सम्पादकीय

100वीं जयंती पर विशेष : क्यों भारत रत्न के असली हकदार हैं पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव?

Tara Tandi
28 Jun 2021 1:38 PM GMT
100वीं जयंती पर विशेष : क्यों भारत रत्न के असली हकदार हैं पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव?
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28 जून 1921 आज से 100 साल पहले आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के वांगरा गांव में एक ऐसे शख्सियत ने जन्म लिया जिसने भविष्य में बहुत विषम परिस्थितियों में भारत का न केवल नेतृत्व किया बल्कि देश को गरीबी-बेरोजगारी की जाल से निकालने का भी काम किया

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | 28 जून 1921 आज से 100 साल पहले आंध्र प्रदेश के करीमनगर जिले के वांगरा गांव में एक ऐसे शख्सियत ने जन्म लिया जिसने भविष्य में बहुत विषम परिस्थितियों में भारत का न केवल नेतृत्व किया बल्कि देश को गरीबी-बेरोजगारी की जाल से निकालने का भी काम किया. देश की आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के वाले पीवी नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) ने 1962 से 1971 तक आंध्र प्रदेश के मंत्रिमंडल में अपनी महती भूमिका निभाई. इसके बाद 1971 से लेकर 1973 तक राव आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की मृत्यु के बाद नरसिम्हा राव उन लोगों में से एक थे जो इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के बेहद करीबी और वफादार थे. यही वजह थी कि उन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) दोनों प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में कई मंत्रालयों का जिम्मा उन्होंने संभाला. इनमें गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और रक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय शामिल थे.

1991 में जब नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने और अपने कार्यकाल में जिस तरह के आर्थिक सुधार किए, आर्थिक नीतियां बनाई उनपर आज भी हिंदुस्तान की सरकारें अमल करती हैं. सवाल उठता है कि उन्हें भारत रत्न (Bharat Ratna) क्यों नहीं दिया जा सकता है ? देश में भारत रत्न प्राप्त कर चुके किसी भी प्रधानमंत्री से कम उनके नाम से उपलब्धियां नहीं हैं. तेलंगाना विधानमंडल तो 8 दिसंबर 2020 को पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का प्रस्ताव भी पारित कर चुका है. नरसिम्हा राव ने भारत को उस दौर से बाहर निकाला था जब उसे अपना कर्ज चुकाने के लिए देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था. दरअसल चंद्रशेखर के कार्यकाल में भारत दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुका था. देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से अपाहिज हो चुकी थी.

भारत की अर्थव्यवस्था को नई राह दिखाई

जब पी वी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने उस वक्त हिंदुस्तान की हालत बहुत खस्ता थी. कर्ज में डूबा हिंदुस्तान दिवालिया होने के कगार पर खड़ा था, नरसिम्हा राव के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती थी, वह यही थी की सबसे पहले भारत की अर्थव्यवस्था को ठीक किया जाए. नरसिम्हा राव ने अपने शुरुआत के 100 दिनों तक अर्थव्यवस्था पर ही पूरा ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने कई नियमों में बदलाव किए, जैसे कि रुपए की कीमत में गिरावट की गई, न्यू ट्रेड पॉलिसी लागू की गई, देश में व्यापार के लिए बेहतर माहौल बनाया गया और इसके लिए कई कानूनों में बदलाव किए गए. फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (FERA) में बदलाव किया गया. विदेशी कंपनियों को भारत में व्यापार करने हेतु आकर्षित करने के लिए फिस्कल स्टेबलाइजेशन प्रोग्राम शुरू किए गए. इसके साथ ही पब्लिक सेक्टर शेयर डिसइनवेस्टमेंट ड्राइव शुरू की गई.

नरसिम्हा राव ही थे जिन्होंने भारत को ऑटोमोबाइल सेक्टर में एक बड़ा हब बनाया, उन्हीं की देन है कि आज दिल्ली में होंडा, मारुति, यामहा जैसी ऑटोमोबाइल कंपनियों का प्रोडक्शन सेंटर है. चेन्नई में हुंडई और फोर्ड का बहुत बड़ा प्लांट है. पुणे में बजाज, महिंद्रा, मर्सिडीज जैसी गाड़ियों का प्लांट है. पीवी नरसिम्हा राव के ही प्रयास थे कि जो भारत उनके आने से पहले कर्ज में डूबा था, 1994 तक उसकी जीडीपी 6.7 फ़ीसदी तक पहुंच गई थी. जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने उस वक्त भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार केवल 400 मिलियन डॉलर का था. लेकिन उनके अथक प्रयासों की वजह से ही 1994 तक भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 15 गुना बढ़ोतरी हुई थी. आज भारत की अर्थव्यवस्था इसलिए बेहतर है क्योंकि उसकी नींव नरसिम्हा राव ने 1991 में रखी थी.

पंजाब के आतंकवाद को शांत किया

80 से लेकर 90 के दशक की शुरूआत तक पंजाब खालिस्तान के नाम पर आतंकवाद और अलगाववाद की गिरफ्त में था. वहां स्थिति इतनी भयंकर थी 1987 से लेकर 1992 तक लगातार 5 वर्षों तक वहां राष्ट्रपति शासन के तहत आपातकाल लागू रहा. इतने सालों तक राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए देश के संविधान में लगभग 5 संशोधन (59वां, 63वां, 64वां, 67वां और 68वां) किए गए. लेकिन जब नरसिम्हा राव की सरकार केंद्र में बनी तो उन्होंने पंजाब में फैले आतंकवाद और अलगाववाद को शांत करने के लिए बड़े फैसले लिए उन्होंने पंजाब के लोगों को अपनी सरकार खुद चुनने का मौका देने का ऐलान कर दिया.

इसके बाद फरवरी 1992 में वह चुनाव हुए और चुनाव में कांग्रेस (ई) यानि इंका को बहुमत मिला. उसके बाद बेअंत सिंह को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया और वह मुख्यमंत्री बने. बेअंत सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद पंजाब के लोगों में भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर विश्वास फिर से बढ़ने लगा और पूरे राज्य में आतंकवाद की घटनाओं में बड़ी कमी देखने को मिली. यह नरसिम्हा राव की कामयाबी ही थी कि उन्होंने अपने 5 साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और राज्य के डीजीपी केपीएस गिल पर विश्वास करके उन्हें पूरी स्वतंत्रता दी जो बाद में चलकर पंजाब की शांति का आधार बने.

नई विदेश नीति अपनाई

आज भारत जिस विदेश नीति के तहत आगे बढ़ रहा है उसकी नींव प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने ही रखी थी. प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव एक दूरदर्शिता वाले व्यक्ति थे, जब भारत के तमाम प्रधानमंत्री मुस्लिम वोट बैंक के चक्कर में इजराइल से बात करना भी उचित नहीं समझते थे तब नरसिम्हा राव ही वह प्रधानमंत्री थे जिन्होंने अपने कार्यकाल में इजराइल के साथ भारत के रिश्तों को आधिकारिक रूप दिया था. यहां तक की 90 के दशक से पहले तक भारत का पूरा झुकाव सोवियत संघ, यानि रूस की तरफ था. लेकिन पीवी नरसिम्हा राव को पता था, आने वाला समय अमेरिका का होने वाला है इसलिए उन्होंने रूस के साथ-साथ अमेरिका के साथ भी भारत के संबंधों को मजबूत किया.

यही वजह थी कि 1992 में भारत और अमेरिका ने मिलकर 'मालाबार नेवल एक्सरसाइज' किया. दरअसल नरसिम्हा राव को पता था कि हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत के पास अमेरिका जैसे दोस्त का होना बेहद जरूरी है. नरसिम्हा राव की ही देन थी कि भारत ने 'लुक ईस्ट पॉलिसी' शुरू की जिसके जरिए भारत में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ अपने संबंध मजबूत की आज भारत के पीएम नरेंद्र मोदी इसी पॉलिसी को एक्ट ईस्ट पॉलिसी के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं. इसी पॉलिसी की देन है कि आज भारत के रिश्ते वियतनाम लाओस इंडोनेशिया कंबोडिया और थाईलैंड से मजबूत हो रहे हैं.

नेहरू परिवार से अलग कोई व्यक्ति 5 साल तक भारत की सरकार चलाने में सक्षम हुआ

1991 में राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे और लोकसभा के चुनाव चल रहे थे. यह चुनाव 2 चरणों में होने थे. लेकिन पहले चरण की वोटिंग के बाद राजीव गांधी की हत्या कर दी गई, इसके बाद दूसरे चरण की वोटिंग हुई जिसमें कांग्रेस पार्टी को अच्छी बढ़त मिली. लेकिन इसके बाद भी उसे 531 में से केवल 232 सीटें ही मिली. कांग्रेस बहुमत से दूर थी, लेकिन देश की सबसे बड़ी पार्टी थी इसलिए इसे सरकार बनाने का मौका दिया गया. कांग्रेस के साथ अब समस्या थी कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा. कुछ लोगों ने सोनिया गांधी का नाम सुझाया लेकिन सोनिया गांधी ने मना कर दिया. इसके बाद सोनिया गांधी ने इंदिरा गांधी के प्रमुख सचिव रहे पी एन हक्सर से इस मामले में सलाह मांगी पी एन हक्सर इंदिरा गांधी के बेहद करीब थे और कांग्रेस पार्टी में उनकी सलाह की बहुत कद्र थी उन्होंने 2 नाम सुझाए, पहला शंकर दयाल शर्मा जो उस वक्त उपराष्ट्रपति थे और दूसरा पीवी नरसिम्हा राव. शंकर दयाल शर्मा ने अपनी सेहत का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री पद के लिए मना कर दिया, अब सिर्फ एक ही नाम बचा था वह थे पी वी नरसिम्हा राव.

हालांकि सोनिया गांधी शुरू से ही किसी ऐसे नेता को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी जो उनकी बात सुने. वह नहीं चाहती थीं कि कोई तेज तर्रार नेता देश का प्रधानमंत्री बने जो उनके लिए आने वाले समय में रास्ते का रोड़ा बन जाए. खैर इन सब के बीच पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बन गए. सोनिया गांधी ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ, पीवी नरसिम्हा राव सोनिया गांधी को उतनी तरजीह नहीं दे रहे थे जितनी कि उन्हें उम्मीद थी. पीवी नरसिम्हा राव ने अपने बलबूते पर 5 सालों तक अल्पमत में ही अपनी सरकार चलाई. हालांकि इस दौरान उनके ऊपर सांसदों की खरीद-फरोख्त के भी आरोप लगे. लेकिन नरसिम्हा राव ने अपनी सरकार गिरने नहीं दी. नेहरू परिवार के के बाद नरसिम्हा राव पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने 5 सालों तक देश की सरकार चलाई थी. और न सिर्फ सरकार चलाई बल्कि ब़ड़े स्तर के सुधार और बदलाव भी किए.

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