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अगर प्रियंका गांधी की मानें तो सच यही है
अजय झा।
कहते हैं कि प्यार और युद्ध में सब जायज है क्योंकि दोनों क्षेत्रों में जीत अहम मानी जाती है. इस बात का कोई मायने नहीं होता कि यह जीत किस तरह से हासिल की गयी है. राजनीति में झूठ बोलना एक आम बात है, और वह भी जब समय चुनाव का हो, क्योंकि चुनाव भी किसी युद्ध से कम नहीं होता जिसमें जीतना अहम होता है, चाहे जीत झूठ की बदौलत ही क्यों ना हासिल की गयी हो. पंजाब में संडे को एक ही मंच से दिखा कि युद्ध हो या चुनाव दोनों में क्यों सब कुछ जायज माना जाता है. पंजाब के कोटकापुरामें कल कांग्रेस पार्टी (Congress Party) की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की एक रैली थी. कोटकापुरा (Kotakpura) का चयन महत्वपूर्ण इसलिए था क्योकि अक्टूबर 2015 में यहीं पर पंजाब पुलिस ने सिखों पर गोली चलायी थी जिसमे दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गयी थी. एकगुरुद्वारे से गुरुग्रंथ साहिब गायब हो गया था जिसके फटे हुए पन्ने बाद में सड़कों पर बिखरा पाया गया था. इसके विरुद्ध वहां सिखों का धरना और प्रदर्शन चल रहा था जिसे नियंत्रित करने के लिए पहले पुलिस को लाठी का इस्तमाल करना पड़ा, पर जब प्रदर्शनकरी हिंसा पर उतारू हो गए तो पुलिस को अपनी रक्षा में गोली चलानी पड़ी जिसमे दो प्रदर्शनकारी मारे गए थे.
इस घटना ने इतना तूल पकड़ा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी शिरोमणि अकाली दल को इसका खमियाजा भुगतना पड़ा. कोटकापुरा में पुलिस गोलीबारी की जांच की जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी सरकार पर आयी. आरोप था कि कांग्रेस की सरकार इसपर लीपापोती का काम कर रही है. निष्पक्ष जांच और दोषियों को सजा देने की मांग एक प्रमुख कारण था कि क्यों नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह के पीछे पड़ गए जिसके कारण अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री से इस्तीफा देना पड़ा.
प्रियंका के सामने ही मंच पर भाषण देने से मना कर दिया सिद्धू ने
यानि अगर कांग्रेस पार्टी को 20 फरवरी को होने वाले चुनाव में सिखों का वोट चाहिए तो फिर प्रियंका गांधी का कोटकापुरा जाना बनता ही था. रैली हुयी जिसमे प्रियंका गांधी ने कांग्रेस पार्टी को निर्दोष साबित करने और पूरे पांच सालों में कोटकपूरा गोलीकांड की जांच सही तरीके से नहीं होने के लिए एक ऐसा झूठ बोला जो किसी को शायद ही हज़म हो. थोड़ा बहुत झूठ, तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करना चुनावों में आम बात है. प्रियंका गांधी के भाषण के पहले एक ऐसी घटना हुयी जिसने कांग्रेस पार्टी के चुनाव जीतने की सम्भावना पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी मंच पर थे. जब उनके नाम को घोषणा की गई और उनसे भाषण देने का आग्रह किया गया तो सिद्धू अपनी कुर्सी से उठे, हाथ जोड़ कर सबका अभिवादन किया पर भाषण देने से मना कर दिया. उन्होंने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की तरह इशारा करते हुए कहा कि भाषण देने के लिए उन्हें बुलाओ.
बात पिछले रविवार की है जबकि प्रियंका के बड़े भाई राहुल गांधी ने पंजाब में कांग्रेस पार्टी की हार का रास्ता प्रशस्त किया था और चन्नी को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था. इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी में फूट सबके सामने जगजाहिर हो गया. वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने चुनावी राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी और सिद्धू, जिनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी, अब थोड़े रूठे और थोड़े खफा चल रहे हैं और कांग्रेस पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करने से कतरा रहे हैं. भला सिद्धू क्यों चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम करेंगे, लिहाजा उन्होंने प्रियंका गांधी का भी लिहाज नहीं किया और उनके सामने ही भाषण देने से मना कर दिया.
प्रियंका ने ऐसा क्या कहा
पर प्रियंका गांधी तो यह नहीं कर सकती थीं. उन्हें भाषण देना ही था. अपने भाषण में प्रियंका ने कुछ ऐसा कह डाला जिसे हजम करना कांग्रेस पार्टी के लोगों के लिए भी मुश्किल हो गया है. प्रियंका गांधी के अनुसार पंजाब में पूरे पांच साल तक कांग्रेस पार्टी की सरकार तो चली पर सरकार नयी दिल्ली से चलाया जा रहा था. उन्होंने स्पष्ट किया कि नयी दिल्ली से उनका तात्पर्य है बीजेपी जिसके मुखिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं.
"ये सच है कि पांच सालों से हमारी यहां सरकार थी. ये सच भी है कि उस सरकार में कुछ खामियां थीं, कहीं रास्ते में भटक गए. वो सरकार पंजाब से चलनी बंद हो गई. वो सरकार दिल्ली से चलने लगी और दिल्ली में भी कांग्रेस पार्टी से नहीं, लेकिन भाजपा और भाजपा की सरकार द्वारा चल रही थी. वो जो छुपी हुई सांठ-गांठ थी, वो आज खुले में आ गई है. इसलिए हमें वो सरकार बदलनी पड़ी, इसलिए हमें एक नई राजनीति आपके सामने लानी पड़ी. हम आपकी आवाज सुन रहे थे, हम जान रहे थे कि कुछ गलत हो रहा है. उसको ठीक करने के लिए एक नई राजनीति आपके सामने आई. उस नई राजनीति में आपको एक ऐसे इंसान, एक ऐसे शख्स मिले, चरणजीत सिंह चन्नी जी, जो आपमें से उभरे, जो आपकी तरह हैं. एक गरीब परिवार के मुख्यमंत्री, जिन्होंने आपके लिए 100-150 दिनों में ही इतना कुछ कर डाला,"
कांग्रेस पार्टी खासकर गांधी परिवार इतना मासूम है कि यह सच समझने में उन्हें साढ़े चार साल लग गया कि अमरिंदर सिंह सरकार को कौन चला रहा था. सरकार कांग्रेस की थी और उसे बीजेपी चला रही थी. चन्नी तो उनसे भी ज्यादा भोले निकले. अमरिंदर सिंह सरकार में मंत्री थे और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी कि वह कांग्रेस की नहीं बल्कि बीजेपी की सरकार के मंत्री थे?
तो क्या अमरिंदर ने बीजेपी के कहने पर किसानों को भड़काया
चुनावों में थोड़ा बहुत झूठ चलता है क्योंकि लक्ष्य चुनाव जीतना होता है. पर झूठ की भी कोई सीमा होती है. अगर झूठ सफ़ेद झूठ हो तो उससे जनता को प्रभावित नहीं किया जा सकता. अगर मान भी लें कि अमरिंदर सिंह सरकार बीजेपी चला रही थी और चन्नी तथा अन्य मंत्रियों को इसके बारे में पता ही नहीं था तो क्या यह भी मान लिया जाए कि अमरिंदर सिंह ने कृषि कानूनों के विरोध में किसानों को आन्दोलन करने के लिए बीजेपी के कहने पर भड़काया था? अगर किसानों को आन्दोलन करने के लिए बीजेपी ने भड़काया था तो फिर कृषि कानून को वापस लेने का श्रेय कांग्रेस पार्टी क्यों ले रही है?
प्रियंका गांधी को लोग राहुल गांधी से अलग और बेहतर नेता मान रहे थे, पर पिछले तीन वर्षों में जब से वह सक्रिय राजनीति में आयी हैं, उन्होंने निराश ही किया है, खासकर यह प्रदर्शित करके कि उनमें और उनके भाई के बीच कोई खास अंतर नहीं है. लोग प्रियंका गांधी में उनके दादी इंदिरा गांधी की छवि ढूंढते रहे पर वह अपने भाई से इतना प्रभावित हैं कि उन्ही की शैली और भाषा का जनता के बीच इस्तमाल करती हैं.
कोई प्रियंका गांधी को बता दे की वह, उनका परिवार और उनकी पार्टी मासूम हो सकती है पर पंजाब की जनता इतनी मासूम नहीं है कि उन्हें सच और सफ़ेद झूठ का फर्क करना आता ही नहीं हो, उन्हें मासूम और मंदबुद्धि का फर्क पता ना हो. सवाल यह भी है कि इतने मासूम लोगों को जिन्हें पता ही नहीं था कि कांग्रेस पार्टी की सरकार कौन चला रही थी, क्या पंजाब की जनता उन्हें सत्ता सौंपना चाहेगी भी?
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