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महाशय जी एक बड़ा नाम जो हमेशा जीवित रहेगा।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। महाशय जी एक बड़ा नाम जो हमेशा जीवित रहेगा। वह करोड़ों लोगों की प्रेरणा स्रोत थे। बड़े ही जिन्दादिल, आर्यसमाजी, देशभक्त, समाजसेवी, मेहनतकश इंसान थे। कहने को तो वह अपनी भरपूर जिन्दगी जी कर गए हैं, परन्तु ऐसे इंसान का कभी भी जाना दुःखदायी लगता है। जब हम जीवन जीते हैं और ताजगी तथा सकारात्मकता के साथ जीते हैं तो यही सुख है। जब मौत आती है तो दुःख होता है। यही जिन्दगी का सार है।
1982 में जब से अश्विनी जी और मैं दिल्ली आए तब से महाशय जी ने हर पल हमारे सर पर हाथ रखा। हमारे हर सुख-दुःख के साथी थे। यहां तक कि बेटे आदित्य की शादी में नाना की मिलनी भी उन्होंने ही की थी। वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के 16 साल से ब्रैंड अम्बेसडर थे। कोई फंक्शन हो, हैल्थ कैम्प हो या कहीं प्रोग्राम स्पोंसर करने की बात हो, कहीं पीछे नहीं हटते थे। अश्विनी जी के जाने पर उन्हें एक पिता के समान ही दुःख था।
वे इस उम्र में भी सबके लिए प्रेरणा थे। उनकी सेहत का राज था आज भी अपने सारे काम खुद करना, वह वक्त के पाबंद थे। अनुशासित जीवन जीते थे और खूब चैरिटी करते थे। वे अक्सर कहते थे 'पैसे में सुख दो घड़ी का सेवा में शांति जिन्दगी भर की।' रहम दिल ऐसे थे कि कोई भी मदद ले लेता था। वे एजुकेशन में इसलिए काम करते थे कि जो शिक्षा उन्हें नहीं मिल सकी कम से कम वह दूसरे के बच्चों को मिल सके। महाशय जी खुद ही अपने ब्रैंड के एम्बेसडर थे। वह किसी सेलिब्रिटी को लेने के सख्त खिलाफ थे। कहते थे मसालों के बारे में मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता है इसलिए इसका विज्ञापन कोई सेलिब्रिटी क्यों करेगी। वह 12 साल की उम्र से मसालों का कारोबार कर रहे थे। हथेली पर मसाले रखकर उनकी पहचान बता देते थे।
मुझे आज भी याद है कि जब अश्विनी जी दिल्ली में पंजाब केसरी को स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे ताे वे उन्हें अपनी सफलता और मेहनत की अपनी जिन्दगी की सच्ची कहानी सुनाते थे क्योंकि दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर अखबार को स्थािपत करना कोई आसान काम नहीं था। वह अश्विनी जी को अपने तांगा से कारोबार की कहानी सुना कर प्रेरित करते और जब पंजाब केसरी दिल्ली राष्ट्रीय स्तर पर छा गई तो सबसे पहले उन्होंने उनकी पीठ थपथपाई जो उनका स्टाइल था। जब अश्विनी जी की सफलता पर उनके रिश्तेदारों ने उनको तंग करना शुरू किया तो उन्होंने उनको बड़ा सख्त पत्र भी लिखा और समझाया भी परन्तु जब उन पर असर नहीं हुआ तो हमेशा अश्विनी जी को कहते थे, ''अपने पंजाबियों की यही मार है अपने ही टंग खिचदें ने'' पर तू अपना हौसला न छड़ीं, तू लाला जी दा शेर पोता ते रमेश चन्द्र दा लायक पुत्र है, जो खानदान दा नाम रोशन कर रहे हैं। तेरी कलम विच लालाजी ते रामेश दी ताकत है। वाकयी में अश्विनी जी उनकी इन बातों से बहुत प्रेरणा लेते थे।
यही नहीं जब मैंने 16 साल पहले वरिष्ठ नागरिक क्लब की स्थापना की तोे वे ब्रैंड एम्बेसडर बने और उन्होंने पहले हैल्थ कैम्प की शुरूआत भी की। मुझे आज भी याद है जब विज्ञान भवन में मेरी पहली पुस्तक आशीर्वाद का विमोचन उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत जी द्वारा था तो इनको हमने मंच पर बैठाया। जैसे ही भैरों सिंह जी आए इन्हें देखकर एकदम बोले ''अरे आप, मैं तो सोचता था कि कहीं आपकी फोटो पर हार टंगा होगा।'' वे उन्हें देखकर बहुत हैरान हुए थे। यही नहीं जब वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब का पहली बार फैशन शो ललित होटल में हुआ तो उन्होंने क्लब के सदस्यों के साथ अभ्यास भी किया और बार-बार मुझे पूछते थे मैं ब्राउन सूट डालूं या अचकन। इनकी जब स्टेज पर एंट्री होती थी तो इन पर कई गानों से रिहर्सल की गई। अंत में शहनशाय गाने पर सभी राजी हुए क्योंकि वाकई वे मसालों की दुनिया और सभी देश के बुजुर्गों के बेताज बादशाह थे। यही नहीं उनके हस्पताल में बहुत से हमारे निःशुल्क कैम्प लगते थे। एक बार एक बुजुर्ग ने मुझे शिकायत की कि उनके अस्पताल में मेरा ठीक इलाज नहीं हुआ। मैंने उनको फोन किया तो उन्होंने कहा अभी भेज। मैंने उस बुजुर्ग को कार में उनके पास भेजा और वे उन्हें अपनी कार में बिठाकर अस्पताल लेकर गए। यह उनकी बातें भुलाई नहीं जा सकती। अभी अश्विनी जी के जाने के बाद जब मुझे उनके रिश्तेदारों ने तंग करना शुरू किया तो यही शख्स थे जिन्होंने उन्हें बहुत समझाया (परन्तु उन पर असर नहीं हुआ) शायद ऐसा हौसला भी कोई-कोई देता है। उनके जाने के बाद वे सोशल मीडिया में कई अपनी वीडियो द्वारा छाए हुए हैं।
उन्होंने जून के महीने में मुझे फोन किया क्योंकि अब उनकी बात सही ढंग से समझ नहीं आती थी तो उनके साथ रहने वाले विनय आर्य जी ने मुझे उनकी बात समझायी कि वह आर्य समाज का पंचकुला में बहुत बड़ा स्थान बनवा रहे हैं। उसके ट्रस्टी के रूप में मुझे लेना चाहते हैं तो मैंने कहा कि आपको मुझे पूछना भी नहीं चाहिए। जहां मर्जी आप मेरा नाम लिख दो क्योंकि आपस में हमारा बहुत ही प्यार का रिश्ता था। यही नहीं जब मैंने कोरोना के समय अपने देशभर के बुजुर्गों के लिए आनलाइन प्रतियोगिता शुरू की तो मैंने कहा कि आप पुरस्कार व्यवस्था अर्थात् स्पोंसरशिप कर दो तो हमेशा मुझे ऐसे कहते थे ''ओ बावा तेनूं मैं न नहीं कर सकदा।' वाकई उन्होंने हमेशा मुझे न नहीं कही। हर समय सेवा के लिए तैयार रहते थे। उन्हें अपने कपड़े, लाल पगड़ी, माला का बहुत शौक था। हर साल अपना जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाते थे। उनको अखबारों में अपनी फोटो, अपनी खबर देखने का बहुत शौक था। जब भी मैं कुछ लिखती एक-एक लाइन पढ़ते और मेरे साथ उस पर बातचीत करते। विनय आर्य जी बताते हैं कि वे अखबार को सम्भाल कर रख लेते थे। उनके साथ हमेशा राजीव सचदेव रहता था, जो उनकी बात समझ कर मुझे समझाता था। शायद मैं अपनी कलम से अपना और उनका रिश्ता जो एक बाप-बेटी का प्यार, विश्वास, सम्मान का था समझने में असमर्थ हूं क्योंकि वे ऐसी शख्सियत थे कि उनकी बातें थोड़े से कॉलम में नहीं लिखी जा सकतीं। उनके बारे में एक बड़ा ग्रंथ भी लिखा जाए वो थोड़ा है और उनका जाना हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है। कुल मिलाकर 2020 मेरी जिन्दगी का सबसे काला पन्ना है, जिसमें मैंने अपने पति साथी अश्विनी जी को खोया। अपने क्लब की राज माता को खोया और पिता तुल्य भोलानाथ विज जी और महाशय जी को खोया।
Gulabi
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