सम्पादकीय

महामारी में समाज का सेल्फी क्षण

Gulabi Jagat
15 March 2021 4:16 PM GMT
महामारी में समाज का सेल्फी क्षण
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स्वास्थ्य सेवा

स्वास्थ्य सेवा में लगे लोगों के बाद वैक्सीन का रास्ता अब आम लोगों के लिए खुल गया है। बेशक, अभी टीकाकरण का हमारा पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर इतना बड़ा नहीं कि सभी लोगों को वैक्सीन लगाई जा सके, इसलिए प्राथमिकता वरिष्ठ नागरिकों को दी गई है। बाकी का नंबर बाद में आएगा। पूरे एक साल से सरकार के लॉकडाउन और परिवार की तमाम पाबंदियों के मनहूस बोझ में दबे उम्रदराज लोग बढ़-चढ़कर अस्पताल पहुंच रहे हैं। अब ऐसी खबरें अखबारों में नहीं दिख रहीं कि सिर्फ इतने प्रतिशत लोग टीका लगवाने पहुंचे। अखबारों और टेलीविजन की खबरों से अलग अगर हम सोशल मीडिया पर देखें, तो वहां इस टीकाकरण का एक अलग ही नजारा देखने को मिलेगा। महामारी से त्रस्त समाज का यह सेल्फी क्षण है।

हर रोज टीकाकरण की ढेर सारी सेल्फी सोशल मीडिया पर चिपकाई जा रही हैं। लोग टीका लगवा रहे हैं और सेल्फी खींच रहे हैं। सेल्फी मास्क लगाकर नहीं खिंचवाई जाती, इसलिए सुई चुभने के उस नाजुक क्षण में जब स्मार्टफोन का कैमरा क्लिक करने जा रहा होता है, तो सावधानी के सारे निर्देश ताक पर रख दिए जाते हैं और मास्क थोड़ी देर के लिए नीचे सरक जाता है। महामारी के भय से जिस मास्क को पूरे एक साल से चेहरे पर चिपकाए रखा था, वह अस्पताल की उस इमारत में थोड़ी देर के लिए हट जाता है, जो कोरोना संक्रमण के लिहाज से सबसे ज्यादा आशंकाओं वाली जगह मानी जा सकती है। सेल्फी के लिए कुछ जोखिम तो लेना ही पड़ता है! जो लोग छत से लटककर, नदी में कूदकर, शेर की पीठ पर हाथ रखकर या सांप के साथ खड़े होकर सेल्फी लेते हैं, वे भी तो आखिर यही करते हैं।

दिल्ली में ट्रैफिक का एक नया नियम यह है कि अगर आप शीशे बंद करके भी कार चला रहे हैं और आपने मास्क नहीं लगाया है, तो आपको दो हजार रुपये बतौर जुर्माना देना पड़ सकता है। लेकिन अगर वैक्सीन लगवाते समय मास्क नहीं लगाया, तो इसके लिए कोई जुर्माना नहीं है। अस्पताल तो एक तरह से इसे प्रोत्साहित ही कर रहे हैं। कई अस्पतालों ने तो बाकायदा सेल्फी बूथ ही बनवा दिया है। टीका लगवाएं और वहां खड़े होकर फोटो खिचवाएं, आपके साथ ही सोशल मीडिया पर अस्पताल को भी थोड़ा प्रचार मिल जाएगा। ठीक यहीं पर हमें लंदन के अखबार द टाइम्स की लेखिका जेनिस टर्नर के पछतावे को भी देखना होगा। उन्हें दुख है कि उन्होंने कोविड-19 टीके के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के अस्पताल को चुना, उनके वे दोस्त ज्यादा चतुर निकले, जिन्होंने इसके लिए कैथेड्रल और एक्सेल सेंटर जैसी जगहों को चुना। ज्यादा अच्छी जगह, यानी ज्यादा अच्छी सेल्फी। खैर, भारत में ऐसे विकल्प नहीं हैं। यहां बस दो ही विकल्प हैं- सरकारी अस्ताल या निजी अस्पताल। आप अपनी पसंद, सुविधा और जेब के अनुसार यह चुन सकते हैं कि आपकी वैक्सीन सेल्फी कहां खिंचेगी? इसे आप एक तरह का फैशन भी कह सकते हैं और भेड़चाल भी, जो कि यह है भी। इसे अच्छा मानें या बुरा, लेकिन सेल्फी 21वीं सदी के समाज की सबसे अभिन्न हमसफर बन चुकी है। हर अवसर पर सेल्फी होती है, हर उत्सव में सेल्फी होती है। सेल्फी हर अवसर को उत्सव में बदल देती है। कोरोना टीकाकरण भी इसी तरह का एक मौका है, जिसे हमने एक उत्सव में बदल दिया है।
अमेरिका में तो सरकार टीकाकरण से ज्यादा बड़ी उम्मीद सेल्फी से बांध रही है। कई पश्चिमी देशों की तरह ही वहां दिक्कत वैक्सीन को लेकर उभर रही दो प्रवृत्तियों से है। इनमें से एक है, वैक्सीन का विरोध और दूसरा है, इसे लेकर हिचक, जिसे 'वैक्सीन हेजीटेन्सी' कहा जाता है। अमेरिका, जर्मनी जैसे कई देशों में कुछ ऐसे लोग और संगठन काफी मुखर हैं, जो वैक्सीन की अवधारणा को ही गलत मानते हैं। भले ही ये लोग संख्या में बहुत ज्यादा नहीं हैं, लेकिन वे सिर्फ वैक्सीन का विरोध नहीं करते, बल्कि उसके खिलाफ तरह-तरह का दुष्प्रचार भी करते हैं। तमाम अफवाहें भी फैलाते हैं। कुछ इसके असर की वजह से और कुछ अपनी आशंकाओं के चलते। ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है, जो अभी कोविड-19 की वैक्सीन लगवाने से हिचक रहे हैं। वे वैक्सीन विरोधी नहीं है, लेकिन कुछ अनजाने से डर हैं, जो उन्हें वैक्सीन से दूर रखे हुए हैं। सरकार का मानना है कि सेल्फी ऐसे लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रेरित करने का काम कर सकती है। जब वे सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोगों को वैक्सीन लगवाते देखेंगे, तो उनकी आशंकाएं खत्म हो सकती हैं। जहां तर्क काम न कर रहे हों, वहां वहम का मुकाबला किसी भेड़चाल से करने में आखिर बुराई ही क्या है? इजरायल में वैक्सीनेशन का काम लगभग पूरा हो चुका है और ब्रिटेन में यह काम जुलाई तक पूरा हो जाएगा। यानी इजरायल में लगभग पूरे देश को वैक्सीन सेल्फी खिंचवाने का मौका मिल चुका है, ब्रिटेन में अगले चार महीनों में पूरी आबादी को यह मौका मिल सकेगा। अमेरिका में भी यह काम साल खत्म होते-होते पूरा हो जाएगा। लेकिन भारत में अगले दो साल में भी सभी लोगों को ऐसी सेल्फी खिंचवाने का मौका मिल पाएगा, यह अभी गारंटी के साथ नहीं कहा जा सकता। आबादी के अनुपात में टीकाकरण करने वाले बहुत कम हैं। यहां कुछ देर के लिए उन देशों के बारे में भी सोच लेना चाहिए, जिन्हें अब भी वैक्सीन का इंतजार है। वहां न तो अभी वैक्सीन पहुंची है और न ही उसे लगवाते समय सेल्फी खिंचवाने का अवसर पहुंचा है। सर्बिया के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर व्यूसिक ने कुछ ही दिनों पहले कहा था, 'आज की दुनिया में परमाणु हथियार हासिल करना आसान है, कोविड-19 की वैक्सीन हासिल करना काफी कठिन'। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीकाकरण के दूसरे दौर की शुरुआत जब दिल्ली के एम्स में टीका लगवाकर की, तो उस समय खींची गई उनकी तस्वीर शायद सबसे ज्यादा प्रसारित फोटो में से एक है। पर दुनिया के कई देशों के नेताओं को अभी तक यह अवसर नहीं मिला है। हम चाहे वैक्सीन की नजर से देखें या सेल्फी की, महामारी के दौर में यह दुनिया एक ही तरह की नजर आएगी।


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