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- ताकि अवसाद हमें घेरे न...
के सी गुरनानी, ख्यात मनोचिकित्सक। जो अंदर मन में उत्साह, उमंग और खुशी रहती थी, वह अब किसी के अंदर नहीं है। जीवन का सार क्या है? लोग सोचने लगे हैं कि हम क्यों कमा रहे हैं? भौतिक सुखों के पीछे भागने वाले लोगों के मन में भी अनेक सवाल पैदा हो रहे हैं कि आखिर हमें क्या मिला? हम कितना कमाएंगे, तो सुरक्षित हो जाएंगे? लोगों में आमतौर पर चिंता और भय व्याप्त है। मेरी बात एक महिला से हो रही थी, उन्होंने कहा, 'मैं कोई भी ऐसी बात सुन नहीं सकती। कोई मुझसे कोविड की बात करता है, तो मैं बुरी तरह घबरा जाती हूं, साफ कहती हूं, मुझसे ऐसी बात मत करो।' आज यही सच है, दुख की खबरें लोग सहन नहीं कर पा रहे हैं और सोचने लग रहे हैं कि अभी आखिर और कितना दुख उनके हिस्से शेष है। वाट्सएप पर आए शोक-दुख के संदेश लोगों को परेशान करने लगे हैं। एक व्यक्ति ने कहा, 'डॉक्टर साहब, मैं कोरोना से जुडे़ संदेश पढ़ते ही रोने लगता हूं, घबरा जाता हूं, मैं क्या करूं?' लोग अपने रोजमर्रा के काम कर रहे हैं, लेकिन उनके जीवन पर कहीं न कहीं गहरा असर पड़ चुका है। कोरोना की त्रासदी का मानसिक स्तर पर प्रभाव कुछ समय बाद स्पष्ट होगा। कोरोना की पहली लहर आई थी, तब ऐसा नहीं था। पहली लहर के समय लोगों में उत्साह था, उमंग थी, लोग अपने घर में भी खुश नजर आ रहे थे। इसलिए जब पहली लहर बीत गई, तब लोगों के मन से कोरोना का भय भी लगभग खत्म हो गया, लेकिन दूसरी लहर ने लोगों के विश्वास को हिला दिया है। दूसरी लहर के भयंकर दुष्प्रभाव से हिम्मत टूट गई है। अब कोरोना तो चला जाएगा, लेकिन बहुत सारे लोगों में पुरानी हिम्मत शायद कभी नहीं लौटेगी। यह स्थिति 'क्रोनिक डिप्रेशन' को जन्म देती है, यह ठीक है कि आप खाना खा रहे हैं, अपने सारे काम कर रहे हैं, लेकिन जो उमंग थी, उसे आप खो चुके हैं। आने वाले समय में ऐसे अवसाद के असर सामने आने लगेंगे। छह महीने में संकेत मिलने लगेंगे और दो साल में यह पता चलेगा कि आखिर हमारे समाज और हम पर कितना असर पड़ा है।