सम्पादकीय

साउथ अफ्रीका दौरा और टीम इंडिया की अधूरी तैयारी! अतीत की गलतियों से सबक क्यों नहीं लेता BCCI

Gulabi
25 Dec 2021 5:28 PM GMT
साउथ अफ्रीका दौरा और टीम इंडिया की अधूरी तैयारी! अतीत की गलतियों से सबक क्यों नहीं लेता BCCI
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साउथ अफ्रीका दौरा और टीम इंडिया की अधूरी तैयारी
कहते हैं इतिहास कई बार खुद को दोहराता है और कहा तो ये भी जाता है कि जो समझदार होते हैं वो अतीत की गलतियों से सबक लेते हैं और दोबारा वहीं काम नहीं करते है, जिससे उन्होंने अपने इतिहास से सबक लिया हो. लेकिन, बीसीसीआई (BCCI) को शायद इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है. पिछले एक दशक में हर बार साउथ अफ्रीका (India vs South Africa) के दौरे पर बीसीसीआई वहीं काम करती है जिसके चलते सीरीज हारने पर टीम इंडिया को खरी-खोटी सुननी पड़ती है, लेकिन बोर्ड है कि बदलने को तैयार ही नहीं. बल्लेबाजों को हर बार अभ्यास मैच की कमी अखरती रही. ठीक है इस बार ये दलील दी जा सकती है कि कोविड के चलते साउथ अफ्रीका दौरे के कार्यक्रम में आखिरी मौके पर बदलाव हुए, लेकिन सच तो ये है कि पहले वाले कार्यक्रम में भी टीम इंडिया के लिए अभ्यास मैच नहीं थे.
हैरानी की बात है कि टीम इंडिया ने 2013 में जो गलती की 2018 में उससे बड़ी गलती की. 2013 में तो एक अभ्यास मैच रखा गया था, लेकिन वो बारिश के चलते धुल गया और फिर टीम इंडिया को बिना किसी अभ्यास मैच के चलते ही उतरना पड़ा. चेतेश्वर पुजारा, विराट कोहली (Virat Kohli) और अंजिक्य रहाणे (Ajinkya Rahane) ने तो अपने पहले अफ्रीकी दौरे में रन तो बनाये लेकिन शिखर धवन और रोहित शर्मा (Rohit Sharma) की नाकामी टीम इंडिया को भारी पड़ी और उन्होंने सीरीज गंवा दी.
2018 में तो कोहली-शास्त्री और बीसीसीआई ने तो हद कर दी…
2018 में तो हद हो गयी थी. उस सीरीज के लिए भी तैयारी एकदम सही नहीं थी. पिछली बार तो 4 मैचों की टेस्ट सीरीज बीसीसीआई ने जबरदस्ती 3 मैचों की सीरीज में बदल दिया था. एक टीवी चैनल को फायदा दिलाने के लिए, ताकि श्रीलंका के खिलाफ भारत में ही एक वन-डे सीरीज आयोजित कर ली जाए. एक बेहद अहम टेस्ट सीरीज से पहले श्रीलंका के ख़िलाफ वन-डे सीरीज़ में आत्मविश्वास बढाने की सोच शायद रवि शास्त्री की हो सकती हो. पिछली बार तो आलम ये रहा था कि कप्तान कोहली की शादी के चक्कर में पूरी टीम ही अफ्रीका देर से पहुंची. 2018 में भी तर्क दिया गया था कि कम से कम 2 अभ्यास मैच होने चाहिए थे. लेकिन, उस समय भी अद्भुत दलील दी थी शास्त्री ने. कहा था की हम नेट्स पर ही गंभीर अभ्यास करके इन पिचों के लिए अभ्यास कर लेंगे. आज शास्त्री टीवी प्रोमो के लिए ये कह रहें है कि वो 1992 में भी पहली बार अफ्रीका जाने वाली टीम का हिस्सा थे, लेकिन उस दौरे का सबक कोच के तौर पर शास्त्री भूल गये थे. उन्होंने ये सबक नहीं लिया था कि उस दौर में भी कम अनुभवी मेजबान को एक बेहद मजबूत और अनुभवी टीम इंडिया टेस्ट सीरीज में हरा नहीं पायी थी.
कोहली ने प्रैक्टिस मैच नहीं होने पर चुप्पी क्यों साधी?
हैरानी की बात है कि हर संवेदनशील मुद्दे पर भी अपनी राय साफगोई से रखने वाले कप्तान कोहली ने इस बार भी प्रैक्टिस मैच नहीं रखे जाने पर चुप्पी साध ली है. जबकि कोहली ये बात बखूबी जानते हैं कि इस बात का खामियाजा भारत को हर अफ्रीका दौरे में भुगतना पड़ा है. क्या एक बार फिर यही बात उन्हें कचोटेगी, क्योंकि वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में तो न्यूज़ीलैंड के खिलाफ यही हुआ था. कीवी टीम इंग्लैंड के साथ करीब महीने पहले से टेस्ट सीरीज के अभ्यास के साथ अहम फाइनल में उतर रही थी जबकि भारत आधी-अधूरी तैयारी के साथ.
कोच कर्स्टन की रणनीति को भूल गये कोच द्रविड़?
ये ठीक है कि कोच के तौर पर राहुल द्रविड़ आखिरी लम्हों में कोई बदलाव नहीं करवा सकते थे, लेकिन उन्हें भी तो ये बात अभी तक याद होगी कि कैसे 2010 के दौरे पर उस वक्त के कोच गैरी कर्स्टन ने केपटाउन में अपनी ही एकेडमी में 10 दिन का कैंप लगवाया था. द्रविड़ ,सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण समेत कई सीनीयर खिलाड़ी कोच के साथ पहले ही अफ्रीका के लिए रवाना हो गये थे, जबकि टीम इंडिया न्यूज़ीलैंड के साथ वन-डे सीरीज खेल रही थी. इसे महज इत्तेफाक ही नहीं कहा जा सकता है कि अब तक के 7 दौरौं पर टीम इंडिया सिर्फ एक ही मौके पर सीरीज़ बिना हारे भारत लौटी है और वो तब जब कर्स्टन और धोनी ने साउथ अफ्रीका में पहले जाकर अभ्यास मैच खेलने को प्राथमिकता दी थी.
पहले वन-डे सीरीज का आयोजन बेहतर नहीं होता?
इस बार भी टेस्ट सीरीज के बाद वन-डे सीरीज का आयोजन होगा. पिछली बार भी सुनील गावस्कर ने कहा था कि टीम इंडिया को वहां पहले वन-डे सीरीज खेलनी चाहिए थी, क्योंकि इससे 4-5 खिलाड़ियों को जरूर फायदा होता. 1996 के डरबन टेस्ट जो बॉक्सिंग डे टेस्ट यानि कि 26 दिसंबर से शुरू हुआ था, उस मैच में भी टीम इंडिया को पहले टेस्ट में कम तैयारी के साथ उतरने के चलते काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी थी. सिर्फ 66 रन पर वो टेस्ट की दूसरी पारी में आउट हो गये थे और मुझे अभी भी याद है कि किस तरह से गावस्कर और शास्त्री ने पूरी टीम और बीसीसीआई की धज्जियां उड़ा दी थी. आज के दौर में तो उस जैसी क्‍या उसकी आधी आलोचना की उम्मीद भी आप खेलों का प्रसारण करने वाले चैनल्स पर नहीं देख सकतें हैं, लेकिन ये बात बहुत मायूस करती है कि आखिर में बीसीसीआई बार बार इतिहास की घटनाओं से सबक क्यों नहीं लेता है.
फाइनल फ्रंटियर के लिए तैयारी हो सकती थी और गंभीर
अगर वाकई में टीम इंडिया साउथ अफ्रीका को फाइनल फ्रंटियर मानता है तो उसे कम से कम से अपनी तैयारी को लेकर काफी गंभीरता दिखानी चाहिए. हो सकता है कि इस बार टीम इंडिया की तैयारी वाली कमी की बात छिप जाए, क्योंकि अफ्रीकी टीम बहुत मज़बूत नहीं है लेकिन हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि टेस्ट टीम के बल्लेबाज , ख़ासकर अनुभवी बल्लेबाज बहुत शानदार फॉर्म से नहीं गुजर रहें हैं और ऐसे में 3-4 भले ही ना सही, लेकिन 1-2 अभ्यास मैच से टीम की तैयारी बेहतर हो सकती थी.

विमल कुमार
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