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- ताकि गुलजार हो बाजार
अर्थशास्त्री कहते रहे हैं कि समाज के गरीब तबके की जेब में कुछ पैसे डालने से अर्थव्यवस्था में मांग की स्थिति सुधरेगी। इसके अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल देने की भी बात की जाती रही है, जिसने कोरोना संकट के दौरान बेहतर प्रदर्शन किया। इसी के मद्देनजर केंद्र ने मनरेगा का बजट भी बढ़ाया, जो प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने में सहायक साबित हुआ। दरअसल, सरकार ने इस सर्वविदित तथ्य को अपने हालिया कदम का आधार बनाया कि आने वाले त्योहार हमारी आर्थिकी को गति दे सकते हैं। सरकार के इस कदम से न केवल केंद्रीय कर्मचारी बल्कि बड़े उद्यमी, व्यापारी व दुकानदार भी प्रसन्न होंगे, जो कोरोना संकट के चलते मंदी से जूझ रहे थे। बहरहाल, कोरोना संकट के दौरान मध्यवर्ग केंद्र सरकार से राहत की प्रतीक्षा करता रहा है, यह राहत केंद्रीय कर्मचारियों के लिये तो है, मगर निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को भी राहत देने का प्रयास करना चाहिए, जिनका रोजगार संकटग्रस्त है। वैसे सरकार की इस योजना का लाभ सरकारी कंपनियों और बैंक कर्मियों को भी मिलने की बात की जा रही है। दरअसल, सरकार ने एक तीर से कई शिकार किये हैं। एक तो कर्मचारियों को खुश किया है, वहीं उन्हें सिर्फ बड़ी उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिये प्रेरित किया है, डिजिटल पेमेंट को प्रमोट करने के लिये ऑनलाइन खरीद की अनिवार्यता लागू की है, इसी वित्तीय वर्ष में खरीद की शर्त भी लगायी है। साथ ही यदि एलटीसी के किराये का तीन गुना खर्च किया जायेगा तो ही इनकम टैक्स में छूट मिलेगी। यानी सरकार ने जितना जेब में डाला है उससे अधिक खर्च का प्रबंध भी कर दिया है। अर्थशास्त्री और विपक्षी नेता भी लॉकडाउन के बाद से कह रहे थे कि सरकार को लोगों की जेब में सीधा पैसा डालना चाहिए। उसे खर्च करने के लिये भी प्रेरित किया जाना चाहिए। सरकार ने लोगों को बताया है कि जितना खर्च ज्यादा होगा, उतना लाभ अधिक होगा। सरकार को समाज के दूसरे वर्गों को भी सीधा लाभ पहुंचाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।