सम्पादकीय

महंगाई से कुछ राहत

Rani Sahu
23 May 2022 2:00 PM GMT
महंगाई से कुछ राहत
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भारत सरकार को देश की जनता के दर्द और गुस्से के सामने झुकना ही पड़ा

अंततः भारत सरकार को देश की जनता के दर्द और गुस्से के सामने झुकना ही पड़ा। यही लोकतंत्र की ताकत है। पेट्रोल 9.5 रुपए और डीजल 7 रुपए प्रति लीटर सस्ते किए गए हैं। सरकार ने पेट्रोल पर 8 रुपए और डीजल पर 6 रुपए प्रति लीटर उत्पाद शुल्क कम किया है। नवंबर, 2021 में चुनावों की घोषणा के मौके पर भी केंद्रीय टैक्स कम किया गया था। कुल टैक्स कम करने से पेट्रो पदार्थ कोरोना महामारी से पहले वाले स्तर पर आ गए हैं। करीब 9 करोड़ उज्ज्वला गैस लाभार्थियों को भी साल भर के 12 सिलेंडरों पर 200 रुपए प्रति के हिसाब से सबसिडी दी जाएगी। यानी गैस सस्ती की गई है। यह जरूरी भी था, क्योंकि 90 लाख से ज्यादा उज्ज्वला लाभार्थियों ने पहला सिलेंडर ही नहीं भरवाया था। यह आंकड़ा सरकार के पास होगा। बेशक तेल पर उत्पाद शुल्क कम करने से सरकार का राजस्व करीब एक लाख करोड़ रुपए कम हो जाएगा और उज्ज्वला सबसिडी के कारण भी 6100 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ सरकार पर पड़ेगा, लेकिन महंगाई और मुद्रास्फीति को कम करने के लिए आम आदमी को यह राहत देना बेहद जरूरी था। इसके अंजाम कुछ भी हो सकते थे। औसत घर का बजट बिगड़ चुका था।

लोग एक वक़्त खाना बनाने लगे थे। जनता लगातार महंगे होते तेल और ईंधन गैस की मार झेलते हुए गुस्साने भी लगी थी। बीते कुछ दिनों में शीर्ष स्तर पर बैठकें की जा रही थीं और प्रधानमंत्री मोदी ने भी हस्तक्षेप किया कि पेट्रोल, डीजल, गैस को कुछ सस्ता किया जाए। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अनुशंसा की थी कि सरकार अपने हिस्से के उत्पाद शुल्क को घटाए, क्योंकि मालभाड़ा भी एक साल के अंतराल में 20 फीसदी से अधिक बढ़ चुका था, नतीजतन रोजमर्रा की बुनियादी चीजें भी महंगी हो रही थीं। थोक मूल्य सूचकांक और खुदरा महंगाई दर अपने उच्चतम स्तर पर हैं, लिहाजा सरकार को यह फैसला लेना पड़ा। यकीनन भारत सरकार का यह संवेदनशील फैसला है। अब पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 19.90 रुपए और डीजल पर 15.80 रुपए प्रति लीटर होगा। बेशक 2014 की तुलना में यह टैक्स भी काफी ज्यादा है, लेकिन बीते 8 सालों के दौरान अर्थव्यवस्था ने भी कई करवटें ली हैं। वैसे बीते 3 सालों के दौरान सरकार ने तेल पर उत्पाद शुल्क से 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक कमाए हैं। यह खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की स्वीकारोक्ति है। 2014 से आज तक सरकार इस टैक्स के जरिए 26-27 लाख करोड़ रुपए वसूल चुकी है।
बहरहाल सरकार की कर-व्यवस्था पर ज्यादा सवाल नहीं किए जाने चाहिए, क्योंकि वही पैसा देश के आधारभूत ढांचे, विकास और जन कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किया जाता रहा है, लेकिन टैक्स विवेकसम्मत हो, तो आम आदमी की कमर नहीं टूटती। अर्थशास्त्रियों का भी मानना है कि उत्पाद शुल्क कुछ और कम किया जा सकता है। यदि इसे 14 रुपए और 10 रुपए कर दिया जाए, तो सरकार को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा। अलबत्ता तेल जरूर सस्ता हो जाएगा और आम उपभोक्ता को राहत मिलेगी। केंद्र सरकार के इस फैसले के अनुपात में ही राज्य सरकारें अपना वैट या टैक्स कम करें, तो आम आदमी को तेल बहुत सस्ता मुहैया कराया जा सकेगा। मौजूदा फैसले के तुरंत बाद केरल सरकार ने अपना टैक्स इतना घटाया है कि वहां पेट्रोल करीब 12 रुपए प्रति लीटर सस्ता हो गया है। यह टैक्स कम करके भारत सरकार लोहा, इस्पात, सीमेंट, प्लास्टिक आदि की कीमतें भी कम करना चाहती थी, लिहाजा उन पर आयात शुल्क बढ़ाए गए हैं और निर्यात को भी महंगा किया गया है। बहरहाल मोदी सरकार को इसी तरह बेरोज़गारी पर भी कोई सार्थक और कारगर फैसला लेना चाहिए, क्योंकि देश की ताकत हमारी युवा-शक्ति बेरोज़गार है।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

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