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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध बढ़ता चला जा रहा है
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध बढ़ता चला जा रहा है और अब तो नाटो देशों की दहलीज पर रूस धमाके करने लगा है। रूस का हठ है कि यूक्रेन जल्दी से जल्दी झुक जाए और यूक्रेन सहित अन्य देशों की कोशिश है कि रूस तत्काल युद्ध को रोके। चिंता इस खबर से भी बढ़ गई है कि रूस ने चीन से मदद मांगी है। एक युद्धरत देश को पैसे की भी जरूरत होती है और हथियार या तकनीकी मदद की भी। अमेरिका का दावा है कि रूस ने चीन से एक खास उपकरण की मांग भी की है। हालांकि, यह उपकरण पर्याप्त मात्रा में चीन के पास नहीं है। क्या चीन आगे बढ़कर रूस की मदद करेगा? अभी जो स्थिति है, उसमें चीन कूटनीतिक रूप से रूस की मदद कर रहा है, लेकिन अगर वह सैन्य मदद के लिए भी आगे आता है, तो यह युद्ध और गंभीर हो जाएगा।
रूस की जरूरत अभी खुलकर सामने नहीं आई है, लेकिन देर-सबेर उसे मदद की जरूरत पड़ेगी और उसे चीन से ही सर्वाधिक उम्मीद रहेगी। विगत वर्षों में रूस और चीन के बीच घनिष्ठता बहुत बढ़ गई है। दोनों एक-दूसरे की सुरक्षा के लिए अगर आगे आ जाएं, तो आश्चर्य नहीं। हालांकि, चीन के लिए यह आसान नहीं है। जिस प्रकार से रूस पर प्रतिबंध लगे हैं, उसमें कोई भी देश खुलकर उसकी मदद की स्थिति में नहीं है और छिपकर मदद करना भी आसान नहीं है। अमेरिका कड़ी निगाह रखे हुए है, अत: चीन को अपना अगला कदम काफी सोच-विचारकर उठाना होगा। जब अमेरिका और यूरोप के साथ संबंध चीन की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं, तब वह अपने एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार रूस का समर्थन कैसे कर सकता है? वैसे अमेरिका और यूरोपीय देशों को यह शंका है कि चीन द्विपक्षीय संधि के तहत रूस की तकनीकी मदद कर सकता है। विशेषज्ञ यहां तक कहते हैं कि चीन के लिए यूरोपीय संघ के साथ आर्थिक संबंध रूस के मुकाबले कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। फिर भी अगर चीन युद्ध में उतरता है, तो करीब 1,200 अमेरिकी सैनिक तैयार खड़े हैं। जहां रूस के हमले तेज होते जा रहे हैं, वहीं अमेरिकी बेचैनी भी बढ़ती चली जा रही है। ऐसे में, किसी भी तीसरे देश का रूस की मदद के लिए उतरना भयावह रूप ले लेगा।
बहरहाल, चीन पूरी सावधानी के साथ चल रहा है। उसे दोस्त की भी परवाह है और दुनिया की भी। चीन ने अमेरिका, यूरोप और अन्य पश्चिमी सहयोगियों के साथ-साथ जापान व ताइवान जैसी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं द्वारा प्रतिबंधों के बावजूद रूस और यूक्रेन, दोनों के साथ सामान्य व्यापार बनाए रखने का वादा किया है। क्रीमिया पर रूस के आक्रमण के बाद साल 2014 में दोनों देशों ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया है। भारत की चिंता कुछ अलग है। रूस पर हमारी निर्भरता जगजाहिर है। युद्ध बढ़ने की स्थिति में भारत को सैन्य के अलावा आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचेगा। यह हर तरह से हमारे हित में है कि युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो। हम अपने सभी इच्छुक छात्रों को वापस ले आए हैं, लेकिन हमारी चुनौतियां बरकरार हैं। हमें विकल्प की तलाश करनी चाहिए, क्योंकि आने वाले समय में मुमकिन है कि रूस मदद करने की स्थिति में नहीं हो। जाहिर है, घरेलू स्तर पर बड़े पैमाने पर रक्षा में निवेश करना होगा। ऐसे निवेश से भारत में रोजगार को भी बल मिलेगा और हमारी सैन्य ताकत भी बढ़ेगी। अगर हम समय के साथ चलें, तो यह वैश्विक आपदा भी खुद को मजबूत करने का अवसर ही है।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान
Tagsspeed up the war

Rani Sahu
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