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चुनाव आयोग ने सरकार को टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने का सुझाव देकर अपनी मंशा साफ कर दी है। आयोग का मानना है कि चुनाव न टाले जाएं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द टीके लगाए जाएं।
चुनाव आयोग ने सरकार को टीकाकरण की रफ्तार बढ़ाने का सुझाव देकर अपनी मंशा साफ कर दी है। आयोग का मानना है कि चुनाव न टाले जाएं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल्द टीके लगाए जाएं। आयोग का सुझाव इस लिहाज से उचित ही है कि इस दबाव में ही टीकाकरण का काम जोर पकड़ सकता है। आने वाले महीनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा होने हैं।
इस वक्त देश में कोरोना के साथ ओमीक्रान के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। तीसरी लहर का खतरा सामने है। महामारी विशेषज्ञ जनवरी-फरवरी में ही एक-डेढ़ लाख मामले रोजाना आने का अंदेशा जता रहे हैं। ऐसे में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां चुनावी सभाओं और रैलियों में बढ़ती भीड़ बड़े खतरे की ओर इशारा कर रही है। इन सभाओं में मास्क और सुरक्षित दूरी जैसे कोरोनोचित व्यवहार के नियमों की धज्जियां उड़ रही हैं। पर किसी भी राजनीतिक दल या रैली-सभा में शिरकत करने वाले को इसकी चिंता नहीं है। यह एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इस खतरे को देखते हुए ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ समय के लिए चुनाव टालने की बात कही थी।
गौरतलब है कि इस साल मार्च-अप्रैल में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु सहित पांच राज्यों में विधानसभा हुए थे। उस दौरान चुनावी प्रचार और रैलियों में उमड़ी भीड़ को लेकर सवाल उठे थे। यही वह समय था जब महामारी की दूसरी लहर का कहर बरपा था। तब कहा गया था कि हालात को देखते हुए कुछ समय के लिए चुनाव टालना बेहतर होता। चिकित्सकों और महामारी विशेषज्ञों का कहना था कि चुनावी रैलियों में पहुंचने वाली भीड़ संक्रमण का बड़ा कारण बन सकती है। चुनाव के बाद संक्रमण के मामले बढ़े भी थे।
इसी तरह उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के दौरान भी कोरोना महामारी के खतरे को नजरअंदाज किया गया और इसी का नतीजा था कि चुनावी ड्यूटी में तैनात कई शिक्षकों और कर्मचारियों की संक्रमण से मौत होने की खबरें आर्इं। इसीलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मौजूदा हालात को देखते हुए चुनाव टालने का सुझाव दिया है। हालांकि चुनाव टालने से कई दूसरी समस्याएं भी खड़ी हो जाती हैं। ऐसे राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ता है और फिर चुनावी तैयारी नए सिरे से करना पड़ सकती है। इसलिए आयोग चाह रहा है कि टीकाकरण का काम तेजी से हो, ताकि जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीके लग जाएं। इससे संक्रमण फैलने का का खतरा कम हो सकता है।
कुछ राज्यों में टीकाकरण का काम संतोषजनक रहा है, जबकि कई राज्य अभी भी लक्ष्य से पीछे चल रहे हैं। गोवा और उत्तराखंड में सौ फीसद लोगों और उत्तर प्रदेश में साठ फीसद लोगों को पहली खुराक लगा दिए जाने का दावा किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में अभी बयालीस फीसद लोगों को दोनों खुराक लगी हैं। मणिपुर में यह आंकड़ा अस्सी फीसद से नीचे है। इसलिए अब चुनौती इस बात की है कि चुनाव से पहले सारी आबादी खासतौर से वयस्क आबादी का टीकाकरण पूरा हो जाए। और बात सिर्फ टीकाकरण तक ही सीमित नहीं है। यह भी देखने में आ रहा है कि एक या दो खुराक लेने वाले भी फिर से संक्रमण की चपेट में आ जा रहे हैं। ऐसे में टीका लगवाने के बाद भी बचाव का एकमात्र रास्ता यही रह जाता है कि भीड़ में जाने से बचा जाए और कोरोनोचित व्यवहार का पालन हो। पर चुनावी सभाओं में ऐसा नजर कहां आ रहा है!
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