सम्पादकीय

हत्यारों का इतना डर?: सिंघु बॉर्डर पर मारे गए दलित के घर न कोई नेता गया और न मुआवजे की मांग उठी

Rani Sahu
21 Oct 2021 6:54 AM GMT
हत्यारों का इतना डर?: सिंघु बॉर्डर पर मारे गए दलित के घर न कोई नेता गया और न मुआवजे की मांग उठी
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उत्तर प्रदेश में एक वाल्मीकि परिवार के युवक की कस्टडी में हुई मौत पर बुधवार को हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला

संयम श्रीवास्तव उत्तर प्रदेश में एक वाल्मीकि परिवार के युवक की कस्टडी में हुई मौत पर बुधवार को हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) उसके परिजनों से मिलने पहुंची. दूसरी ओर यूपी सरकार ने भी आनन फानन में 10 लाख रुपये और परिवार के किसी सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा कर दी. आप इसे यूपी में आने वाले चुनावों से जोड़ सकते हैं कि कोई भी पार्टी दलित वोटों को नाराज नहीं करना चाहती है.

लेकिन 15 अक्टूबर 2021 की एक घटना जो हरियाणा दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन (Farmers Protest) के स्थल के पास होती है, वह इन तमाम बातों पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है. 15 अक्टूबर की सुबह सिंघु बॉर्डर पर पुलिस बैरिकेड से एक दलित सिख लखबीर सिंह का शव क्षत-विक्षत हालत में लटका हुआ मिलता है. शव की हालत इतनी वीभत्स थी कि उसे देखकर लगता है जैसे यह काम किसी आदमखोर जानवर ने किया है. हालांकि इस तरह का कृत्य करने वाले जानवर ही हो सकते हैं, उनकी गिनती आप इंसानों में तो कर ही नहीं सकते. लेकिन सबसे बड़ा सवाल उठता है कि आखिर उस दलित युवक की हत्या के बाद क्या हुआ?
क्यों उसकी हत्या के बाद वह तमाम नेता और एक्टिविस्ट खामोश हैं जो इस तरह की घटना के बाद खुलकर सामने आते हैं और पीड़ित के घर जाते हैं, उनके परिजनों से मुलाकात करते हैं और उसकी मृत्यु का मुआवजा मांगते हैं. वह अब तक गायब क्यों हैं? क्या उन तमाम लोगों को किसी बात का डर है और अगर डर है तो किसका? जबकि पंजाब में 32 परसेंट दलित वोट हैं और वहां का सीएम भी दलित ही हैं. क्या राजनीतिक फार्मूले हर जगह के लिए अलग-अलग होते हैं? या जट सिखों का डर 32 परसेंट वोट पर भारी पड़ रहा है?
किससे डर रहे हैं लोग
धार्मिकता की आड़ में की गई हत्या कई बार उससे एक पूरे धर्म को, एक पूरे समाज को जोड़ देती है. यही वजह है कि वह लोग जो हर घटना में राजनीतिक गुड़ा गणित देखकर कूदते हैं, वह इस तरह की घटनाओं में खामोश हो जाते हैं. दलित युवक लखबीर सिंह की हत्या भी ऐसी ही एक घटना है. सोचिए कि लखीमपुर-खीरी में एक घटना होती है जिसमें लगभग 8 लोगों की मृत्यु हो जाती है, उनके घर तमाम राजनीतिक दलों के बड़े नेता पहुंचते हैं और उनके परिजनों से मुलाकात करते हैं. यहां तक कि उनके लिए करोड़ों का मुआवजा भी दिया जाता है.
लेकिन वहीं दूसरी तरफ किसान आंदोलन के बिल्कुल करीब एक दलित युवक की नृशंस हत्या कर दी जाती है और उसके लिए ना तो अब तक मुआवजे का ऐलान होता है ना ही उसके घर कोई नेता पीड़ित परिजनों से मिलने पहुंचता है. उसका कारण साफ है क्योंकि लोग सबसे पहले देखते हैं कि पीड़ित कौन है, किस जाति का है और आरोपी कौन है, किस जाति का है. लखबीर सिंह के मामले में आरोपी निहंग सिख हैं जिनका पंजाब में दबदबा है और तो और निहंगों के एक गुट ने इस हत्या पर शोक की जगह गर्व प्रकट किया है और यहां तक कहा है कि वह आरोपियों की पैरवी भी करेगा.
इसे विस्तार से समझने के लिए आपको समझना होगा कि आने वाले कुछ महीनों में पंजाब में विधानसभा के चुनाव होने हैं ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल अपने आपको किसी एक समुदाय के विरोध में नहीं दिखाना चाहता. खासतौर से जब मामला गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी और एक हत्या से जुड़ा हो, तब तो बिल्कुल भी ऐसा नहीं करना चाहता. क्योंकि इन तमाम राजनीतिक दलों को हत्या और पीड़ित परिवार का दुख नहीं, हर घटना में केवल राजनीतिक नफा नुकसान दिखाई देता है और इसी के तहत वह आगे क्या करना है इस पर फैसला लेते हैं. यह मामला निहंग बनाम दलित सिख का है इसलिए सब खामोश हैं.
पंजाब में जट सिखों का दबदबा
इस हत्या को लेकर कोई राजनीतिक दल खुलकर सामने क्यों नहीं आ रहा है इसके पीछे का एक सबसे बड़ा कारण है पंजाब विधानसभा चुनाव. राजनीतिक दलों को पता है कि पंजाब की राजनीति में जाट सिखों का कितना दबदबा है. हर राजनीतिक दल में ऊपर के नेता इसी समुदाय से आते हैं. जबकि अगर आबादी की बात करें तो दलितों की आबादी जाट सिखों की आबादी से ज्यादा है. पंजाब में दलितों की आबादी 32 फ़ीसदी है और जाट सिखों की आबादी 25 फ़ीसदी. लेकिन पंजाब की सियासत में जाट सिखों के मुकाबले दलितों की भागीदारी ना के बराबर है. आज कांग्रेस ने पंजाब में भले ही एक दलित नेता को मुख्यमंत्री बना दिया है. लेकिन सब जानते हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस जीतती है तो मुख्यमंत्री एक जाट सिख ही होगा. इससे पहले कि राजनीति में पंजाब के ज्यादातर मुख्यमंत्री जाट सिख समुदाय से ही आते रहे हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने आप को बिल्कुल अलग कर लिया
जब से सिंघु बॉर्डर पर दलित युवक लखबीर सिंह की हत्या हुई है, तब से ही सबसे ज्यादा सवाल संयुक्त किसान मोर्चा पर उठाए गए. हालांकि अब तक निहंग सीखों का भरपूर योगदान लेने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ-साफ कह दिया है कि निहंग सिखों का ना तो संयुक्त किसान मोर्चा से कोई ताल्लुक है ना ही किसान आंदोलन से. संयुक्त किसान मोर्चा के योगेंद्र यादव ने भी द वायर को दिए इंटरव्यू में साफ कह दिया कि संयुक्त किसान मोर्चा का निहंग समुदाय से कोई लेना देना नहीं है. ना ही किसान आंदोलन का इस समुदाय से कोई लेना-देना है. लेकिन सवाल उठता है कि इस तरह से कैसे इंकार किया जा सकता है, क्योंकि बीते कई महीनों से यह समुदाय किसान आंदोलन में भाग ले रहा है और सिंघु बॉर्डर पर तमाम आंदोलनकारियों के साथ टिका हुआ है.
षड्यंत्र के आरोप पर तुरंत एक्शन में आ गई पंजाब सरकार
एक तबका ऐसा भी है जो इस हत्या को किसान आंदोलन को बदनाम करने के षड्यंत्र से जोड़ रहा है. दरअसल इंटरनेट पर एक तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें निहंगों के दल प्रमुख बाबा अमन सिंह और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर एक साथ दिखाई दे रहे हैं. पंजाब सरकार तो इस तस्वीर को लेकर जांच कराने की बात तक कह रही है. उसका कहना है कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से निहंगों के प्रमुख बाबा अमन सिंह की मुलाकात के पीछे कोई गहरी साजिश है. यह बात उठते ही पंजाब सरकार तुरंत एक्शन में आ गई. लखबीर के गांव तो नहीं पहुंचे पर उसकी मौत का पता लगाने के लिए तुरंत आदेश जारी कर दिया.
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