सम्पादकीय

समाजिक बंधन: अविवाहित मां की स्वीकार्यता

Neha Dani
6 Oct 2021 1:38 AM GMT
समाजिक बंधन: अविवाहित मां की स्वीकार्यता
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यहां तक कि अब स्कूलों में भी बच्चे के पिता का नाम बताना जरूरी नहीं है।

बांग्ला फिल्मों की अभिनेत्री नुसरत जहां हाल ही में एक बेटे की मां बनी हैं। जब उनसे बच्चे के पिता का नाम पूछा गया, तो उन्होंने बताने से इन्कार कर दिया। नुसरत का विवाह जिस व्यवसायी से हुआ था, उन्होंने कहा था कि वे दोनों अरसे से साथ नहीं हैं। इसलिए बच्चा उनका नहीं है।

नई तकनीकों ने स्त्री को यह आजादी दी है कि वह चाहे तो बिना किसी पुरुष के संसर्ग के मां बन सकती है। कुछ साल पहले राजस्थान की एक आईएएस अधिकारी आईवीएफ तकनीक की मदद से मां बनी थी। उसने अपने माता-पिता की देखभाल के लिए विवाह नहीं किया। लेकिन मां बनने की इच्छा इस तरह से पूरी की। इसी तरह हाल ही में मध्य प्रदेश की एक मशहूर रेडियो कलाकार मां बनी है।
नीना गुप्ता के बारे में तो सभी को मालूम है कि दशकों पहले वह बिना विवाह के वेस्ट इंडीज के मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी, विवियन रिचर्डस की बच्ची की मां बनी थीं। उन्होंने अपनी बच्ची को अपने ही दम पर पाला और आज वह एक मशहूर फैशन डिजाइनर है। हालांकि बहुत बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में यह भी कहा कि किसी स्त्री को अकेली मां बनने का चुनाव नहीं करना चाहिए। यह बहुत कठिन है।
अपनी आत्मकथा, अगर सच कहूं तो में भी उन्होंने अपनी ऐसी बहुत-सी मुश्किलों का जिक्र किया है। नेटफिल्क्स पर इन दिनों मेड सीरीज भी है, जो सिंगल मदर की कठिनाइयों को बताती है। इनमें से किसी स्त्री ने अपने बच्चों को त्यागा नहीं, न ही समाज के डर से उन्हें छिपाया। समाज ने भी इन्हें स्वीकार कर लिया। अपने यहां अकेली मां के रूप में कुंती का उदाहरण मिलता है, मगर कुंती ने कर्ण को त्याग दिया था। आपको याद होगा कि इसके लिए कर्ण ने कभी कुंती को माफ नहीं किया।
इस विषय पर बहुत-सी फिल्में बनती रही हैं। धूल का फूल, धर्मपुत्र, त्रिशूल, क्या कहना आदि। हो सकता है और भी बनीं हों। इन फिल्मों को बॉक्स ऑफिस पर मिली सफलता बताती है कि लोगों के मन में तो यह बात रही है कि अपने बच्चे को स्वीकार करना, उसे पालना, ठीक है। लेकिन समाज में प्रतिष्ठा और इज्जत के नाम पर अक्सर अविवाहित मां को अपने बच्चों को फेंकना पड़ता है।
सुष्मिता सेन, एकता कपूर, रवीना टंडन आदि ने अविवाहित रहते हुए भी बच्चों को गोद लिया है। इस लेखिका के दफ्तर में भी कई लड़कियां थीं, जिन्होंने विवाह नहीं किया था, मगर बच्चों को गोद लिया था। एक समय तक अविवाहित लड़कियां बच्चों को गोद नहीं ले सकती थीं। लेकिन बाद में कानून ने इसकी अनुमति दी।
तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता अविवाहित थीं, लेकिन जब वह मुख्यमंत्री बनीं, तो उन्होंने भी इस समस्या पर बहुत सहानुभूति पूर्वक विचार किया। तमिलनाडु में अनाथ बच्चों के लिए विशेष पालना केंद्र बनवाए। माता-पिता से यह अपील भी की कि अपनी बच्चियों को फेंकिए मत, हमें दे दीजिए। सरकार उन्हें पालेगी।
यह देखना भी दिलचस्प है कि नुसरत जहां को न तो किसी ने लानतें भेजीं, न संस्कृति के तथाकथित पहरुओं ने कोई आंदोलन या विरोध किया। बदला वक्त अपने साथ बहुत से बदलाव लाता है। नैतिकता के चले आ रहे मानदंडों को भी उसी हिसाब से बदलना पड़ता है। मजेदार यह है कि पहले फिल्मों में काम करने वाली स्त्रियों को बच्चे तो छोड़िए, अपने संबंधों तक को छिपाना पड़ता था। वे अपने बॉयफ्रेंड के बारे में नहीं बताती थीं।
अक्सर अपने कुंआरे होने की घोषणाएं भी करती रहती थीं। उन्हें लगता था कि इससे उनकी फिल्में नहीं चलेंगी, क्योंकि फिल्मों की नायिकाओं को दर्शकों में कामनाएं जगानी चाहिए। ये कामनाएं तभी जग सकती हैं, जब वे अविवाहित हों। इसीलिए उनका करियर जब ढलान पर पहुंचता था, तो वे विवाह रचाकर फिल्मों से संन्यास ले लेती थीं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। इन दिनों हिंदी फिल्मों में काम करने वाली अधिकांश अभिनेत्रियां विवाहित हैं। उनकी फिल्में सफल भी होती हैं।
हमारे यहां के कानून भी स्त्री को मां बनने के चुनाव की आजादी देते हैं। वह अविवाहित है, विवाहित है, अकेली है, इससे उसके मां बनने के अधिकार में कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां तक कि अब स्कूलों में भी बच्चे के पिता का नाम बताना जरूरी नहीं है।

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