सम्पादकीय

भाषण, जो मैंने दिया होता!

Subhi
7 Aug 2022 10:42 AM GMT
भाषण, जो मैंने दिया होता!
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सभापति महोदय, यह चर्चा कई दिन पहले हो जानी चाहिए थी। मैं यह समझ नहीं पाया हूं कि नियम 267 और अन्य नियमों के तहत होने वाली किसी चर्चा में असल फर्क क्या है।

पी. चिदंबरम: सभापति महोदय, यह चर्चा कई दिन पहले हो जानी चाहिए थी। मैं यह समझ नहीं पाया हूं कि नियम 267 और अन्य नियमों के तहत होने वाली किसी चर्चा में असल फर्क क्या है। सरकार जिद पर अड़ी रही, लोग इसे इसका कारण अहंकार बताते रहे।

बढ़ती कीमतों पर चर्चा की अनुमति दें। यह चर्चा अर्थव्यवस्था की हालत को लेकर नहीं है। अगर ऐसा होता, तो कुख्यात नोटबंदी के समय से ही इस सरकार के आर्थिक प्रबंधन, बल्कि कुप्रबंधन पर कहने के लिए हमारे पास सैकड़ों चीजें थीं।

कीमतें बढ़ रही हैं। बढ़ते दामों ने लोगों को बेहाल कर दिया है, खासतौर से गरीब और मध्यवर्ग को। खपत और बचत गिर गई हैं, घरेलू कर्ज बढ़ता जा रहा है और कुपोषण (खासतौर से महिलाओं और बच्चों में) बढ़ा है। दुखद है, सरकार इन तथ्यों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।

कल माननीय वित्तमंत्री को दूसरे सदन में यह कहते हुए सुन कर मैं दंग रह गया कि वस्तु एवं सेवा करों (जीएसटी) में वृद्धि से लोगों पर कोई असर नहीं पड़ा है! इस बयान का साधारण रूप से परीक्षण किया जा सकता है, जिसका मैं अपने हस्तक्षेप के अंत में आऊंगा।

मुझे उम्मीद है कि इस सदन की चर्चा कतारों-गलियारों में नहीं भटकती है। तू-तू मैं-मैं वाली बहस हमें कहीं नहीं ले जाती है। मैं सरकार और माननीय सदस्यों से असहनीय रूप से बढ़ते दामों की हकीकत को स्वीकार करने और सिर्फ प्रासंगिक सवाल पूछने की अपील करता हूं कि महंगाई रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी?

शुरुआती बिंदु मौजूदा महंगाई के कारणों का पता लगाना है। मैं वित्तीय घाटे से शुरू करता हूं। हम जानते हैं कि भारी और बढ़ता वित्तीय घाटा दामों को प्रभावित करता है। कैसे करता है, यह स्पष्ट करने के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। इस साल के बजट में सरकार ने वित्तीय घाटा 6.4 फीसद (16,61,196 करोड़ रुपए) रहने का अनुमान लगाया है।

अप्रैल-जून में वित्तीय घाटा 3,51,871 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। हमें मालूम है कि सरकार ने खर्च को कम करके आंका है और उसके लिए बजट नहीं रखा है। क्या सरकार ने राजस्व का भी अनुमान कम करके लगाया है? क्या सरकार वित्तीय घाटा 6.4 फीसद पर बनाए रख पाएगी? हम इसका साफ जवाब चाहते हैं।

अब चालू खाते के घाटे (कैड) की बात। अप्रैल-जून में चालू खाते का घाटा तीस अरब अमेरिकी डालर के करीब रह सकता है। जुलाई में व्यापार घाटा इकत्तीस अरब अमेरिकी डालर रहा। अगर पूरे साल के लिए चालू खाते का घाटा सौ अरब डालर को पार कर जाता है, जैसा कि अनुमान है, तो इसके गंभीर नतीजे होंगे। सरकार इस सदन को बताए कि चालू खाते के घाटे से निपटने के लिए वह क्या उपाय करने जा रही है।

सभापति महोदय, एक बार फिर स्पष्ट जवाब चाहिए। तीसरी चेतावनी ब्याज दरों को लेकर है। हम जानते हैं कि नीतिगत दरें आरबीआइ तय करता है। मौद्रिक नीति समिति में सरकार ने तीन सदस्य नामित कर रखे हैं। आरबीआइ के बोर्ड में सरकार के सचिव हैं। इसलिए सरकार यह नहीं कह सकती कि उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। भारत जब समायोजित मौद्रिक नीति पर चलता है तो वह विकसित अर्थव्यवस्थाओं का अनुसरण करता है और बाजार में नगदी डालता है। वे अब ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं।

मुझे संदेह है कि भारत अब अपना अलग रास्ता लेगा। अगर आरबीआइ ब्याज दरें बढ़ाता है, तो इससे मांग कमजोर पड़ सकती है और परिणामस्वरूप दाम नीचे आएंगे, लेकिन इससे बिक्री और मुनाफे पर भी असर पड़ेगा और कुल मिला कर बेरोजगारी बढ़ेगी। रास्ता नए पैमानों में है। क्या सरकार और आरबीआइ गवर्नर एकराय हैं? ब्याज दरों को लेकर क्या सरकार अपनी भविष्यवाणी हमसे साझा करेगी?

चौथी बात आपूर्ति शृंखला को लेकर है। काफी समय से उदार आयात को नकार दिया गया है। घरेलू उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी? एमएसएमई गहरे संकट में है और वह तब तक मदद नहीं सकती जब तक कि पहले उसे मदद न मिल जाए। बड़ी कंपनियों की दिलचस्पी अधिकतम मुनाफे में बनी हुई है और वे आपूर्ति को कृत्रिम रूप से बाधित कर सकती हैं।

मेरी सूची में जो अंतिम मुद्दा है, उसने लोगों को सबसे ज्यादा संकट में डाला हुआ है और वह है सरकार की कर नीति। मैं सरकार पर ऐसा असली पाप करने का आरोप लगाता हूं, जिसकी वजह से महंगाई बढ़ी और यह है पेट्रोल और डीजल पर थोपे गए क्रूर कर और उपकर।

सरकार ने करों, उपकरों और लाभांश के रूप में तेल कंपनियों के जरिए छब्बीस लाख करोड़ रुपए की भारी-भरकम रकम जमा कर ली। यह सरकार संवेदनहीन, हृदयविहीन और गरीब विरोधी है। इसमें उन वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए गए जीएसटी को भी शामिल कर लिया जाए, जिनका इस्तेमाल गरीब और मध्यवर्ग के लोग करते हैं।

इस सरकार को छह साल की कीर्ति दुबे के उस दर्द का जरा भी अहसास नहीं है कि जब उसने मां से एक और पैंसिल दिलाने को कहा, तो उसे डांट सुननी पड़ गई या उस मां को कितनी पीड़ा हुई होगी जो अपनी बच्ची को एक और पैंसिल भी नहीं दिला सकती।

अगर इस सरकार के पास जरा भी दिमाग और दिल है तो इसे तत्काल पेट्रोल और डीजल पर करों को कम करना चाहिए, एलपीजी के दाम घटाने चाहिए और उन जरूरी वस्तुओं पर से करों को वापस लेना चाहिए जिनका इस्तेमाल गरीब और मध्यवर्ग के लोग करते हैं।

आइए, हम तीनों- आप सभापति महोदय, माननीय वित्तमंत्री और मैं, बिना पहचान और बिना सुरक्षा वाली गाड़ी में सवार होकर दिल्ली की किसी मध्यवर्गीय मोहल्ले या झुग्गी में चलें। सभापति महोदय, कृपया लोगों से पूछें कि क्या ईंधन के दामों, एलपीजी के दाम और जीएसटी दरों से उन पर असर पड़ा है। मैं उनका फैसला मानने को तैयार हूं। मुझे उम्मीद है कि माननीय वित्तमंत्री भी आम आदमी का फैसला मानेंगी।


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