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- महामारी में समाज का...
स्वास्थ्य सेवा में लगे लोगों के बाद वैक्सीन का रास्ता अब आम लोगों के लिए खुल गया है। बेशक, अभी टीकाकरण का हमारा पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर इतना बड़ा नहीं कि सभी लोगों को वैक्सीन लगाई जा सके, इसलिए प्राथमिकता वरिष्ठ नागरिकों को दी गई है। बाकी का नंबर बाद में आएगा। पूरे एक साल से सरकार के लॉकडाउन और परिवार की तमाम पाबंदियों के मनहूस बोझ में दबे उम्रदराज लोग बढ़-चढ़कर अस्पताल पहुंच रहे हैं। अब ऐसी खबरें अखबारों में नहीं दिख रहीं कि सिर्फ इतने प्रतिशत लोग टीका लगवाने पहुंचे। अखबारों और टेलीविजन की खबरों से अलग अगर हम सोशल मीडिया पर देखें, तो वहां इस टीकाकरण का एक अलग ही नजारा देखने को मिलेगा। महामारी से त्रस्त समाज का यह सेल्फी क्षण है।
हर रोज टीकाकरण की ढेर सारी सेल्फी सोशल मीडिया पर चिपकाई जा रही हैं। लोग टीका लगवा रहे हैं और सेल्फी खींच रहे हैं। सेल्फी मास्क लगाकर नहीं खिंचवाई जाती, इसलिए सुई चुभने के उस नाजुक क्षण में जब स्मार्टफोन का कैमरा क्लिक करने जा रहा होता है, तो सावधानी के सारे निर्देश ताक पर रख दिए जाते हैं और मास्क थोड़ी देर के लिए नीचे सरक जाता है। महामारी के भय से जिस मास्क को पूरे एक साल से चेहरे पर चिपकाए रखा था, वह अस्पताल की उस इमारत में थोड़ी देर के लिए हट जाता है, जो कोरोना संक्रमण के लिहाज से सबसे ज्यादा आशंकाओं वाली जगह मानी जा सकती है। सेल्फी के लिए कुछ जोखिम तो लेना ही पड़ता है! जो लोग छत से लटककर, नदी में कूदकर, शेर की पीठ पर हाथ रखकर या सांप के साथ खड़े होकर सेल्फी लेते हैं, वे भी तो आखिर यही करते हैं।