सम्पादकीय

तो क्या सरकारी कर्मचारी अखिलेश को धोखा दे गए? नहीं चला अखिलेश का पुरानी पेंशन बहाली योजना का चुनावी दांव

Gulabi
10 March 2022 6:18 AM GMT
तो क्या सरकारी कर्मचारी अखिलेश को धोखा दे गए? नहीं चला अखिलेश का पुरानी पेंशन बहाली योजना का चुनावी दांव
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अखिलेश का पुरानी पेंशन बहाली योजना का चुनावी दांव
प्रवीण कुमार.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) में जनादेश के ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो ये बात स्पष्ट तौर स्थापित होती दिख रही है कि सूबे के सरकारी कर्मचारी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के एक अहम वादे के साथ खड़े नहीं हुए. अखिलेश यादव ने एसपी के घोषणा पत्र में सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का बड़ा चुनावी दांव चला था. 403 सीटों में 383 सीटों के रूझान में एसपी गठबंधन जहां 121 सीटों पर आगे चल रही है, वहीं बीजेपी गठबंधन 241 सीटों पर आगे चल रही है.
कहने का मतलब यह कि सरकारी कर्मचारियों ने एसपी से आगे चल रही बीजेपी और योगी सरकार में ही अपना भरोसा व्यक्त किया है. उल्लेखनीय है कि जब मतगणना शुरू होती है तो सबसे पहले पोस्टल बैलेट के ही मतों की गिनती शुरू की जाती है और यह मत पूरी तरह से उन सरकारी कर्मचारियों के होते हैं जो चुनावी ड्यूटी या दूसरे शहरों में किसी अन्य ड्यूटी पर तैनात होते हैं और सीधे तौर पर मतदान करने की स्थिति में नहीं होते हैं.
28 लाख कर्मचारियों का मुद्दा था पेंशन बहाली योजना
दरअसल सरकारी कर्मचारियों के पुरानी पेंशन योजना बहाली एक ऐसा मुद्दा है, जिससे सिर्फ उत्तर की बात करें तो करीब-करीब 28 लाख कर्मचारी, शिक्षक और पेंशनर्स जुड़ते हैं. इतना ही नहीं, यह ऐसा वर्ग है जो समाज को दिशा देने का भी काम करता है. अगर यह वर्ग अपने परिवार में ही सहमति बना लेता है तो यह संख्या एक करोड़ के करीब बैठती है.
शायद इसी चुनावी गणित का अंदाजा लगाते हुए अखिलेश यादव ने पुरानी पेंशन योजना की बहाली का बड़ा दांव खेला था. दूसरा, अखिलेश यह भी भली भांति जानते थे कि चुनाव कराने के लिए राज्य कर्मचारी चुनावी तंत्र में सबसे मजबूत प्रहरी बनकर खड़े होते हैं. चाहे वह सरकारी शिक्षक हों, लेखपाल हों, सिपाही हों या अधिकारी वर्ग.
लेकिन मतगणना में जो आंकड़े निकलकर सामने आए हैं वह समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को जताने के लिए काफी हैं कि सरकारी कर्मचारी परंपरावादी होते हैं. जो है उसपर उनका भरोसा ज्यादा होता है. सपनों की दुनिया से खुद को दूर रखना उनकी मनोवृति होती है. लिहाजा अगर अखिलेश यादव ने सरकारी कर्मचारी वर्ग के मतदाताओं का मनोवैज्ञानिक सर्वे करा लिया होता तो शायद एसपी को ये दिन नहीं देखने पड़ते.
अखिलेश यादव ने कहां से उठाया था ये मुद्दा?
अगर याद करें तो राज्य कर्मियों ने 2018 में पुरानी पेंशन बहाली को लेकर एक बड़ा आंदोलन लखनऊ में किया था जिसके लिए दिसंबर 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कमेटी का गठन करते हुए पुरानी पेंशन के बहाली पर विचार कर अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा था, लेकिन आंदोलन और हड़ताल समाप्त होने के साथ ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. हालांकि राज्य कर्मचारियों ने कई दफे हड़ताल और धरना प्रदर्शन भी किया, लेकिन सरकार ने हर बार आश्वासन देकर कर्तव्यों की इतिश्री कर ली.
तब कर्मचारियों और शिक्षकों का साफतौर पर कहना था कि आज तक इस मुद्दे पर कोई भी विधायक, मंत्री और सांसद नहीं बोला, क्योंकि वह खुद पेंशनभोगी हैं और जीवन भर पेंशन और अन्य सुविधाएं लेते हैं, लेकिन 30 से 35 साल तक सेवा करने के बाद भी सरकारी कर्मचारियों को जब पेंशन देने की बात उठती है तो वे पीछे हट जाते हैं. जब चुनाव नजदीक आया तो अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को न सिर्फ अपने चुनावी घोषणा पत्र में डाला, बल्कि अपनी हर चुनावी रैली में इस वादे को गिनाते भी रहे.
साल 2005 में ही बंद हो गई है पुरानी पेंशन योजना
याद करें तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की केंद्र सरकार ने अप्रैल 2005 के बाद के नियुक्तियों के लिए पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया था और नई पेंशन योजना लागू की थी. उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की एसपी सरकार थी. केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की, लेकिन इसे राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं किया गया था. इसके बावजूद धीरे-धीरे अधिकतर राज्यों ने इसे अपना लिया. उस समय के कर्मचारी इस नई पेंशन स्कीम को समझ नहीं पाए. उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे यह योजना रिटायरमेंट के बाद उन्हें पुरानी पेंशन योजना से ज्यादा लाभ देगी, लेकिन उनका यह भ्रम जब टूटा तो बहुत देर हो चुकी थी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं.)
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