सम्पादकीय

24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष: महिला होगी आत्मनिर्भर तब बदलेगा समाज व देश

Gulabi
24 Jan 2022 6:00 AM GMT
24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष: महिला होगी आत्मनिर्भर तब बदलेगा समाज व देश
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24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष
2021 में कमला हैरिस जब अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेती हैं तो दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में एक इतिहास बनता है। इसे महिला सशक्तिकरण के एक अद्भुत उदाहरण के तौर पर देखा जाता है। लेकिन जब हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बात करें तो ऐसी महिला सशक्तिकरण हमने साठ के दशक में देख ली थी जब इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। फिर 2007 में हमारे देश में श्रीमती प्रतिभा पाटिल देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनीं।
लेकिन क्या हम आज महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सशक्त समाज का दावा कर सकते हैं। जिस समाज में नवरात्र में पूजन के लिए कुमारियों की खोज होती है। कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है, जिसके बिना स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। उसी समाज का मिजाज कोख में कन्या की जानकारी होते ही आदिम बन जाता है।
हमारे देश की इन्दिरा गांधी, मैरी कॉम, सुषमा स्वराज, साइना नेहवाल, हरमनप्रीत कौर, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, इंदिरा नुयी, मीराबाई चानू अपने-अपने क्षेत्र में दुनिया में लोहा मनवा चुकी हैं।
समाज और बालिकाओं की दुनिया
कहा जाता है कि ''किसी समाज की सभ्यता का अनुमान उस समाज में स्त्री को दिए गये आदर द्वारा आंका जा सकता है।'' मानव समाज के समुचित और सर्वांगीण विकास में महिलाओं का योगदान कभी भी कम नहीं रहा है परन्तु यह एक विडम्बना ही रही है कि समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा शायद ही कभी प्राप्त हुआ हो। वेदों में कहा गया है कि ''यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'' अर्थात् जहां नारियों की पूजा होती हे वहां देवताओं का वास होता है।
मानवाधिकार के सार्वभौमिक घोषणा पत्र (1979) के प्रथम अनुच्छेद में महिलाओं को पुरुषों के समान ही प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र हो, आर्थिक क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो सभी में समान अधिकार देने की बात कही गई है। जबकि आज बालिकाओं के बारे में अहम सवाल उनके जन्म लेने पर ही खड़ा है। शिक्षा, कैरियर, शादी और समानता तो बाद की बात है। कहीं जन्म लेने की छूट मिल भी जाए, तो सामाजिक सुरक्षा हमेशा खतरे में रहती है। आज बच्चियों के साथ ज्यादा हिंसक बारदातें उनके परिचितों द्वारा की जा रही है।
महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में और अधिक कदम उठाने की आवश्यकता है।
भारतीय संविधान और देश की बेटियां
भारतीय संविधान महिलाओं को कई अधिकार प्रदान करता है, जिनमे अनुच्छेद 14 में कानूनी समानता, अनुच्छेद 15 (3) में जाति, धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव न करना, अनुच्छेद 16 (1) में लोक सेवाओं में बिना भेदभाव के अवसर की समानता, अनुच्छेद 19 (1) में समान रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 में स्त्री एवं पुरुष दोनों को प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित न करना, अनुच्छेद 29-30 में शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार, अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार, अनुच्छेद 39 (घ) में पुरुषों एवं स्त्रियों दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार, अनुच्छेद 40 में पंचायती राज्य संस्थाओं में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से आरक्षण की व्यवस्था, अनुच्छेद 42 में महिलाओं हेतु प्रसूति सहायता प्राप्ति की व्यवस्था, अनुच्छेद 51 (क) (ड) में भारत के सभी लोग ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हों इत्यादि प्रमुख हैं।
2050 में, भारत हमारे संविधान के 100 साल पूरे होने का जश्न मनाएगा। हमारा संविधान, सभी नागरिकों को समानता की गारंटी देता है फिर भी अंतराल लगभग हर जगह मौजूद हैं। विश्व स्तर पर, भारत जन्म के समय लड़कों और लड़कियों के सबसे विषम अनुपात के लिए पांचवें स्थान पर है, और औसतन, देश भर में हर घंटे महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ 22 अपराध किए जाते हैं। भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की दर भारत में 54 प्रतिशत है।
एक सर्वे के अनुसार राजधानी दिल्ली में 55 प्रतिशत महिलाओं ने सार्वजनिक स्थानों पर यौन या शारीरिक हिंसा का अनुभव किया है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए नीतिगत पहलों की स्पष्ट रूप से आवश्यकता है क्योंकि भारत में लैंगिक असमानता आर्थिक विकास की पृष्ठभूमि में भी बनी हुई है।
भारतीय महिलाएं अवैतनिक देखभाल के काम का बोझ उठाती हैं, भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महिलाओं की अहम भूमिका रही है। यह अनुमान है कि भारत में महिलाएं वैश्विक औसत 40% के मुकाबले सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मात्र 17% का योगदान करती हैं।
यह एक महत्वपूर्ण अंतर को दर्शाता है। हालांकि वे खेती और डेयरी क्षेत्र में मजबूत हैं, भारत के तेजी से शहरीकरण ने अभी तक अधिक महिलाओं को श्रम बल में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया है। ग्लोबल जेंडर इक्वेलिटी इंडेक्स 2019 के अनुसार, भारत 129 देशों में से 95 वें स्थान पर है और यह वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2019-2020 में 112 वें स्थान पर है।
इन सूचकांकों से पता चलता है कि भारतीय महिलाओं को कार्यस्थल में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है या वे समान लाभ महिलाओं को प्रदान नहीं किए गए हैं जो उनके पुरुष समकक्षों को दिए जाते हैं।
यद्यपि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ और स्किल इंडिया व मुद्रा लोन के बाद इसमें कुछ सुधार हुआ है, महिलाओं की उद्यमशीलता उच्च स्तर पर है। आंकड़े बताते हैं कि 2025 तक लगभग 10 करोड़ उद्यमियों को वित्त पोषित किया जाएगा, जिनमें से 50% महिलाएं होंगी।
महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में और अधिक कदम उठाने की आवश्यकता है। लड़कियों की स्थिति सुधारनी है तो शिक्षा पर सबसे ज्यादा जोर देना ही होगा, हमें अपनी सोच को बदलना होगा। बेटियां भी बुढ़ापे का सहारा बन सकती हैं, सामाजिक मान्यताएँ बदलने में समय लगता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अब बहुत समय नहीं लगेगा।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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