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
विभूति नारायण राय। साल 2021 जाते-जाते कई खट्ठी-मीठी यादें दे गया है। कुछ हम भूल जाना चाहेंगे, पर कुछ यादें रहेंगी। सबसे महत्वपूर्ण है जनसंख्या के मोर्चे पर मिली दो उपलब्धियां, जिनकी कुछ वर्षों पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पहली बार देश में पुरुषों के मुकाबले ्त्रिरयों की संख्या ज्यादा हो गई है, और यह भी वर्षों के प्रयास से ही संभव हुआ है कि इस महादेश की जनसंख्या के अगले कुछ दशकों में स्थिर होते-होते कम होने की स्थिति आ गई है। कुछ वर्षों पूर्व कौन सोच सकता था कि एक घोषित समलैंगिक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बन जाएगा या फाल्गुनी नायर नाम की कोई महिला 100 करोड़ डॉलर से अधिक कीमती यूनिकॉर्न खड़ा कर लेगी। एक ओलंपिक में सात मेडल मिलना भी अकल्पनीय था। इन सारी उपलब्धियों के बीच इस वर्ष बहुत कुछ ऐसा भी घटा, जो न सिर्फ चिंताजनक और शर्मनाक था, बल्कि हमें इसलिए भी याद करना चाहिए, ताकि उनकी पुनरावृत्ति से बचा जा सके।
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