सम्पादकीय

कहीं दीप जले, कहीं दिल: मंत्री पद मिलना कोई लॉटरी लगने जैसा नहीं है, इसके लिए करने पड़ते हैं बहुत सारे 'वर्क-होमवर्क'

Triveni
11 July 2021 4:51 AM GMT
कहीं दीप जले, कहीं दिल: मंत्री पद मिलना कोई लॉटरी लगने जैसा नहीं है, इसके लिए करने पड़ते हैं बहुत सारे वर्क-होमवर्क
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लोकतंत्र और संविधान बचाने की कसम खाकर वह जैसे ही बाहर निकले, हम उनकी ओर लपके।

लोकतंत्र और संविधान बचाने की कसम खाकर वह जैसे ही बाहर निकले, हम उनकी ओर लपके। वह भारी भीड़ से घिरे थे। हमें देखते ही उन्होंने कार्यकर्ताओं को किनारे कर दिया। उन्हेंं शुभकामना देते हुए हमने समय मांगा तो बोले, 'मुझे खुशी है कि आप मेरी आवाज जनता तक पहुंचा रहे हैं। कहिए कहां चलकर बात करें?' उनकी इस उदारता पर निछावर होते हुए मैंने तुरंत प्रस्ताव फेंका, 'कोने में ठीक रहेगा?' वह हंसते हुए बोले, 'क्यों नहीं! बस हमें अखबार के कोने में मत धकेल दीजिएगा। मेरी संघर्ष-कथा को यदि मुख्य पन्ने पर स्थान मिले तो जनता का बड़ा हित होगा।'

'आपको मंत्रिमंडल में शामिल होने पर कैसा लग रहा है?'
उनकी यह बात सुनकर मैं दंग रह गया। ऐसे समय में जब जनहित का भयंकर 'टोटा' पड़ा हो, उसकी बात भी करना किसी दुस्साहस से कम नहीं, तब उनका जनता और उसके हित के बारे में सोचना सोने पर सुहागा है। तसल्ली हुई कि सही आदमी से सवाल कर रहा हूं। बिना देरी किए मैंने बात जारी रखी, 'आपको मंत्रिमंडल में शामिल होने पर कैसा लग रहा है?' 'जी, मंत्री पद मिलना कोई लॉटरी लगने जैसा नहीं है।
पुरानी विचारधारा त्यागी, नई निष्ठा पकड़ी, पुरानी पार्टी एवं पुराने समीकरण तोड़े
हमने इसके लिए बकायदा होमवर्क किया है। पुरानी विचारधारा त्यागी। नई निष्ठा पकड़ी। पुरानी पार्टी एवं पुराने समीकरण तोड़े। जातीय, क्षेत्रीय और चुनावी-एंगल वाले कई टेस्ट पास किए। तब यहां तक आए हैं। इतनी मेहनत का फल तो मिलना ही था। अब मैं सुख और दुख जैसे सांसारिक चोंचलों से परे हो गया हूं। पहले मुझे जो विकराल समस्याएं लगती थीं, अब जरूरतें लगने लगी हैं। हमारे सोच का दायरा पेट्रोल-पंप के मीटर से भी ज्यादा बढ़ रहा है। हमें साफ और सिर्फ बेहतर दिखे इसलिए चश्मा भी बदल लिया है। इससे भ्रष्टाचार और महंगाई जैसी सारहीन चीजें दिखती ही नहीं। निवेदन है कि सवाल भी आप जरा सलीके वाले करें। ट्विटर जैसा व्यवहार कतई न करें।'
मेरे लिए जनसेवा सर्वोपरि
'आप बिल्कुल निसाखातिर रहें। हम बहुत जिम्मेदार हैं। यह सुनने में आया है कि नाराजगी के चलते आपको मौका दिया गया। आखिर किस बात से नाराज थे आप?' अपने सुर को और मधुर बनाते हुए हमने पूछ लिया। 'देखिए, हमें किसी पद की लालसा कभी नहीं रही। हमारा पूरा जीवन संघर्ष में बीता है। संघर्ष करते गए, पद अपने आप मिलते गए। हां, मेरे लोग जरूर नाराज थे। कार्यकर्ताओं ने हमें जिताने के लिए कड़ा संघर्ष किया था। उनका संघर्ष व्यर्थ हो जाता यदि मैं जनता की सेवा न कर पाता। बड़े दिनों बाद घर में बच्चे बहुत खुश हैं। कार्यकर्ताओं से ज्यादा रिश्तेदारों के फोन आ रहे हैं। इसके लिए हम आलाकमान के शुक्रगुजार हैं। दरअसल जब भी मुझे जनसेवा करने से वंचित किया जाता है, विद्रोही हो उठता हूं। इसके लिए मैं किसी बात का लिहाज नहीं करता। मेरे लिए जनसेवा सर्वोपरि है। वह हम हर हाल में करके रहेंगे। मेरे इस संकल्प के पीछे खास वजह है। बचपन में ही एक बड़े ज्योतिषी ने बताया था कि मेरी कुंडली में राजयोग है। फिर इसे नकारने वाले हम और आप कौन होते हैं!' वह अपने मंत्रालय की नई बनी इमारत की ओर निहारते हुए बोले।
आलाकमान को चकमक पत्थर नहीं, पारस चाहिए
तभी सामने से मास्क लगाए दूसरे सज्जन तेजी से निकलते दिखाई दिए। हमने उनको टोक दिया। 'भई, मैं 39 मिनट पहले तक मंत्री था, अब नहीं। अब मुझसे क्या पूछोगे?' हमने बड़ी मासूमियत से पूछा, मंत्रिमंडल से आपकी निकासी के पीछे क्या कारण रहे?' 'ज्यादा कुछ तो मुझे भी नहीं मालूम, पर सुनने में आ रहा है कि आलाकमान कहता है कि उसे चकमक पत्थर नहीं, पारस चाहिए। ऐसा बंदा हो जो एक साथ कई काम निपटा सके। विपक्षी इतने भर से ही लहालोट हैं कि कुछ पक्षियों के पर कतरे गए हैं। कुछ यह भी कह रहे हैं कि बहुत दिनों बाद आखिरकार सरकार के हाथ मास्टर-स्ट्रोक लगा है। बाकी असल स्ट्रोक किसे लगा है, यह आप लोग ही बताएंगे। मैं तो बस इतना जानता हूं कि मेरे प्रदेश में फिलहाल चुनाव नहीं हैं। मेरी किस्मत ही खराब है।' यह कहते हुए वह आगे बढ़ गए।
दूर एक 'चिराग' जल रहा था
तब तक भीड़ छंट चुकी थी। कसम खाने वाले मंत्री भी जा चुके थे। शाम का धुंधलका गहराने लगा था। मैं अखबार के दफ्तर की ओर निकल पड़ा। देखा, दूर अभी भी एक 'चिराग' जल रहा था।


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