सम्पादकीय

गांधी जयंती पर विशेष: पावन पर्व 2 अक्टूबर

Gulabi
2 Oct 2021 9:13 AM GMT
गांधी जयंती पर विशेष: पावन पर्व 2 अक्टूबर
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पावन पर्व 2 अक्टूबर

भारत देश विभूतियों का देश है, अनादि काल से चमकते तारों सा व्यक्तित्व रखने वाले महान व्यक्ति भारत की धरती पर जन्म लेकर भारत को पावन करते आये हैं. झिलमिलाते नक्षत्रों की भांति जग जीवन को रोशन करती ये प्रदीप्ति जब धरती पर फैलती है, तो सर्वत्र ज्ञान व आभा की किरणें प्रसारित होती है, ऐसा ही पावन है दो अक्टूबर का दिन, हमारे राष्ट्रीय पर्वो में महत्वपूर्ण यह दिन दो महान विभूतियों के अवतरित होने के कारण प्रसि़द्ध है, महात्मा गांधी व लाल बहादुर शास्त्री. दोनो ही कान्तिमान प्रतिभाओं का जीवन देश के लोगों की प्रगति खुशियों के लिए समर्पित रहा.

02 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में जन्म लेने वाले मोहनदास कर्मचन्द गांधी अपनी अतुलनीय छवि से संसार के पटल पर छाकर अपना अपने परिवार व देश का नाम स्वर्णाक्षरों से अलंकृत करेंगे, ये किसी ने सोचा भी नहीं होगा. भारतीय इतिहास में अहिंसावादी छवि के कारण बापू ने जनमानस के दिलों पर राज किया, सबको एकता के सूत्र में पिरोकर देश की खातिर प्रेम पूर्वक रहने का संदेश सिखाया. 02 अक्टूबर का दिन अहिंसा दिवस के रुप में मनाया जाता है, इस दिन राजघाट पर प्रधानमंत्री की उपस्थिति में प्रार्थना सभा का आयोजन किया जाता है.
बापू के प्रिय भजन से भक्तिमय वातावरण हदय को बापू के ही समीप ले जाता है. बापू के जीवन की अनेक विशेषताओं ने उन्हें साधारण से असाधारण व्यक्तित्व का स्वामी बना दिया. बापू धरातल पर रहकर आम आदमी की दिनचर्या को महसूस करके उच्च विचारों के साथ जीये. निर्धनो के धनी, बलहीनो के बल, सामर्थय हीन की ताकत बनकर जीने की कला उनमें बखूबी थी. कथनी-करनी के अन्तर को समाप्त कर गरीबी के अहसास को अपने अंतर में महसूस करके उन्होनें हर व्यक्ति के दिल में बसेरा किया.
दुबले पतले बापू एक दिन में 18 किमी चलकर लोगों को ये संदेश देते थे कि आत्मशक्ति व आत्मबल से असंभव भी संभव हो सकता है. गांधी जी की अहिंसावादी छवि के कारण और देश को एक पिता की तरह संजोकर रखने के कारण उन्हें राष्ट्रपिता की उपाधि दी गई. 02 अक्टूबर को गांधी जयंती के रुप में मनाकर इस राष्ट्रीय पर्व पर बापू के योगदान को याद कर भारतवासी स्वयं को गौरवांवित महसूस करते हैं. हथियारों के बल पर सत्ता सभी हासिल करते है, पर आत्मिक बल और अहिंसा के द्वारा बापू ने सारे संसार में अपना कीर्तिमान स्थापित किया.
उनकी आवाज पर भारतीय उनके साथ चल दिये, बापू का अनुकरण करके अपने जीवन को सार्थक करते हुए लोगों ने सच्चाई और अहिंसा को अपने जीवन में उतारा और सारे संसार को ये संदेश दिया कि भारतीय एकता का कोई सानी नहीं. यह दिन हर व्यक्ति को सत्य की राह पर चलने, अहिंसा का मार्ग अपनाने व निरभिमानी बनने की प्रेरणा देता है. दृढ़ प्रति़ज्ञ और निष्ठावान बनाता है, सन्मार्ग पर चलने को अग्रसर करता है और यह दर्शाता है कि बापू ने कैसे असाधारण रुप से संसार को अपनी सूझ-बूझ और ज्ञान से अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर किया.
भारत का स्वर्णिम भविष्य निर्माण करने में लाल बहादुर शास्त्री व बापू की भूमिका किसी देवदूत से कम नहीं, दोनो ने जो बिगुल बजाया, उसकी आवाज पर लोग उनके पीछे चल दिये और देश की आजादी हासिल करने के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हटे. बापू की लाठी की टेक को हम आज भी महसूस कर सकते हैं, गांधी जी का खादी के प्रति लगाव, चरखा कातते हुए उनकी छवि आज भी आंखों से कभी धूमिल ही नहीं होती, सूत कातती उंगलियां चित्रात्मक रुप से बरबस ही स्वदेशी के प्रति हमारी आस्था को जगाती हैं.
स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने के पक्षधर बापू के प्रति निष्ठावान भारतीय अपने देश में स्वदेशी वस्तुओं के लिए आज भी आहवान करते है. 2 अक्टूबर को खादी के वस्त्र पहनकर अपना प्रेम प्रदर्शित करते हैं, बापू का देशवासियों के लिए वस्त्र त्याग देना, भूखों के लिए भोजन छोड़ देना, शांति को जीवन का अभिन्न अंग बनाना, किसी से भी ईर्ष्‍या द्वेष ना करना, अपने जीवन में किसी भी दुर्गुण को जगह ना देना, उन्हें महामानव बनाता है और ऐसे महामानव के नाम पर 2 अक्टूबर के पावन दिन को राष्ट्रीय पर्व के रुप में मनाकर हर भारतीय धन्य है.
युग प्रवर्तक महामानव के जाने के बाद यद्यपि उनकी अनुपस्थिति मन को कचोटती है, पर अनुकरणीय उनका जीवन हम भारतीयों को सच्चरित्र बनने की प्रेरणा देता है और जीवन पर्यन्त इस दिन की पावन गरिमा को सहेज कर रखने के उल्लास को जगाता है. सच्चे देशभक्त कभी मरते नहीं हैं, हमेशा हमारी सांसो में खुशबू और दिल में धड़कन बनकर जिंदा रहते हैं. उनका आदर्श चरित्र सदैव हमारा मार्ग दर्शन करता है. गांधी जयंती का दिन किसी मजहबी सल्तनत को जन्म नहीं देता वरन् हर मजहब की इबादत का संदेश देता है. ये पावन पर्व हम भरतीयों का अलौकिक दिव्यता से भरा शांति, सादगी व इबादत का पर्व है. युग-युग तक अमिट, अमर संदेश का पर्व है. ये पर्व हमें राष्ट्रपिता बापू के चरणों में नत होने और उन जैसा ही बनने की प्रेरणा देता है .




(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रेखा गर्ग, लेखक
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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