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यह संदेश देने की कोशिश की जाती है कि जीवन में उन्हें मिलने वाली सफलता के पीछे उनके सौंदर्य का भी कमोबेश योगदान है।
फेसबुक की एक पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर फ्रांसिस हॉगन ने पिछले सप्ताह सीनेट की एक सुनवाई के दौरान जब यह बताया कि कंपनी (फेसबुक) उपभोक्ताओं के मुकाबले अपने मुनाफे को ज्यादा वरीयता देती है, तब वहां मौजूद लोग क्षोभ से भर उठे। इस सोशल मीडिया कंपनी के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी मार्क जुकरबर्ग से जब इस पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तब उन्होंने फेसबुक पर एक जवाबी पोस्ट में लिखा, 'हम सुरक्षा, खुशहाली और मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं।' लेकिन उस व्हिस्ल ब्लोअर फ्रांसिस हॉगन ने सर्वेक्षणों पर आधारित फेसबुक के आंतरिक अध्ययन का हवाला दिया, जिसमें 32 प्रतिशत किशोरियों ने माना है कि इंस्टाग्राम के कारण उनमें अपने शरीर के प्रति बेहद खराब धारणा पैदा हुई है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने इस अध्ययन को प्रकाशित किया है। इसे समझने की जरूरत है। मान लीजिए कि आप एक तेरह साल की किशोरी हैं और अपने फिगर के प्रति चिंतित होने के कारण ऑनलाइन सुझावों पर अमल करते हुए आपने डाइटिंग शुरू की है। ऐसे में, अगर आप इंस्टाग्राम पर जाते हैं, तो वह आपको 'इटरनली स्टार्व्ड' (हमेशा ही भूखी), 'आई हैव टू थिन' (मुझे छरहरा होना है), 'आई हैव टू परफेक्ट' (मुझे परफेक्ट होना है) जैसे डाइटिंग अकाउंट्स पर ले जाएगा, ताकि आप डाइटिंग का कठोरता से पालन करें। अमेरिका के सीबीएस टीवी चैनल पर आने वाले बहुचर्चित कार्यक्रम 60 मिनिट्स में एक इंटरव्यू में फ्रांसिस हॉगन ने इंस्टाग्राम के तौर-तरीके को बेहद त्रासद बताया है। वह कहती हैं, 'चूंकि ये युवा औरतें डाइटिंग से संबंधित चीजों को बार-बार देखती हैं, ऐसे में वे और अधिक हताश हो जाती हैं।
इससे वे बार-बार इन्हें देखती हैं, जिसका नतीजा यह होता है कि वे अपने शरीर से नफरत करने लगती हैं।' जिन भी महिलाओं ने अपनी किशोरावस्था में सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताया है, उनके लिए ये खुलासे आश्चर्यजनक नहीं हैं। फेसबुक और इंस्टाग्राम दरअसल पुरानी अमेरिकी परंपरा पर ही चल रहे हैं : यानी किशोरियों की असुरक्षा भावना का लाभ उठाकर कमाई करना। बाजार का यहां काफी कुछ दांव पर लगा है। वैश्विक सौंदर्य उद्योग की सालाना आय 500 अरब डॉलर है, और सोशल मीडिया किशोरियों को निशाना बनाकर इसमें बड़ी भूमिका निभाता है।
अमेरिकी किशोरियों के लिए ऐसी सामग्रियों से गुजरने का अनुभव कोई नया नहीं है, जो उन्हें अपने शरीर से घृणा करना सिखाए। माध्यम भले ही बदल गया है, लेकिन वह गलत परंपरा अब भी चल रही है। किशोरियों के आत्मविश्वास को डिगाने का जो काम इंस्टाग्राम कर रहा है, कुछ दशक पहले यही काम पत्र-पत्रिकाएं करती थीं, जिनके पृष्ठ दुबली-पतली, छरहरी किशोरियों और युवतियों से भरे रहते थे। तब भी बाजार अपने मुनाफे के लिए किशोरियों-युवतियों के शरीर को निशाना बनाता था और जिसका संदेश यह होता था : आपके शरीर में काफी कमियां और गड़बड़ियां हैं। हम आपको बताएंगे कि इन कमियों से उबरने के लिए आप क्या खरीदें और क्या करें। मैं बीस साल पहले किशोरी थी, लेकिन मुझे आज भी उन किशोर पत्रिकाओं में दी गई सलाहों और निर्देशों की याद है, जिन्हें मैं पुस्तकालय से लाती थी और पाठ्यपुस्तकों की तरह पढ़ती थी। मसलन, उनमें यह सलाह दी जाती थी कि अगर आपको मिठाइयों में रुचि है, तो कृपया ऐसी मिठाइयां लें, जो फैट-फ्री हों।
ऐसे ही, मैंने एक बार पढ़ा था कि भूख लगने पर मुझे बर्फ का सेवन करने के बारे में सोचना चाहिए। लंबे समय तक उन पत्रिकाओं को पढ़ने का असर है कि आज भी प्लेट में भरा हुआ खाना देखकर मेरा दिमाग उससे मिलने वाली कैलोरी का हिसाब लगा लेता है। डाइटिंग के नाम पर इंस्टाग्राम किशोरियों को जो परोस रहा है, वह लड़कियों के प्रति हमारी सामाजिक सोच का ही विस्तार है। शरीर से संबंधित उदार सामाजिक आंदोलन का बेशक असर पड़ा है, लेकिन लड़कियों के मामले में आज भी यह संदेश देने की कोशिश की जाती है कि जीवन में उन्हें मिलने वाली सफलता के पीछे उनके सौंदर्य का भी कमोबेश योगदान है।
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