सम्पादकीय

नरमी का रुख

Subhi
15 Jun 2022 3:57 AM GMT
नरमी का रुख
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महंगाई पर काबू पाने के सरकार के प्रयासों का असर दिखने लगा है। खुदरा महंगाई दर में कमी दर्ज हुई है। मगर अब भी यह 7.04 फीसद पर बनी हुई है। इसे संतोषजनक स्तर नहीं कहा जा सकता, फिर भी इसका रुख उतार पर होने की वजह से उम्मीद बनी है

Written by जनसत्ता; महंगाई पर काबू पाने के सरकार के प्रयासों का असर दिखने लगा है। खुदरा महंगाई दर में कमी दर्ज हुई है। मगर अब भी यह 7.04 फीसद पर बनी हुई है। इसे संतोषजनक स्तर नहीं कहा जा सकता, फिर भी इसका रुख उतार पर होने की वजह से उम्मीद बनी है कि जल्दी ही उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिलेगी। अच्छी बात है कि खाने-पीने की वस्तुओं के दाम में कमी दर्ज हुई है। अनाज और खाद्य तेलों की कीमतें घटी हैं। खासकर खाद्य तेलों में पिछले महीने की तुलना में करीब चार फीसद की गिरावट आई है।

इसके पीछे पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी और बैंक दरों में बढ़ोतरी वजह बताई जा रही है। बढ़ती महांगाई को लेकर जिस तरह हाहाकार की स्थिति थी, उसमें सरकार ने अपना पूरा ध्यान इसे काबू करने पर केंद्रित कर दिया था। उसी क्रम में पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क कम किया गया और राज्य सरकारों से मूल्य वर्द्धित कर यानी वैट कम करने की अपील की गई थी। उसके बाद से तेल की कीमतें बढ़ाई भी नहीं गर्इं। स्वाभाविक ही उसका असर माल ढुलाई और वस्तुओं की उत्पादन लागत पर पड़ा है। फिर चीनी, गेहूं, तिलहन आदि के निर्यात पर रोक लगाई गई और खाद्य तेलों के आयात पर शुल्क कम कर दिया गया।

बहुत सारे लोगों को रोजगार के मोर्चे पर जूझना पड़ रहा है। सूक्ष्म छोटे और मंझोले उद्योगों में काम करने वाले बहुत सारे लोगों का रोजगार छिन गया, तो बहुत सारे कारोबारियों ने भी अपने धंधे समेट लिए। भवन निर्माण क्षेत्र में लगातार सुस्ती बनी हुई है। फिर बाजार में पूंजी का प्रवाह न बढ़ने से बड़े उद्योगों की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है। कई विदेशी कंपनियां अपना काम-धंधा समेट कर वापस लौट गई हैं।

ऐसे में एक बड़े वर्ग की क्रय शक्ति काफी घट गई है। वे बहुत सोच-समझ कर अपनी जेब में हाथ डालते हैं। बढ़ती महंगाई के चलते उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ रही थी। रोजमर्रा की चीजों के लिए भी उन्हें कई बार सोचना पड़ता था। खुदरा मुद्रास्फीति उतार पर होने से उन्होंने स्वाभाविक ही राहत की सांस ली है। मगर मौजूदा दर भी छह फीसद से ऊपर है और संतोषजनक स्तर तक पहुंचाने के लिए फिलहाल आजमाए जा रहे उपायों को लंबे समय तक जारी रखना पड़ेगा। देखने की बात है कि सरकार ऐसा कब तक कर पाती है।

आमतौर पर खुदरा महंगाई तब बढ़ती है, जब कृषि क्षेत्र में कोई गंभीर प्राकृतिक आपदा आती है। मगर इस साल ऐसा नहीं है। सब्जियों, फलों और अनाज का उत्पादन संतोषजनक है। पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने से ढुलाई का खर्च बढ़ गया, जिसके चलते बाजार तक इन चीजों की पहुंच महंगी हो गई। फिलहाल तेल पर उत्पाद शुल्क घटा कर सरकार ने इसे काबू में करने का प्रयास किया है, पर इसे लंबे समय तक वह शायद ही जारी रख सके।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अब भी ऊंची है। फिर बैंक दर को भी अगर थोड़े-थोड़े अंतराल पर बढ़ाया जाता रहा, तो उसका अन्य उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इसलिए सरकार के लिए ऐसा कर पाना चुनौती भरा काम होगा। महंगाई का संबंध बेरोजगारी से भी होता है। जब तक रोजगार सृजन पर गंभीरता और व्यावहारिक ढंग ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक तदर्थ उपायों से महंगाई पर अंकुश लगाना कठिन बना रहेगा। फिर महंगाई और ऊंची विकास दर एक साथ संभव नहीं हो सकता।


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