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- रामनवमी पर विशेष लेख:...
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भारतवर्ष एक संस्कृति और धर्म प्रधान देश है
डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय 'तारेश'
भारतवर्ष एक संस्कृति और धर्म प्रधान देश है. यहां अनेक संस्कृतियों और धर्मों का मिलन हुआ है. यहां के विभिन्न धर्मावलंबी अपने अपने तरीक़े से अपने पर्व और त्योहार को मनाते हैं. रामनवमी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म भारतवर्ष की पुण्यभूमि अयोध्या में हुआ था.
नौमी तिथि मधुमास पुनीता.
सुकल पक्ष अभिजीत हरि प्रीता.
मध्यदिवस अति सीत न घामा.
पावन काल लोक विश्रामा…
सुर समूह विनती करि,पहुचे निज निज धाम.
जग निवास प्रभु प्रगटे,अख़िल लोक विश्राम.
तुलसीदास मानस 1/191
आज सब ओर जब मानव मूल्यों का ह्रास हो रहा है,सदाचार और संस्कार के सारे सेतुबंध टूट रहे हैं,तो ऐसी परिस्थिति में रामनवमी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इसी दिन मानवीय मूल्यों की स्थापना और सदाचार और संस्कार के सेतुबंध को स्थापित करने के लिए राम का पदार्पण इस धरा धाम पर हुआ था. राम कथा का स्तवन गान करने वाले अनेकानेक कवि हुए; उनमें आदि कवि महर्षि वाल्मीकि, व्यास, कालिदास, भवभूति, जयदेव, मुरारि, केशवदास, हरिऔध, मैथिली शरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रामचरित उपाध्याय, केदारनाथ मिश्र प्रभात, डॉ. राम कुमार वर्मा, कुंवर चन्द्र प्रकाश सिंह, गोवर्धन प्रसाद सदय, डॉ श्याम नंदन किशोर के नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं. सभी ने अपने अपने ढंग से अपने वातावरण के अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र का गान किया है; किंतु साम्प्रत परिवेश में तुलसी के श्रीराम ही अधिकाधिक ग्राह्य बन पाए हैं.
नौमी भौम वार मधुमासा.
अवधपुरी यह चरित प्रकाशा.
अपने महान कर्मों से भले ही श्रीराम ने त्रेतायुग में पर्याप्त प्रशस्ति पाई हो,परंतु इस युग में तो तुलसी के मानस का जन्म जिस दिन हुआ, सचमुच वही दिन भारतीय इतिहास का अभूतपूर्व विलक्षण पृष्ठ बन गया. तुलसी के मानस में श्रीराम एक अयस्कांतीय चरित्र एवम् उदात्त व्यक्तित्व के रुप में उजागर हो उठे हैं. श्री राम की पावन कर्मभूमि होने के कारण सचमुच भारत भा-रत बन गया. सभ्यता और संस्कृति की डूबती नौका को बंचाने के लिए उसे एक सुदृढ़ कर्णधार मिल गया. निराशा और हताशा की अंधेरी घाटियां एक अभिनव दीप्ति से आभासित हो उठीं.
भारतीय अंक साधना में यों तो सभी अंकों का महत्व है,परंतु नौ के अंक का विशिष्ट स्थान है. एक अंक की सबसे बड़ी संख्या नौ ही है. नौ के अंक के गुणनफल का योग हमेशा नौ ही होता है. यथा 9×2=18 ,9×3=27*****
तुलसी ने दोहावली में लिखा है:
राम नाम को अंक है, सब साधन है शून्य.
अंक गए कछु हाथ नहीं,अंक रहे दस गुण.
दोहावली 10
प्राकृत जगत में कर्मों के नौ साक्षी हैं: क्षिति,जल,पावक,गगन समीर,सूर्य,चंद्र, यमदेव,काल.
ग्रह नौ माने गए हैं; सूर्य,चंद्र, मंगल,बुध,बृहस्पति,शुक्र,शनि,राहु और केतु.
*दुर्गा के नव रुप हैं: शैलीपुत्री, ब्रहमपुत्री,चंद्र घंटा,कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, और सिद्धि दात्री. भागवत में नौ प्रकार की भक्ति का उल्लेख है: श्रवण,स्मरण,कीर्तन,वंदन,अर्चन,पाद सेवन,सख्य,दास तथा आत्मनिवेदन. मानस में भी नौ प्रकार की भक्ति की चर्चा है.
जिस प्रकार भारतीय तंत्र साधना में नौ के अंक का महत्व स्वयं सिद्ध है, उसी प्रकार रामनवमी का महत्व असंदिग्ध है. राम और कृष्ण भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ और भारतीय जनता के केन्द्र बिंदु हैं. राम और कृष्ण के रंग से जितना भारत रंगा हुआ है, उतना किसी दूसरे रंग से रंगा हुआ नहीं है. प्रत्येक भारतीय के हृदय में उनका प्रेम अभी भी प्रवाहित हो रहा है. दूर-दूर आती हुई श्रीराम जय राम जय जय राम और गोपाल कृष्ण राधे राधे कृष्ण की धूम का उद्घोष इस बात का साक्षी हैं.
राम हमारे जीवन में ओत प्रोत होकर एक रुप हो गए हैं. भारत के गांवों में जब दो व्यक्ति आपस में मिलते हैं, तो परस्पर हाथ जोड़कर राम-राम या जय श्रीराम कहते हैं. देहातों में यह कहावत प्रचलित है कि जिसे राम राखें, उसे कौन चाखे. इन शब्दों में भगवान की रक्षा शक्ति में मानव का दृढ़ विश्वास प्रतिबिंबित होता है. प्रभु विश्वास पर चलनेवाला मानव कार्य या संस्थान के लिए राम भरोसे शब्द का प्रयोग हमारे यहां प्रचलित हैं. कहावत हैं:
राम भरोसे बैठकर सबका मोजरा ले.
घट-घट में राम बसते हैं, यह शब्द समूह ईश्वर की सर्व व्यापकता का दर्शन कराता है:
रग रग में हैं राम, पग पग पै हैं राम,
राम का प्रमाण पूछ, देश न लजाइये.
शबरी के भाव में हैं, केवट की नाव में हैं,
राम जी दिखेंगे, आप खुद को जगाइये.
राम संस्कार में हैं, आपस के प्यार में हैं,
भरत सरीखे आप भाई बन जाइये.
राम सुप्रभात में हैं, राम मीठी बात में हैं,
राम राम बोल, जग अपना बनाइये.
रामनवमी का पर्व हमें संदेश देता है कि कौटुम्बिक, सामाजिक, नैतिक और राजकीय मर्यादा में रहकर भी पुरुष किस तरह उतम हो सकता है. यह मर्यादा पुरुषोतम राम का जीवन हमें सिखाता है. मानव उच्च ध्येय और आदर्श रखकर उन्नति प्राप्त कर सकता है, यह राम ने अपने जीवन के द्वारा बताया है और वैसा व्यक्ति देवत्व भी प्राप्त कर सकता है. विकारों, विचारों और व्यावहारिक कार्यो में उन्होंने मानव की मर्यादा को नहीं छोड़ा, इसलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए
धर्म परायण राम की पालकी कंधे पर उठाकर आज सभी धन्यता का अनुभव करते हैं, क्योंकि राम वैदिक संस्कृति के रक्षक थे और दैवी संपत्ति के गुणों से युक्त. आसुरी वृत्ति का नाश करनेवाले को ही सिर पर उठाकर भारत नाचा है और उन्हें ही आम जनता ने अपने हृदय में स्थान दिया है, यह बात हमें रामनवमी बताती है
राम सद्गुणों के भांडार हैं:-हृदयगत स्वच्छता, कर्तव्यपरायणता,कोमलता,परदुखकातरता,अंहकारशून्यता,अतुलनीय नम्रता, विह्वलता, शरणागत वत्सलता, अनुपम उदारता, संकोचशीलता, उन्मुक्त सद्भावना, निरंतर आशावादिता, शिशुसुलभ सरलता, दानशीलता, क्षमाशीलता, अनाडम्बर, धार्मिकता आदि.
जो राम के सद्गुण हैं, उनको आज के दिन समझ लेना चाहिए,जिसे राम बनने की इच्छा हो,जिसे नर से नारायण बनना हो-उसे राम का एक एक गुण अपना लेना चाहिए और आत्मसात करना चाहिए, तभी वह सचमुच एक दिन रामो भूत्वा रामंयजे राम बनकर राम की पूजा करेगा. यही रामनवमी का शाश्वत संदेश है.
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