सम्पादकीय

तो क्या बीजेपी का कांग्रेस-मुक्त भारत का सपना साकार होने वाला है?

Gulabi
13 March 2022 6:18 AM GMT
तो क्या बीजेपी का कांग्रेस-मुक्त भारत का सपना साकार होने वाला है?
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पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली करारी व प्रत्याशित हार के बाद कांग्रेस पार्टी में अभी से नाटकों का सिलसिला शुरू हो गया है
अजय झा.
अभी तीन दिन पूर्व संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा (5 state assembly election) चुनावों में मिली करारी व प्रत्याशित हार के बाद कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में अभी से नाटकों का सिलसिला शुरू हो गया है. जैसे किसी फिल्म का स्क्रिप्ट पहले से ही तैयार होता है, ठीक उसी तरह कांग्रेस के रंगमच पर घटनाओं का प्रदर्शन एक स्क्रिप्ट के तहत ही हो रहा है. पिछले ढाई वर्षों से अंतरिम अध्यक्ष पद पर बनी सोनिया गांधी ने रविवार को पार्टी की कार्यकारिणी जिसे कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) के नाम से जाना जाता है, की बैठक बुलाई है जिसमे पार्टी की हार पर चर्चा प्रमुख मुद्दा है. CWC की मीटिंग में एक बार फिर वही होगा जो पिछले कई कई वर्षों से होता आया है. कांग्रेस की एक पुरानी परंपरा रही है कि जब भी पार्टी या पार्टी की सरकार की आलोचना होने लगे तो एक कमिटी का गठन किया जाता है ताकि आग पर पानी डाल दिया जाए.
पिछली बार हार के बाद बनी कमेटी के रिपोर्ट का क्या हुआ
पिछले वर्ष हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भी ऐसा ही हुआ था. पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी के नेतृत्व में एक कमिटी का गठन हुआ था जिसे जल्द से जल्द रिपोर्ट देने को कहा गया. किसी को पता नहीं कि अंटोनी कमिटी ने रिपोर्ट दिया भी या नहीं, और अगर दिया तो उसमें क्या लिखा था क्योंकि उस रिपोर्ट पर अमल करना तो दूर, उस पर चर्चा भी नहीं हुयी. चूंकि अंटोनी ने हाल ही में चुनावी और सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा की है, इस बार शायद मल्लिकार्जुन खड्गे या किसी अन्य बुजुर्ग नेता को जांच करने और रिपोर्ट देने की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी. पर वह बुजुर्ग नेता गुलामन बी आजाद जैसे नेता नहीं होंगे जो कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार से आजाद करना चाहते हैं.
खबर यह भी है कि कांगेस अध्यक्ष पद के लिए निर्धारित अगस्त-सितम्बर के महीने में होने वाला चुनाव अब समय से पहले कराया जा सकता है ताकि सोनिया गांधी के सर से अध्यक्ष पद का मुकुट निकल कर उनके बेटे राहुल गांधी को सौंप दिया जाए. CWC की मीटिंग में आजाद जैसे कुछ नेता जो पार्टी की हालत से दुखी हैं को बोलने का मौका दिया जाएगा. पर आजाद जैसे नेता मीडिया में ही खुल कर बोलते हैं, पार्टी के मंच पर गांधी परिवार के खिलाफ कभी नहीं बोलते, और आज भी ऐसा ही होगा.
CWC से इस्तीफा देने से क्या होने वाला है
पर सबसे दिलचस्प घटना CWC मीटिंग के एक दिन पहले ही घटित होने लगी. पहले खबर आयी कि गांधी परिवार के तीनों सदस्य – सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी -इस्तीफा देने की पेशकश करेंगे. अगर पार्टी पदों से इस्तीफा देने की बात है तो राहुल गांधी किस पद से इस्तीफा देंगे, उनके पास कोई पद है ही नहीं पर पार्टी के बेताज बादशाह हैं. और अगर इस्तीफा CWC से देने की बात है तो यह तर्कसंगत नहीं है.
कांग्रेस के संविधान के अनुसार पार्टी अध्यक्ष ही CWC के अध्यक्ष होते हैं और सभी राष्ट्रीय महासचिव CWC के सदस्य होते हैं. लिहाजा जब तक सोनिया कांग्रेस अध्यक्ष और प्रियंका गांधी राष्ट्रीय महासचिव पद पर काबिज़ हैं तब तक उनका CWC से इस्तीफा हो ही नहीं सकता. संभव है कि सोनिया और प्रियंका गांधी अपने पदों से इस्तीफा देने की पेशकश करें, जिसे CWC नामंजूर कर देगी. गांधी परिवार का कांग्रेस पार्टी में वर्चस्व बना रहेगा जिसकी तैयारी शनिवार से ही शुरू हो गयी.
पार्टी के सबसे नजदीक चैनल पर ही लगाया आरोप
ऐसे नेता जो पार्टी के बड़े नेता सिर्फ इसलिए हैं कि वह राहुल गांधी के करीबियों में गिने जाते हैं, ने कल से ही खुल कर बोलना शुरू कर दिया. जिनमे से एक नाम पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रमुख प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी है. सोमवार शाम सुरजेवाला का एक वक्तव्य आया जिसमे उन्होंने गांधी परिवार के इस्तीफे की खबर को बीजेपी द्वारा प्लांट किया हुआ न्यूज़ बताया. सुरजेवाला ने एक चैनल का नाम लिया और कहा कि बीजेपी के दबाव में इस खबर को चलाया गया. यह चैनल एंटी-बीजेपी के रूप में कुख्यात है जब 10 मार्च को पांच राज्यों के चुनाव का परिणाम आ रहा था तो इस चैनल के एंकर सार्वजानिक रूप से कहते देखे गए कि वह इस परिणाम से नाखुश हैं. अब वह चैनल जिसका लाइसेंस कैंसिल करने की सरकार द्वारा कोशिश की गयी हो, जिस पर आयकर और एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट का छपा पड़ा पर उसने अपना स्टैंड नहीं बदला,यह आरोप लगाना कि उसने बीजेपी के कहने पर यह "फेक न्यूज़" चलायी यह समझ से परे है. शायद सुरजेवाला जैसे नेताओं को यह डर सताने लगा हैं कि अगर गांधी परिवार ने इस्त्तीफा दे दिया तो उनकी भी राजनीति की दुकान बंद हो जाएगी. अब सुरजेवाला को कौन बताये कि बीजेपी क्यों चाहेगी कि गांधी परिवार इस्तीफा दे जब उनके बने रहने से पार्टी कमजोर होती जा रही है और बीजेपी को इसका फायदा मिल रहा है.
क्या बिना गांधी परिवार के कांग्रेस का अंत हो जाएगा
सुरजेवाला की ही तरह कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष डीके शिवकुमार का बयान आया कि बिना गांधी परिवार के कांग्रेस पार्टी का अंत हो जाएगा. यह पार्टी के सभी नेताओं की सरासर बेइज्जती है, मानो जैसे किसी और में इतनी काबिलियत नहीं है कि वह पार्टी चला पाए. वैसे भी कांग्रेस का अध्यक्ष कोई भी हो, पार्टी का अभी जो हाल है, इससे बुरा हाल और क्या हो सकता है जबकि लगातार कांग्रेस का पतन जारी है और राहुल गांधी सबक लेने की बात करते हैं. शायद वह या कांग्रेस पार्टी तब तक सिर्फ सबक ही सीखते रहेंगे जब तक पार्टी ICU से कब्रिस्तान तक ना पहुंच जाए.
कांग्रेस के वह नेता जो यह कहते दिख रहे हैं कि गांधी परिवार के बिना पार्टी का भविष्य अंधकारमय है, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि नेतृत्व ऊपर से प्रकट नहीं होता बल्कि उसे उभरने का मौका मिले तब ही वह सामने आता है. क्या 20 वर्ष पहले किसी ने कल्पना भी की थी कि बिना वाजपेयी और अडवाणी के बीजेपी का कोई भविष्य हो सकता है. पर पार्टी ने युवा पीढ़ी को मौका दिया जिस कारण नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह जैसे नेताओं को आगे आने का मौका मिला. और अगर बीजेपी आडवाणी जिनके अथक प्रयासों का नतीजा है कि आज बीजेपी सत्ता में है को अगर रिटायर नहीं करती तो फिर बीजेपी का उदय थम जाता. समय के साथ बदलाव नहीं करना मूर्खता है और पतन का सबसे बड़ा कारण भी होता है.
सोनिया का केवल एक ही सपना
महाभारत गवाह है कि पुत्र मोह में कैसे एक शक्तिशाली वंश का अंत हो गया. ठीक उसी की पुनरावृति कांग्रेस पार्टी में भी देखी जा रही है. सोनिया गांधी का बस एक ही सपना है कि जैसे भी हो राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाना है. लिहाजा राहुल गांधी कांगेस के प्रमुख नेता बने रहेंगे और उनको कांग्रेस पार्टी का प्रमुख नेता बनाए रखने के लिए सोनिया गांधी को भी पद संभालना ही पड़ेगा. अगर पार्टी घर पर बैठ कर, बिना जनता से मिले या जनता के बीच गए चलती हो फिर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा बेवजह पूरे देश का भ्रमण करते रहते हैं. अब तो यह याद भी नहीं कि पिछली बार कब सोनिया गांधी जनता के बीच गई थी. रही बात राहुल और प्रियंका की तो अब वह इस साल के अंत में होने वाले हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव तक सिर्फ सोशल मीडिया के माध्यम से ही मोदी और बीजेपी सरकार की आलोचना करते दिखेंगे. अगर राहुल गांधी सबक लेना ही चाहते हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लें कि कैसे पांच राज्यों में चुनाव संपन्न होने के अगले दिन ही वह गुजरात विधान सभा की तैयारी के जुट गए. पर अगर कोई गाँधी परिवार के किसी सदस्य को कैजुअल नेता या सीजनल नेता कह दे तो कांग्रेस पार्टी को यह नागवार होता है.
कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़े समस्या ही गांधी परिवार है, समस्या का समाधान नहीं. 136 साल पुरानी पार्टी गांधी परिवार के पास एक धरोहर है, इसे चलाने की जिम्मेदारी उन्हें दी गयी पर जिस तरह वह पार्टी चला रहे हैं इससे तो ऐसा प्रतीत होता है कि गांधी परिवार ने कांग्रेस पार्टी को अपनी निजी जागीर समझ रखा है. जिस परिवार को देश की जनता बार बार और लगातार रिजेक्ट करती जा रही है उनको पार्टी की जिम्मेदारी देना और उन्हें पार्टी का चेहरा बनाए रखना समझदारी नहीं सिर्फ चापलूसी है.
कांग्रेस पार्टी को समझना होगा कि गांधी परिवार से आगे भी दुनिया है और शायद उनका भविष्य भी. अगर यह परिवार स्वेच्छा से गद्दी नहीं छोड़ता तो फिर वह समय आ गया है कि या तो पार्टी में उनके खिलाफ खुलेआम बगावत हो या फिर कांग्रेस पार्टी अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करती रहे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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