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- 1 मई श्रमिक दिवस पर...
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मैं मजदूर हूं
मैं मजदूर हूं,
सुन लो मेरी भी पुकार।
श्रमदान के बदले ना देना,
मुझको अपमान।
गरीबी की चादर ओढ़
अपने सपनों को, ना पंख लगा
पाऊं कभी।
ऊंची ऊंची इमारत को गढ़ना है,
काम मेरा।
सर्दी हो या गर्मी
पहाड़ से लेकर नदियों तक,
कभी चट्टानों को तोड़,
कभी धरती को खोद,
दो वक्त की रोटी पाने को,
करें साहब के आदेशों को पालन।
सुकून की नींदें, तारों से भरी रातें,
शीतल पवन, मन में ना कोई जलन,
पहने तन में सहनशीलता,
का आभूषण।
अपने मालिक को समझे हम भगवान।
वक्त की मार और लाचारी की भाल,
जब पड़ती है इस पेट पर तो,
बड़े-बड़े पर्वतों के बीच बन जाते हैं
रास्ते
कई कई मालों की इमारतें,
अपने हाथों से गढ़ते।
हां हम मजदूर हैं,
सुन लो हमारी भी पुकार।
दे दो जग में मुझे एक पहचान।
संघर्ष और श्रम है मेरा मान,
रखना इसे आप सब जतन।
हां मैं मजदूर हूं,
सुन लो मेरी पुकार।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
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Gulabi Jagat
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