सम्पादकीय

म्यांमार में तख्ता पलट से प्रभावित होंगे दक्षिण पूर्वी एशियाई देश, संवेदनशीलता से निपटने की जरूरत

Gulabi
5 Feb 2021 12:38 PM GMT
म्यांमार में तख्ता पलट से प्रभावित होंगे दक्षिण पूर्वी एशियाई देश, संवेदनशीलता से निपटने की जरूरत
x
हमारे पड़ोसी देश म्यांमार में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित आंग सान सू की सरकार का सेना ने तख्ता पलट कर दिया है।

हमारे पड़ोसी देश म्यांमार में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित आंग सान सू की सरकार का सेना ने तख्ता पलट कर दिया है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि म्यांमार की सेना ने देश में एक साल का आपातकाल लगाते हुए वहां की सत्ताधारी दल की नेता और देश की वास्तविक प्रमुख आंग सान सू की व राष्ट्रपति को नजरबंद कर हिरासत में ले लिया है। सभी एयरपोर्ट्स बंद कर दिए गए हैं और हवाई उड़ानों पर रोक लगा दी गई है। लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारें कितनी मुश्किल से बनती हैं, इस बात से म्यांमार की सेना को कोई मतलब नहीं है। म्यांमार के सत्ताधारी दल एनएलडी यानी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने कुछ समय पूर्व ही संसदीय चुनावों में जीत दर्ज की थी, लेकिन कई अन्य देशों के चुनावों की तरह म्यांमार का चुनाव भी विवादों से मुक्त नहीं रह पाया और सेना समर्थित विरोधी दल यूनियन सॉलीडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने सत्ताधारी दल पर सत्ता के दुरुपयोग के साथ चुनाव जीतने का आरोप लगाया था।


वैसे म्यांमार में आम जनता द्वारा निर्वाचित सरकार और सेना के बीच टकराव नया नहीं है। म्यांमार की सेना का आंग सान सू की के प्रति दृष्टिकोण अभी हाल ही में तब पता चला था, जब देश के सेना प्रमुख ने एक रूसी पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा था कि देश के लिए केवल एक व्यक्ति द्वारा निर्णय लेना और उससे पहले किसी भी जरूरी संगठन या व्यक्ति से सलाह मशविरा नहीं करना बहुत खतरनाक है। म्यांमार के सेना प्रमुख का यह वक्तव्य आंग सान सू की के लिए दिया गया माना जाता है जो सत्ताधारी दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की भी प्रमुख नेता हैं। यहां यह जानना जरूरी है कि नागरिक सत्ता और सैन्य सत्ता के बीच यह तनाव और बढ़ा जब वर्ष 2008 में म्यांमार में पहली बार संसदीय चुनाव हुए और नागरिक सत्ता चुने हुए रूप में वहां के लोकतांत्रिक भविष्य का गवाह बनी थी, लेकिन इससे म्यांमार की सेना द्वारा ड्राफ्ट किए गए 2008 के देश के संविधान में विशेष शक्तियों के साथ राजनीति में म्यांमार की सशस्त्र सेना की भूमिका की गारंटी दी गई थी। वहीं नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी और आंग सान सू की ने लंबे समय से देश के संविधान की अलोकतांत्रिक प्रकृति का विरोध किया था।

एनएलडी का चुनाव में जीत सेना और विपक्षी दलों को रास नहीं आया
चूंकि म्यांमार में लंबे समय से मिलिट्री जुंटा (सैन्य शासन) रहा है, जिसके चलते वहां सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों के बजाय सर्वाधिकारवादी और अधिनायवादी मूल्यों को अधिक तरजीह दी है, इसलिए अब म्यांमार में भी माना जाने लगा है कि जब तक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को पूर्ण बहुमत देकर आंग सान सू की सरकार की सेना पर निर्भरता और उसके दबाव से मुक्त नहीं किया जाता, तब तक एक बेहतर शासन प्रणाली के समक्ष अड़चनें बनी रहेंगी। यही कारण है कि पिछले वर्ष संसदीय चुनावों में आंग सान सू की की पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ समर्थन मिला। दूसरी ओर यूएसडीपी के कई नेता जो म्यांमार की सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं, उनके चीन के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं और उसके सत्ता में आने पर वे चीनी हितों के प्रति अधिक निष्ठावान होकर कार्य करते जिसका नुकसान भारत को होता। इन परिस्थितियों में एनएलडी का चुनाव में जीत हासिल करना सेना और विपक्षी दलों को रास नहीं आया
तख्ता पलट की वजह

नौ फरवरी, 2020 को लगभग एक हजार बौद्ध भिक्षुओं ने म्यांमार नेशनल ऑर्गनाइजेशन के बैनर तले म्यांमार की वाणिज्यिक राजधानी यांगून में देश की सेना के पक्ष में और आंग सान सू की के विरोध में सड़कों पर प्रदर्शन किया था। इन बौद्ध भिक्षुओं का मानना था कि नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी बौद्ध धर्म को उपेक्षित करने वाले कदम उठा रही है। साथ ही आंग सान सू की और देश के धाíमक मामलों के मंत्री थुरा आंग के खिलाफ कई नफरती बयान दिए गए। दोनों के खिलाफ आरोप लगाए गए कि वे म्यांमार के बहुसंख्यक वर्ग यानी बौद्ध धर्म को दबा कर गैर बौद्धों का पक्ष ले रहे हैं और म्यांमार की सेना की राजनीतिक शक्ति में कमी लाने के लिए संविधान संशोधन का प्रस्ताव कर रहे हैं। इन बौद्धों ने नो रोहिंग्या वाले बैनरों के साथ विरोध प्रदर्शन किया था। म्यांमार सेना बौद्ध भिक्षुओं को देश की राजनीति में प्रभाव को बनाए रखने के लिए उपयोग में लाती है, वहीं नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने राजनीति की धर्म से दूरी के लिए भी कुछ कदम उठाए हैं जो सेना और बौद्धों को रास नहीं आए। लिहाजा जून, 2019 में देश के धाíमक मामलों और संस्कृति मंत्रलय ने एक सार्वजनिक वक्तव्य जारी कर कहा था कि यदि कोई भी बौद्ध भिक्षु किसी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधि में संलग्न होता है और उसके जरिये समुदाय को अस्थिर करने में भड़काऊ कार्य करता है तो उसे पुरोहित पद से हटा दिया जाएगा या वह उस पद का हकदार नहीं होगा। इसमें कहा गया था कि ऐसे बौद्ध भिक्षुओं से बौद्धों की गरिमा प्रभावित होती है। बहुत से लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि सेना ने बौद्ध समूहों से अपने समर्थकों के एक समूह को निकाल कर अपनी स्थिति मजबूत की है।

राष्ट्रवादी बौद्ध नेताओं से सेना का गठजोड़

वर्ष 2011 में जब म्यांमार में सत्ता संक्रमण के दौर से गुजर रही थी और वहां नागरिक सरकार सत्ता में आई तो सेना ने स्वयं को राष्ट्रवादी बौद्ध नेताओं से मजबूती से जोड़ लिया और ऐसे बौद्ध नेताओं ने सेना से वित्तीय सहायता और उपहार के बदले म्यांमार की सेना की लोकप्रियता और उसके प्रभाव को बढ़ाने का कार्य जारी रखा। कुछ बौद्ध भिक्षु के समूहों ने तो सेना के समर्थन में प्रोपेगेंडा भी चलाना शुरू कर दिया। मई 2019 में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की सरकार ने यह निर्णय लिया कि राष्ट्रवादी बौद्ध भिक्षुओं और बौद्धों के लिए राष्ट्रवादी आंदोलन चलाने वाले यू विराथु के खिलाफ म्यांमार के दंड संहिता की धारा 124ए के तहत देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाएगा। यह धारा सरकार के खिलाफ द्वेष फैलाने और सरकार की अवमानना के लिए अधिकतम 20 वर्ष के कारावास की सजा और जुर्माना तय करती है। दरअसल यू विराथु ने आंग सान सू की का मजाक बनाया था और एनएलडी सरकार द्वारा 2008 के संविधान में संशोधन करने के प्रयास को अत्यधिक उपहास के साथ व्यक्त किया था। विराथु को मार्च 2017 में भी प्रतिबंधित किया गया था, क्योंकि वह अनेक तरीकों से लोगों को भड़का रहा था।
बौद्ध भिक्षुओं का संघर्ष

इसके बाद 16 और 17 जून, 2020 को एक वार्षकि बैठक का आयोजन किया गया था जिसमें एक हजार से अधिक बौद्ध भिक्षु शामिल हुए थे। इस बैठक में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की सरकार की भर्त्सना की गई जिसमें कहा गया कि आंग सान सू की की सरकार रोहिंग्या मुसलमानों के साथ संघर्ष से निपटने में प्रभावी तरीके से काम नहीं कर रही है और म्यांमार व बौद्ध धर्म की गरिमा के साथ खिलवाड़ किया गया है। वर्ष 2014 में विराथु जेल से छूटकर बाहर आया और उसके आते ही म्यांमार की सेना के समर्थन से उसने भी एमबीटी नामक अपना एक शक्तिशाली संगठन खड़ा किया।
एमबीटी को म्यांमार की सेना का उसे खुला समर्थन

उल्लेखनीय है कि नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी एमबीटी जैसे समूहों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखती और इसलिए एमबीटी, एनएलडी और आंग सान सू की के विरोध को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखती है। म्यांमार की सेना का उसे खुला समर्थन भी प्राप्त है। म्यांमार की सेना का कहना है कि एमबीटी और बीडीपीएफ यानी बुद्ध धम्म प्रहिता फाउंडेशन एक अनिवार्य आवश्यकता है। जून, 2019 में बीडीपीएफ ने यांगून रीजनल मिलिट्री कमांडर से 19,600 अमेरिकी डॉलर प्राप्त किया और सात सूत्रीय वक्तव्य जारी कर 2020 में म्यांमार में होने वाले आम चुनाव में मतदाताओं से एनएलडी को मत नहीं देने की अपील की थी।

रोहिंग्या के खिलाफ अत्याचार में म्यांमार की सेना की भूमिका किसी से छिपी नहीं

इससे म्यांमार की सेना और वहां के राष्ट्रवादी बौद्ध समूहों के बीच आंग सान सू की के खिलाफ गठजोड़ का पता चलता है। रोहिंग्या के खिलाफ अत्याचार में म्यांमार की सेना की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। जुलाई, 2019 में अमेरिका ने म्यांमार सेना के चार सबसे बड़े मिलिट्री कमांडर पर प्रतिबंध भी इसीलिए लगा दिया था कि वो रोहिंग्या के जातीय संहार को बढ़ावा देने में संलग्न थे। लेकिन अमेरिका का यह कदम भी म्यांमार की सेना को वहां बौद्ध राष्ट्रवाद और मुस्लिम फोबिया को बढ़ावा देने से नहीं रोक पाया। देश की सेना की राजनीतिक शाखा यूनियन सोलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने बौद्ध लोगों को नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी और मुस्लिमों के खिलाफ भड़काने में कोई कमी नहीं रखी। इन सब बातों से स्पष्ट है कि म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट एनएलडी विरोधी बृहद एजेंडे की देन है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति कायम रहे सम्मान

भारत ने म्यांमार में हुए सैन्य तख्ता पलट के प्रति गंभीर चिंता जाहिर की है। भारत का कहना है कि वहां कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान होना चाहिए। भारत के म्यांमार में कई अति महत्वपूर्ण सामरिक आíथक हित संलग्न हैं जिसके चलते वहां लोकतांत्रिक सरकार का होना जरूरी है। उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों की म्यांमार से होने वाली ड्रग तस्करी, हथियार तस्करी और अन्य संगठित अपराध से निपटने के लिए अच्छे द्विपक्षीय संबंध का होना जरूरी है। भारत से म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम तक बनने वाले राजमार्ग सहित ऐसी कई परियोजनाएं हैं जिनमें म्यांमार सेना द्वारा तब्दीली करने पर भारत को नुकसान हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे अभी हाल ही में श्रीलंका ने ईस्ट कंटेनर टर्मिनल को भारत और जापान की हिस्सेदारी के बगैर बनाने का निर्णय किया है।

भारतीय हितों के लिए म्यांमार के नेतृत्व से प्रभावी तरीके से निपटना होगा

उत्तर पूर्व भारतीय राज्यों के उग्रवादी संगठन खासकर एनएससीएन (आइएम) और एनएससीएन (के) जो म्यांमार की धरती का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध करते हैं, उनसे निपटने के लिए म्यांमार का सहयोग अपेक्षित है। लेकिन यहां इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि म्यांमार की सेना सब कुछ भारत के खिलाफ और चीन के हित में ही करेगी, ऐसा पूर्वाग्रह रखना गलत है। जब तक म्यांमार में शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली नहीं हो जाती, तब तक भारतीय हितों के लिए म्यांमार के नेतृत्व से प्रभावी तरीके से निपटना होगा। अभी 22 जनवरी को ही भारत ने म्यांमार को कोविशिल्ड वैक्सीन की 15 लाख डोज मुहैया कराई है। इसके अतिरिक्त म्यांमार की नौसेना को उसकी पहली पनडुब्बी आइएनएस सिंधुवीर भारत द्वारा ही उपहार में दी गई है। साथ ही, म्यांमार अपनी कई आवश्यकताओं के लिए भारत पर निर्भर है, भारत को यह समझ कर कार्य करना चाहिए।


Next Story