सम्पादकीय

है तो यह भी सांड

Rani Sahu
27 Feb 2022 6:56 PM GMT
है तो यह भी सांड
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है तो यह भी सांड और विशालकाय भी, लेकिन अपने कर्म और धर्म में फेरबदल नहीं करता। आज के माहौल में सांड को भी अपनी इज्जत के लिए भागना पड़ रहा है

है तो यह भी सांड और विशालकाय भी, लेकिन अपने कर्म और धर्म में फेरबदल नहीं करता। आज के माहौल में सांड को भी अपनी इज्जत के लिए भागना पड़ रहा है। हमारे यहां कुछ सांड या तो उत्तरप्रदेश के चुनाव से भागकर पहुंच गए हैं या उत्तर प्रदेश के सांडों की नस्ल में घूम रहे हैं। वैसे सांडों ने भी अपने लिए क्षेत्र चिन्हित कर रखे हैं। आवारगी के हालात में भी अपने डील-डौल के मुताबिक गली, मोहल्ला व खेत चुनने की महारत दरअसल सांड ने भी इनसान के साथ रहते हुए ही हासिल की है। मैं जिस सांड का जिक्र कर रहा हूं, यह भी हमारी तरह ही इज्जत को मारा-मारा घूम रहा है। यह उत्तर प्रदेश में जब तक राजनीति की तरह खेत चुग सकता था, चुग लिया। अब सांड चाहता है कि देश को बताया जाए कि वह भी काम का है। पिछले चुनाव में इसे 'नंदी-नंदी' पुकारा गया तो इस भ्रम में आ गया था कि वह कोई धार्मिक मसला है। इसी भ्रम मंे सांड इस बार भी रहा कि लोग नंदी समझ कर इसे चुनाव से निकलने का मौका दे दंेगे, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में बेचारा 'सांड' फंस गया। सुबह-सुबह लंबी यात्रा के बाद यह हमारे पहाड़ी प्रदेश पहुंच गया क्योंकि चुनाव में वहां गर्मी हटा देने का डर फैल रहा था।

इसके गले में बंधी घंटी बजी तो देखा कि वह गेट पर खड़ा भय में आंखें झुका रहा था। सांड पहली बार थका और कुछ आहत लग रहा था। मुझे नागरिक मानकर भी सांड ने टक्कर नहीं मारी, बल्कि अपनी सुरक्षा में पूछने लगा, 'आपके यहां चुनाव तो नहीं।' मेरे द्वारा न करने पर इत्मीनान से इनसानी खास तौर पर राजनेताओं की वादाखिलाफी का जिक्र करने लगा, 'नेताओं के कारण मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है। मेरे साथ जातीय व धार्मिक भेदभाव हो रहा है। कहा मुझे नंदी और समझा सांड जाता है। मुझे पिछले चुनाव में बताया गया था कि रहने और खाने-पीने की व्यवस्था सरकारी होगी, इसीलिए मैं साइकिल पर बैठे लाल टोपी वालों को टक्कर मारता रहा। अब मुझे बताया गया कि साइकिल में तो इनसानों को मारने का विस्फोटक ढोया जा रहा है। सोचता हूं कहीं विस्फोटक भी सांड की तरह बदनाम न हो जाए, इसलिए मैं हर उद्घोष से डर रहा हूं। मैं खुद को खुद ही मारना चाहता हूं, इसलिए बार-बार किसान के खेत की कंटीली तारों में फंसा।
हैरानी यह कि मैं झटका तार के साथ घंटों खड़ा रहा, लेकिन बिजली न आने से बचता रहा। इसमें मेरा क्या कसूर कि मुझे करंट देने वाली तारों में विभाग की बिजली नहीं पहुंच रही।' मैं सोच में पड़ गया कि अपने वोट से नेता को बचाऊं या सांड को। सांड से तो मैं दूर भाग सकता हूं, लेकिन नेताओं से दूर होने के लिए तो सांड ही बनना पड़ेगा। पता लगा कि सांड अब हेलिपैड पर भी नेताओं को डराते हैं। चुनाव में सांड को देखकर अगर उत्तर प्रदेश डर रहा है, तो कल अपना प्रदेश भी डरेगा। मैं सोचकर डर रहा था कि कहीं कोई इस सांड की वजह से मुझे नेता न मान ले। वैसे सांड से राजनीति सीखी जा सकती है। कोई नहीं जानता कि सांड को पाल-पोस कर किसने इतना बड़ा कर दिया कि हर तरफ इसके चर्चे हो रहे हैं। वैसे नेताओं को जिसने पाल-पोस कर खुला छोड़ दिया है, उसी ने सांड को भी खुला छोड़ा है। नेताओं को आवारा होने से पहले पकड़ लें, तो सांड भी पकड़ा जाएगा। अचानक सांड ने घंटी हिलाकर मुझे सचेत अवस्था में पहुंचा दिया। देखा वहां गोबर का ढेर लगाकर सांड मुड़ रहा था। मैंने रोका तो बोला, 'मेरा गोबर तुम्हें अमीर बनाएगा। कम से कम नेताओं के 'गोबर' से कुछ तो बेहतर है सांड में।' मैं गोबर उठाकर इसमें देश का भविष्य देखता हूं, चलो कुछ तो हासिल हुआ। मुझे उम्मीद है कि अगर हम हर सांड के गोबर पर ध्यान दें, तो चुनाव के मुद्दे बदल सकते हैं।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक

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