सम्पादकीय

ताकि सेहतमंद रहे हमारा श्रम बल

Rani Sahu
5 Jan 2022 9:39 AM GMT
ताकि सेहतमंद रहे हमारा श्रम बल
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पिछले साल की आखिरी बेला में जारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दूसरी तिमाही के आंकडे़ मुनादी कर रहे थे कि हमारी अर्थव्यवस्था महामारी की चोट से पार पाने में सफल हो रही है

अरुण कुमार पिछले साल की आखिरी बेला में जारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दूसरी तिमाही के आंकडे़ मुनादी कर रहे थे कि हमारी अर्थव्यवस्था महामारी की चोट से पार पाने में सफल हो रही है। तब सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि 2021-22 की दूसरी तिमाही में जीडीपी 35.73 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई है, जो 2019-20 की समान तिमाही में 35.62 लाख करोड़ रुपये थी। बेशक, आज भी हमारी खपत और सरकारी खर्च रफ्तार नहीं पकड़ सके हैं, जिसके कारण हमारी अर्थव्यवस्था 2019 के स्तर के आसपास ही है, मगर पिछले दिनों इसमें जो तेजी दिख रही थी, उससे उम्मीद बढ़ चली थी कि जल्द ही लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो जाएगी। मगर कोरोना मानो फिर से अर्थव्यवस्था को निगलने के लिए तैयार बैठा है। ओमीक्रोन के सामुदायिक संक्रमण के बाद एक बार फिर आशंकाएं सिर उठाने लगी हैं।

क्या भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से गोते लगाएगी? अभी इसका ठीक-ठीक जवाब तो नहीं दिया जा सकता, लेकिन अगर योजनाबद्ध तरीके से काम हो, तो हम अपना नुकसान कम कर सकते हैं। ओमीक्रोन के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें संक्रमण-दर तो ज्यादा है, पर इसके मरीज जल्दी ठीक भी हो जाते हैं। दक्षिण अफ्रीका में ही, जहां इसके शुरुआती मामले मिले थे, अब कोरोना के रोगी कम हो चले हैं। मगर हमारे साथ मुश्किल यह है कि हमारी आबादी काफी ज्यादा है और टीका न लेने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं। 60 फीसदी के करीब वयस्क आबादी का ही अब तक पूर्ण टीकाकरण हुआ है। भले ही ओमीक्रोन टीका या पूर्व-संक्रमण की वजह से शरीर में बनी प्रतिरोधक क्षमता को भेदने में सफल है, लेकिन बिना टीकाकरण वाले लोगों के लिए खतरा अधिक है। चूंकि अपने यहां यह संख्या ज्यादा है, इसलिए अंदेशा है कि ज्यादा लोग बीमार पड़ेंगे। और, अगर देश का श्रम-बल ही बीमार हो जाएगा, तो अर्थव्यवस्था पर स्वाभाविक तौर पर असर पड़ेगा। अच्छी बात है कि संगठित क्षेत्र की कंपनियों ने अपने यहां टीकाकरण पर जोर दिया, लेकिन असंगठित क्षेत्र में टीकाकरण की सुविधा कम होने के कारण टीके उस गति से नहीं लग सके, इसलिए हमें नुकसान हो सकता है।
इस चुनौती से हमें जल्दी पार पाना होगा। हमें सबसे पहले अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना होगा। इसके लिए जूनियर डॉक्टरों को भी अग्रिम मोर्चे पर तैनात करना चाहिए, और मेडिकल की पढ़ाई कर रहे दूसरे व तीसरे वर्ष के विद्यार्थियों की भी सेवा लेनी चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश के कई हिस्से में बड़ी संख्या में डॉक्टर व अन्य स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना संक्रमित होने की आशंका है। उनके क्वारंटीन होने पर उनकी कमी को पूरा करने के लिए हमें अधिकाधिक स्वास्थ्यकर्मियों की दरकार होगी। इसके अलावा, टेस्टिंग और जीनोम सीक्वेंसिंग पर भी हमें ध्यान देना होगा। वायरस में म्यूटेशन स्वाभाविक है और यह सुखद है कि ओमीक्रोन फिलहाल उतना घातक नहीं दिख रहा, लेकिन अगले म्यूटेशन के बारे में हमें नहीं पता है। इसलिए हमें सावधान रहना ही होगा।
टीका-असमानता भी दूर करनी होगी। बिना टीका लिए इंसान में जोखिम ज्यादा होता है और संक्रमण के कारण वायरस का म्यूटेशन भी अधिक हो सकता है। ओमीक्रोन ही दक्षिण अफ्रीका में भड़का, क्योंकि वहां टीकाकरण की दर कम है, लेकिन अब यह अमेरिका और यूरोप के देशों को ज्यादा परेशान कर रहा है, जबकि वहां टीकाकरण की दर तुलनात्मक रूप से ज्यादा है। इसके अलावा, 'सुपर-स्प्रेडर इवेंट' को रोकना और मास्क को लेकर जागरूकता फैलाना भी आवश्यक है। फिर भी, यदि वायरस फैल जाता है, तो हमें अस्थायी लॉकडाउन लगाना पड़ सकता है, जैसा कि मुंबई में बृहन्मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त भी कह रहे हैं कि अगर वहां रोजाना 20 हजार से अधिक नए मामले आए, तो लॉकडाउन के विकल्प पर गौर किया जा सकता है। यह कदम हमारी आर्थिक सेहत बिगाड़ सकता है।
कोरोना का एक सबक यह भी है कि इसने संगठित क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ असंगठित क्षेत्र को ज्यादा प्रभावित किया है। इसलिए, अगर हम अब भी नहीं संभलते हैं, तो इस वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही पर इसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। मसलन, लोगों का काम पर जाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि कई जगहों पर सार्वजनिक यातायात प्रणाली शत-प्रतिशत क्षमता से सेवा नहीं दे रही है। हालांकि, दिल्ली में अब पूरी क्षमता के साथ परिवहन सेवाओं को चलाने की अनुमति दे दी गई है, मगर ऐसे प्रयास अन्य राज्यों में भी होने चाहिए। परिवहन ही नहीं, सरकारी अस्पताल और टीकाकरण पर भी हमें ध्यान देना होगा। बहुत सारे लोग 'वर्क फ्रॉम होम' नहीं कर सकते, विशेषकर असंगठित क्षेत्र में। सावधानी के साथ वे अपने काम कर सकें, यह सुविधा उनको मिलनी चाहिए।
रही बात अमेरिका की, तो वहां राष्ट्रीय स्तर पर नहीं, बल्कि राज्यवार कदम उठाए गए थे। इसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा। फिर टीके को लेकर भी वहां हिचकिचाहट ज्यादा देखी गई है। मगर सरकार ने निम्न व मध्यवर्ग के हितों का वहां पूरा ख्याल रखा और उन्हें आर्थिक संसाधन मुहैया कराए। इससे वहां मांग की स्थिति बनी रही। इसी तरह, ब्रिटेन ने भी टीकाकरण की रफ्तार तेज करते हुए अपने लोगों को सुरक्षित कर लिया, जिसका फायदा उसे आर्थिक मोर्चे पर मिला। अपने यहां अव्वल तो पैसे की कमी की वजह से मांग गिर गई और फिर, टीकाकरण की रफ्तार में सुस्ती बनी रही, जिसका नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है।
केंद्र सरकार को समझना होगा कि सेहतमंद श्रम-बल से ही अर्थव्यवस्था की सेहत भी संभलती है। अगर लोग बीमार होने लगेंगे, तो चाहकर भी वे देश की आर्थिकी में अपना योगदान नहीं दे पाएंगे। और उन्हें बीमारी से बचाने के लिए जरूरी है कि हर असुरक्षित नागरिक की सुरक्षा। इसके लिए हमें टीकाकरण की रफ्तार बढ़ानी होगी, जांच व जीनोम सीक्वेंसिंग तेज करनी होगी और सरकारी अस्पताल, परिवहन जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों को दुरुस्त करना होगा। अगर हम अब भी तैयार नहीं होंगे, तो आने वाले दिन अफरा-तफरी के हो सकते हैं, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। हमें निश्चय ही बेहतर की उम्मीद करनी चाहिए, लेकिन सबसे बुरे दौर के लिए तैयारी भी करनी चाहिए। यही कोरोना की दूसरी लहर का भी जरूरी सबक था।


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