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अब तक के ट्रेंड से साफ है कि बंगाल में ममता बनर्जी फिर से वापसी कर रही हैं
दुष्यंत कुमार। रविकांत सिंह। अब तक के ट्रेंड से साफ है कि बंगाल में ममता बनर्जी फिर से वापसी कर रही हैं. संभव है कि तृणमूल कांग्रेस की सरकार दो-तिहाई बहुमत से बन जाए. लोकसभा चुनाव हो या पिछला विधानसभा चुनाव, उससे कुछ संकेत साफ झलक रहे हैं. ये संकेत भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और तृणमूल कांग्रेस से ज्यादा कांग्रेस और उसके आला नेताओं को सावधान करते हैं. बात सिर्फ बंगाल की नहीं है, कांग्रेस का दायरा वहां भी सिकुड़ रहा है जहां उम्मीदें परवान चढ़ रही थीं. यानी कि केरल और पुडुचेरी जैसे प्रदेश में भी कांग्रेस 'शिखर से शून्य' की ओर अग्रसर है.
बात सबसे पहले बंगाल की. दोपहर के आंकड़े बताते हैं कि बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी 200 सीटों के आसपास और बीजेपी 90 के इर्द-गिर्द चल रही है. ममता बनर्जी के लिए यह चौंकाने वाला आंकड़ा नहीं है क्योंकि पिछले दो विधानसभा चुनाव देखें तो उनके लिए यह उपयुक्त है. बीजेपी के लिए जरूर बड़ी बढ़त है क्योंकि कभी 3 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी आज दहाई आंकड़े में खेल रही है. लेकिन सवाल है कि किसकी बदौलत और बीजेपी को यह जीत किसने बख्श दी है. जवाब साफ है कि कांग्रेस और लेफ्ट ने बीजेपी को बैठे-बिठाए सीटों की सौगात दी है.
कहां से कहां गई कांग्रेस
दोपहर के रुझानों से साफ है कि कांग्रेस और लेफ्ट शून्य पर टिके थे और आगे भी इसमें बहुत ज्यादा सुधार की गुंजाइश नहीं दिखती. इस शर्मनाक हार को पिछले चुनाव के बरक्स देखना होगा. 2016 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने 293 सीटों पर चुनाव लड़कर 211 सीटें जीती थीं. 2011 की तुलना में उसे 27 सीटों का फायदा हुआ था. वोट परसेंटेज 45 परसेंट के आसपास था. दूसरे नंबर पर कांग्रेस थी जिसने 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 44 पर विजय हासिल की थी. उसे 2011 की तुलना में 2 सीटों का फायदा हुआ था. तीसरे नंबर पर सीपीएम रही थी जिसने 148 सीटों पर चुनाव लड़कर 26 पर जीत हासिल की थी. चौथे नंबर पर बीजेपी थी जिसने 291 सीटों पर चुनाव लड़कर 3 सीटें जीती थीं.
बीजेपी के हुए कांग्रेस के वोट
ऊपर के ये आंकड़े बताते हैं कि इस चुनाव में न तो टीएमसी और न ही बीजेपी को घाटा हुआ है. टीएमसी ने अपना वोट बैंक और अपनी सीटें लगभग बरकरार रखी हैं. सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को होता दिख रहा है जो 3 सीटों से बढ़कर दहाई के अंक में पहुंच रही है. अगर सबसे ज्यादा बदहाली किसी की होती दिख रही है तो वह कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां हैं.
लेफ्ट को बहुत ज्यादा गिनती में नहीं रख सकते क्योंकि बात जब विपक्ष की आती है तो कांग्रेस और सोनिया गांधी-राहुल गांधी का ही नाम आता है. लेकिन बंगाल में किसी का नाम काम नहीं आया और पिछली बार की 44 सीटें गंवा दी. जानकार बताते हैं कि बीजेपी को बंपर सीटें मिलती दिख रही हैं तो इसमें सबसे बड़ा रोल कांग्रेस और लेफ्ट का है. इन दोनों पार्टियों ने अपनी सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी हैं. पिछली बार की 70 सीटें इस बार बीजेपी के खाते में जाती दिख रही हैं.
कहां टिकती है कांग्रेस
इसका असर क्या होगा? यह सवाल अभी से तैरने लगा है. बड़ा असर यह होगा कि ममता बनर्जी की धमक दिल्ली तक पहुंचेगी. कभी सोनिया गांधी और राहुल गांधी 'दिल्ली' के खिलाफ अपने को 'स्टार आइकॉन' बोलते थे. अब यह तमगा ममता बनर्जी की झोली में जाता दिख रहा है. संसद में भी संख्याबल और मुखर विरोध के हिसाब से देखें तो टीएमसी ही असली विपक्षी दल का हकदार होगी. ममता बनर्जी ने चुनाव प्रचार में यह भी कहा था कि बंगाल क्या, बनारस में जाकर नरेंद्र मोदी को हराएंगे. इस बात से साफ है कि उन्होंने पहले ही बीजेपी के सामने खुद को प्रोजेक्ट कर लिया था. उन्होंने बता दिया था कि कांग्रेस नहीं, टीएमसी ही बीजेपी को टक्कर देगी. इसी के साथ साल 2024 के लोकसभा चुनाव की बिसात बिछनी शुरू हो जाएगी.
केरल-तमिलनाडु का संकेत
केरल में शुरुआती रुझानों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के नेतृत्व वाले सत्ताधारी वाम लोकतांत्रिक मोर्चा गठबंधन (एलडीएफ) को राज्य की 140 में से 75 सीटों पर बढ़त हासिल हुई है जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्षी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) 56 सीटों पर आगे है. केरल की राजनीति में सत्ता हमेशा एलडीएफ और यूडीएफ के ही इर्दगिर्द घूमती रही है. बारी-बारी से दोनों गठबंधन सत्ता पर काबिज होते रहे हैं. एलडीएफ यदि सत्ता बचाने में सफल रहती है तो राज्य की यह परंपरा जरूर टूटेगी. इससे सबसे बड़ा घाटा कांग्रेस और राहुल गांधी को होने जा रहा है. राहुल गांधी वायनाड से सांसद हैं और इस बार उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी कि यूडीएफ सत्ता में आ जाए. ऐसा होता नहीं दिख रहा है. ऐसे में अपने पुरातन राज्य में भी कांग्रेस की हार निश्चित है.
तमिलनाडु में डीएमके बड़ी बढ़त बनाए हुए है और 130 के आसपास सीटें मिलती दिख रही हैं. दूसरी ओर सत्तारूढ़ एआईएडीएमके 100 के आसपास है. पिछले चुनाव से डीएमके को 30 से ज्यादा सीटों का फायदा है जबकि एआईएडीएमके को 35 के आसपास सीटों का नुकसान. तमिलनाडु में कांग्रेस और एआईएडीएमके के साथ गठबंधन है. लेकिन कांग्रेस का यहां कोई रोल नहीं दिखता क्योंकि पूरा चुनाव डीएमके चीफ स्टालिन के नेतृत्व में लड़ा गया. पुडुचेरी में भी कांग्रेस के लिए झटका कह सकते हैं क्योंकि वहां शुरू से कांग्रेस गठबंधन का राज रहा है, लेकिन इस बार परंपरा टूटती नजर आ रही है. केरल में एनडीए सरकार बनाने की ओर अग्रसर है.
सोनिया-राहुल गांधी पर असर
विधानसभा चुनाव और उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए झटका साबित होंगे. खासकर राहुल गांधी के लिए क्योंकि उनके खिलाफ पार्टी के कुछ पुराने नेता लामबंद हुए हैं. ये नेता राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं. इनकी ये भी मांग है कि पार्टी अध्यक्ष का चुनाव सबकी राय-सहमति जानकर हो. हो सके तो पार्टी के अंदर चुनाव कराए जाएं. विधानसभा के चुनाव एक तरह से राहुल गांधी को अपनी बात धाक सिद्ध करने का मौका था जिसे वे गंवाते दिख रहे हैं. उनके करिश्मे पर पार्टी के बाहर और भीतर सवाल उठेंगे.
सवाल ये भी उठेंगे कि सोनिया गांधी किस आधार पर राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष का कमान देना चाहेंगी. केंद्र स्तर की राजनीति में भी सोनिया गांधी-राहुल गांधी की राजनीति पर सवाल उठेंगे. पूरा विपक्ष ममता बनर्जी के साथ खड़ा दिखेगा. इसमें समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, एनसीपी, आरजेडी, पीडीपी, डीएमके, नेशनल कांफ्रेंस और शिवसेना प्रमुख हैं.
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