- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- सौर ऊर्जा लक्ष्य की...
योगेश कुमार गोयल: ऊर्जा संबंधी मामलों की स्थायी समिति ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र सरकार देश में अक्षय ऊर्जा की सत्तर फीसद योजनाओं को लागू करने का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई है। अभी तक केवल बीस फीसद सौर पार्कों को ही विकसित किया जा सका है। इस रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक पचास से अधिक सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के जरिए चालीस गीगावाट सौर ऊर्जा पैदा करने का लक्ष्य तय किया था। लेकिन हालत यह है कि तीन साल बाद भी ग्यारह सौर पार्कों को तो मंत्रालय से मंजूरी भी नहीं मिल पाई है।
इस विलंब के कारण लक्ष्य निर्धारित करने की पूरी कवायद अर्थहीन हो गई है। स्थायी समिति के मुताबिक ग्यारह और सौर पार्कों को मंजूरी में देरी की वजह से चालीस गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य में 6.2 गीगावाट कमी आने की संभावना है।
स्थायी समिति की रिपोर्ट में बताती है कि अब तक केवल सत्रह राज्यों में कुल पचास सौर पार्कों में से बाईस हजार आठ सौ उनयासी मेगावाट क्षमता के उनतालीस सौर ऊर्जा पार्क स्थापित करने के लिए स्वीकृति प्रदान की गई है। इनमें से भी महज आठ पार्कों का ही आधारभूत ढांचा पूर्ण रूप से विकसित हो पाया है, जिनमें केवल छह हजार पांच सौ अस्सी मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है।
इसके अलावा चार सौर पार्कों को आंशिक रूप से विकसित किया गया है, जिनकी सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता एक हजार तीन सौ पैंसठ मेगावाट बताई जा रही है। इसी पर चिंता जाहिर करते हुए स्थायी समिति का कहना है कि मंत्रालय 2015 से 2020 तक पांच वर्षों की अवधि में केवल आठ सौर पार्क ही विकसित कर सका है। वर्ष 2020 के बाद पूरी तरह से विकसित सौर पार्कों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि ये सौर पार्क परियोजनाएं आखिर लटक क्यों गर्इं? मंत्रालय ने ग्यारह सौर पार्क योजनाओं को लेकर विलंब के कारण भी नहीं बताए। इसलिए समिति ने इस देरी पर मंत्रालय से जवाब मांगा है।
समिति ने इस पर भी खेद जताया कि विभिन्न राज्य सरकारों के पास उपलब्ध अधिशेष भूमि के उपयोग और सभी विमानपत्तनों को कोच्चि विमानपत्तन की तर्ज पर सौर परियोजना लगाने के लिए समिति की सिफारिश पर भी संबंधित मंत्रालय ने कोई पहल नहीं की।
हालांकि लोकसभा में 'ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022' पर चर्चा के दौरान विद्युत, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने हाल ही में बताया था कि भारत सरकार पर्यावरण की चिंता के साथ ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम कर रही है और अक्षय ऊर्जा उत्पादन के लक्ष्य को प्राप्त करने में बड़ी अर्थव्यवस्थाएं और विकसित देश भी भारत से पीछे हैं।
इस ऊर्जा संरक्षण विधेयक में आधुनिक ऊर्जा क्षमता के प्रावधान वाले प्रस्ताव हैं, जिनमें बड़ी इमारतों के लिए हरित और टिकाऊ विद्युत उपयोग वाले मानक बनाए जाएंगे, जिन्हें राज्य सरकार बदल सकती है। विधेयक में कम से कम एक सौ किलोवाट के विद्युत कनेक्शन वाली इमारतों के लिए नवीकरणीय स्रोत से ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का प्रावधान है।
सरकार का मानना है कि सभी देश जलवायु परिवर्तन और बढ़ते वैश्विक तापमान से निपटने के लिए कार्बन डाईआक्साइड और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना चाहते हैं, और इसी संकल्प के तहत अक्षय ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की दिशा में अभियान शुरू हुआ है।
पेरिस में हुए संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (काप-21) में भारत ने यह तय किया था कि वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन क्षमता का चालीस फीसद हिस्सा अक्षय ऊर्जा और स्वच्छ ऊर्जा जैसे गैर-जीवाश्म ईंधन वाले स्रोतों से पूरा किया जाएगा। इसी के तहत सरकार विद्युत चालित वाहनों की चार्जिंग भी अक्षय ऊर्जा से करने को बढ़ावा देने में लगी है। सरकार के सामने बड़ी चुनौती पेट्रोलियम पदार्थों और कोयले के आयात पर निर्भरता खत्म करने की है।
दरअसल कोयला, गैस, पेट्रोलियम आदि ऊर्जा के परंपरागत साधन सीमित मात्रा में होने के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी हानिकारक साबित हो रहे हैं। ऐसे में बेहद जरूरी है कि ऊर्जा के ऐसे गैर परंपरागत स्रोतों को तेजी से विकसित किया जाए, जिनके क्षय भी न हो और वे प्रदूषण फैलाने वाले भी न हों।
यही कारण है कि दुनियाभर में ऐसी ऊर्जा और तकनीक विकसित करने के प्रयास जारी हैं, जिनसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन न्यूनतम हो सके, धरती का तापमान बढ़ने से रोका जा सके और पर्याप्त ऊर्जा भी उपलब्ध हो। दुनियाभर में करीब चालीस फीसद बिजली कोयले से बनाई जाती है, जबकि भारत में साठ फीसद से ज्यादा बिजली कोयले और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले दूसरे ऊर्जा स्रोतों से पैदा की जाती है।
सार्वजनिक क्षेत्र के सवा सौ से भी ज्यादा तापबिजली घरों में रोजाना अठारह लाख टन से भी ज्यादा कोयले की खपत होती है। इसी कोयले से न केवल वातावरण में बहुत बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जित होता है, बल्कि इतना कोयला जलाने से इससे होने वाली गर्मी और पारे का प्रदूषण भी पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रहा है।
देश में ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच अंतर तेजी से बढ़ रहा है। औद्योगिक क्षेत्र के अलावा कृषि क्षेत्र और घरेलू कार्यों में भी ऊर्जा की मांग और खपत पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत चार फीसद की दर से बढ़ रही है। राष्ट्रीय पावर पोर्टल के अनुसार देश में साढ़े तीन लाख मेगावाट से भी अधिक बिजली का उत्पादन किया जा रहा है, लेकिन यह हमारी कुल मांग से करीब ढाई फीसद कम है।
अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने से हमारी ऊर्जा की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर खत्म हो सकता है। इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन स्तर में भी सुधार होगा, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि सौर ऊर्जा पार्क जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों को विकसित करने में कोई ढिलाई नहीं बरती जाए।
आज केवल भारत ही नहीं, बल्कि समूची दुनिया के समक्ष ऊर्जा की महत्त्वपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए सीमित प्राकृतिक संसाधन हैं, साथ ही पर्यावरण असंतुलन और विस्थापन जैसी गंभीर चुनौतियां भी हैं। इन गंभीर समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए अक्षय ऊर्जा ही ऐसा बेहतरीन विकल्प है, जो पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के साथ-साथ ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने में भी कारगर साबित हो सकता है।
अक्षय ऊर्जा को लेकर जागरूकता अभियान चलाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने 2004 में अक्षय ऊर्जा दिवस की शुरुआत की थी। नवीकरणीय ऊर्जा के नाम से भी जानी जाने वाली अक्षय ऊर्जा वास्तव में ऐसी ऊर्जा है, जिसके स्रोत सूर्य, जल, पवन, ज्वार-भाटा, भू-ताप इत्यादि हैं। ये सभी स्रोत हर तरह से सुरक्षित हैं।
प्राकृतिक स्रोत होने की वजह से न तो ये प्रदूषणकारी हैं और न ही कभी खत्म होने वाले। आज समय है जब आर्थिक बदहाली और भारी पर्यावरणीय विनाश की कीमत पर ताप, जल और परमाणु ऊर्जा जैसे पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के बजाय अपेक्षाकृत सस्ते और कार्बन रहित पर्यावरण हितैषी ऊर्जा स्रोतों को अपनाया जाए।