सम्पादकीय

RSS प्रमुख मोहन भागवत की इस सीख से कुछ हिंदू संगठन हो सकते हैं असहमत लेकिन...!

Gulabi Jagat
4 Jun 2022 5:13 PM GMT
RSS प्रमुख मोहन भागवत की इस सीख से कुछ हिंदू संगठन हो सकते हैं असहमत लेकिन...!
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की ओर से ज्ञानवापी प्रकरण पर दिया गया यह वक्तव्य बेहद महत्वपूर्ण है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की ओर से ज्ञानवापी प्रकरण पर दिया गया यह वक्तव्य बेहद महत्वपूर्ण है कि इस तरह के विवादों को आपसी सहमति से हल किया जाना चाहिए और यदि अदालत गए हैं, तो फिर जो भी फैसला आए, उसे सभी को स्वीकार करना चाहिए। वास्तव में इस तरह के विवादों को हल करने का यही तार्किक एवं न्यायसगंत रास्ता है और इसी रास्ते पर चलकर शांति-सद्भाव के वातावरण को बल प्रदान किया जा सकता है।
संघ प्रमुख ने यह भी स्पष्ट किया कि अब आरएसएस किसी मंदिर के लिए वैसा कोई आंदोलन नहीं करने वाला, जैसा उसने अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर को लेकर किया था। उनका यह कथन इसलिए उल्लेखनीय है, क्योंकि इन दिनों काशी के ज्ञानवापी परिसर के साथ मथुरा के कृष्ण जन्मस्थान परिसर का मसला भी सतह पर है और दिल्ली की कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का भी, जहां के शिलालेख पर ही यह लिखा है कि इसे 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया।
ये मामले भी उसी तरह अदालतों के समक्ष पहुंच गए हैं, जैसे ज्ञानवापी परिसर का। इसी के साथ देश के दूसरे हिस्सों में विभिन्न स्थानों पर मंदिरों के स्थान पर बनाई गई मस्जिदों के मामले भी उठाए जा रहे हैं। इसे देखते हुए संघ प्रमुख ने यह जो कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग देखना सही नहीं, उससे कुछ हिंदू संगठन असहमत हो सकते हैं, लेकिन उनके लिए विदेशी हमलावरों की ओर से तोड़े गए हर मंदिर की वापसी के लिए बिना किसी ठोस दावे के मुहिम चलाना ठीक नहीं। इसके बजाय उन्हें अदालतों का दरवाजा खटखटाना चाहिए। इसी के साथ किसी को यह अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए कि हिंदू समाज ज्ञानवापी और मथुरा जैसे अपने प्रमुख मंदिरों के ध्वंस को भूल जाए, क्योंकि यहां खुली-नग्न आंखों से यह दिखता है कि इन मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदों का निर्माण किया गया।
इस सच से मुस्लिम समाज भी परिचित है और उसे उससे मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। इसलिए और नहीं, क्योंकि काशी की ज्ञानवापी मस्जिद हो या मथुरा की शाही ईदगाह, ये हिंदू समाज को मूर्तिभंजक आक्रांताओं की बर्बरता की याद दिलाते हैं। यह देखना दुखद है कि कुछ मुस्लिम नेता उस औरंगजेब का गुणगान करने में लगे हुए हैं, जिसने काशी के ज्ञानवापी में भी कहर ढाया और मथुरा के कृष्ण जन्मस्थान मंदिर में भी।
यह ठीक है कि काशी, मथुरा के मामले एक बार फिर सतह पर आने के बाद 1991 के धर्मस्थल कानून का उल्लेख किया जा रहा है, लेकिन एक तो यह कानून कोई पत्थर की लकीर नहीं और दूसरे, खुद सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि यह कानून किसी धर्मस्थल के मूल स्वरूप के आकलन को प्रतिबंधित नहीं करता।

दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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