सम्पादकीय

एक ट्विट से इतनी हलचल!

Gulabi
5 Feb 2021 3:32 PM GMT
एक ट्विट से इतनी हलचल!
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एक पॉप स्टार के ट्विट पर पूरी सरकार एक सूत्री एजेंडे के साथ हरकत में आ जाए, ऐसी मिसाल शायद ही पहले कभी दिखी होगी

एक पॉप स्टार के ट्विट पर पूरी सरकार एक सूत्री एजेंडे के साथ हरकत में आ जाए, ऐसी मिसाल शायद ही पहले कभी दिखी होगी। वह भी उस ट्विट पर जिसमें सिर्फ यह कहा गया था कि भारत में किसानों के आंदोलन को दबाने की कोशिशों पर दुनिया में चर्चा क्यों नहीं हो रही है। इस पर विदेश मंत्रालय आधिकारी बयान जारी करे, गृह मंत्री सार्वजनिक वक्तव्य दें और सरकार की तरफ से देसी सेलिब्रेटीज को जवाब देने के लिए संगठित किया जाए, तो यही समझा जाएगा कि आखिर चोर कहीं अपने मन में है। बहरहाल, अब बात सिर्फ अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रेटीज तक नहीं रही है। अब नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने भी कह दिया है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है। संदर्भ किसान आंदोलन का ही है। तो सवाल है कि आखिर सरकार किस- किस का मुंह बंद करेगी। जब सड़क पर ठोकी गई कीलों की तस्वीरें दुनिया भर में छप रही हैं और पत्रकारों की गिरफ्तारी तथा उनके ट्विटर अकाउंट बंद करवाने की मुहिम सरकार जुटी है, तो दुनिया भारत के बारे में जानने के लिए अक्षय कुमार या सचिन तेंदुलकर पर निर्भर नहीं है।


इतनी बात तो सरकार और सत्ताधारी पार्टी भी जानती होगी। लेकिन उसका असल मकसद शायद विश्व जनमत को प्रभावित करना है भी नहीं। उसकी निगाहें देश में अपने समर्थक वर्ग पर है, जिसे वह तर्क और कुतर्क देना चाहती है और साथ ही चाहती है कि उन्हीं दलीलों में ये लोग कहीं कैद रहें और इस तरह देश में उसका समर्थन आधार बरकरार रहे। वरना, विदेशों से इस मुद्दे पर बोलने वाली अकेली रिहाना ही नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ युवाओं का आंदोलन खड़ा करने वाली ऐक्टिविस्ट ग्रेटा टनबर्ग से लेकर अमेरिकी अभिनेता जॉन क्यूजैक, ब्रिटेन के सांसद तनमनजीत सिंह, ब्रिटेन की ही एक और सांसद क्लॉडिया वेब, अमेरिकी अधिवक्ता और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस, कनाडा की यूट्यूबर लिली सिंह, यूगांडा की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट वनेसा नकाते, अंतरराष्ट्र्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच, अमेरिकी पर्यावरण ऐक्टिविस्ट जेमी मारगोलिन जैसी हस्तियां इनमें शामिल हो चुकी हैं। इनका असर विश्व जनमत पर होना है। साथ ही अब ट्विटर जैसी कंपनियों के लिए किसान आंदोलन की बात करने वाले हैंडल्स को बंद करना पहले जितना आसान नहीं रह जाएगा। सरकार को भी इसका अहसास जरूर होगा। लेकिन उसे इसका भी अहसास है कि देश में उसका समर्थन आधार उसके साथ अब तक खड़ा है। इसलिए बात जहां की तहां रहेगी।


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