर्जेंटीना के सामने फ्रांस की टीम एक बड़ी चुनौती थी।
वह पिछली बार की विश्वकप विजेता थी और उसने दुबारा यह खिताब अपने नाम करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। उसके खिलाड़ियों ने अपनी रणनीतिक कुशलता से अर्जेंटीना के लिए हर कदम पर मुश्किलें खड़ी की। मगर मेस्सी की नेतृत्व कुशलता की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी टीम का मनोबल कमजोर नहीं होने दिया और एक तरह से हारती हुई बाजी अपनी मुट्ठी में कर ली।
निस्संदेह मेस्सी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फुटबाल खिलाड़ियों में हैं। उन्होंने फुटबाल के खेल में कई कीर्तिमान बनाए हैं। सात बार वर्ष के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रह चुके हैं। मगर उन्हें इस बात का मलाल जीवन में बना हुआ था कि वे अपने देश को विश्वकप नहीं दिला सके। इसी टीस ने शायद उनमें इस बार का विश्वकप जीतने का जज्बा भरा था और आखिरकार वे अपनी कप्तानी में अर्जेंटीना को छत्तीस साल बाद विश्वकप दिलाने में कामयाब हुए। पेले और डिएगो माराडोना के बाद वे पहले ऐसे फुटबाल खिलाड़ी हैं, जिनका जादू पूरी दुनिया के खेल प्रेमियों के सिर चढ़ कर बोला।
उनके हर गोल पर जश्न मना। वर्षों से मेस्सी की तुलना अर्जेंटीना के फुटबाल खिलाड़ी माराडोना से की जा रही थी कि दोनों में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी कौन है। हालांकि दोनों के खेलने के अपने अंदाज रहे हैं, मगर माराडोना के साथ एक कीर्तिमान यह जुड़ा हुआ था कि उनकी कप्तानी में अर्जेंटीना ने विश्वकप जीता था। फिर यह भी कहा जाता था कि माराडोना देश के लिए ज्यादा जज्बे के साथ खेलते थे और मेस्सी बार्सीलोना के क्लब के लिए। जबकि मेस्सी के पास माराडोना से कहीं अधिक उपलब्धियां हैं।
हालांकि किसी भी खेल में जीत-हार का फैसला खिलाड़ियों के प्रदर्शन से होता है, मगर जब किसी टीम के साथ दुनिया के खेल प्रेमियों की भावनाएं जुड़ जाती हैं, तो उस पर स्वाभाविक रूप से नैतिक दबाव बढ़ जाता है। अर्जेंटीना के साथ भी यही हुआ। वह न केवल इस नैतिक दबाव के साथ मैदान में उतरी थी कि उसे अपने कप्तान को शानदार तोहफा देकर विदा करना था, बल्कि दुनिया भर के फुटबाल प्रेमियों के भरोसे पर भी खरा उतरना था।
इसमें वह कामयाब हुई। खेल का रोमांच अंत तक बना रहा। आखिरकार फैसला पेनल्टी शूटआउट से हुआ, जिसमें मेस्सी ने अपने कौशल का प्रदर्शन किया। इस जीत से मेस्सी निस्संदेह दुनिया के फुटबाल इतिहास में जीवित किंवदंती बन गए हैं और इस तरह वह बहस भी समाप्त हो गई है कि माराडोना और उनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी है।