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तो क्या कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) त्यागपत्र देने वाले हैं
अजय झा। तो क्या कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा (BS Yediyurappa) त्यागपत्र देने वाले हैं? एक तरफ येदियुरप्पा का बयान है कि अभी तक उनसे त्यागपत्र देने को नहीं कहा गया है और बीजेपी आलाकमान का आदेश मिलते ही वह पद से इस्तीफा से देंगे. वहीँ दूसरी तरफ खबर यह भी है कि मुख्यमंत्री पद पर उनका यह आखिरी सप्ताहांत है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि वह 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने के लिए काम करते रहेंगे.
इन मिश्रित बयानों से तीन बातें उभर कर सामने आ रही हैं. पहला- येदियुरप्पा स्वेक्षा से पद त्यागने के मूड में नहीं है पर वह आदेश मिलते ही पद त्याग देंगे, दूसरा-बीजेपी यह भी नहीं कह सकती कि स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने इस्तीफा दिया है और शायद उन्होंने राज्यपाल बनने से मना कर दिया है. अभी कुछ ही दिन पहले नयी दिल्ली में येदियुरप्पा की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लम्बी मुलाकात हुयी थी और तब से ही उनके त्यागपत्र की बात जोरों से चलनी शुरू हो गयी.
विधायकों में रोष
बीजेपी का आंकलन था कि येदियुरप्पा के नेतृत्व में पार्टी शायद 2023 का चुनाव नहीं जीत पाएगी. क्योंकि ना सिर्फ बीजेपी के विधायकों में उनके खिलाफ रोष है बल्कि एक बार फिर से येदियुरप्पा भ्रष्टाचार के आरोप में घिरने लगे हैं. सवाल सिर्फ इतना ही था कि बिल्ली के गले के घंटी कौन बंधेगा? और यह जिम्मेदारी मोदी ने ली. शायद मोदी के सिवा येदियुरप्पा किसी और की बात सुनने वाले थे भी नहीं थे. जहां येदियुरप्पा का जाना अब तय माना जा रहा है, बीजेपी नेताओं के दिल की धड़कन भी जरूर बढ़ गयी होगी. 2011 में भी जब लोकायुक्त ने उन्हें खनन के मामलों में भ्रष्टाचार का दोषी करार दिया था तो येदियुरप्पा ने अनमने रूप से और पार्टी के दबाव में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था.अगले वर्ष यानि 2012 में उन्होंने कर्नाटक जनता पक्ष नाम की अपनी पार्टी का गठन किया और 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया था. 2012 में वह 69 वर्ष के थे पर अब उम्र के इस मोड़ पर जबकि वह 78 वर्ष के हो चुके हैं और अगले चुनाव होने के समय तक 80 वर्ष के हो चुके होंगे.येदियुरप्पा शायद इस बार ऐसा कुछ ना करें, हलांकि इसकी अभी कोई गारंटी नहीं है.
4 बार सीएम बनने का सौभाग्य मिला
येदियुरप्पा अभी तक चार बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जो कर्नाटक के इतिहास में रिकॉर्ड है पर इसे उनका दुर्भाग्य ही माना जाना चाहिए कि वह पांच वर्षों तक कभी भी मुख्यमंत्री पद पर नहीं रह पाए. पहली बार वह मुख्यमंत्री 2007 में बने और पद पर सिर्फ सात दिन ही रह पाए. जेडीएस नेता एच.डी. कुमारस्वामी के साथ मिल कर जेडीएस और और बीजेपी ने प्रदेश में धरम सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिराने में सफल रही. अगला चुनाव 40 महीने दूर था और फैसला यह हुआ कि कुमारस्वामी और येदियुरप्पा बारी बारी से 20-20 महीनों के लिए मुख्यमंत्री पद संभालेंगे. 20 महीनों के बाद कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से माना कर दिया, बीजेपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया और कुमारस्वामी की सरकार गिर गयी तथा प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाया गया जो 35 दिनों तक चला. बीजेपी और जेडीएस में समझौता हो गया और येदियुरप्पा ने पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ 2007 में ली, पर कुमारस्वामी ने एक बार फिर से उनके साथ धोखा किया और पीछे हट गये, लिहाजा सात दिनों में ही येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा. कर्णाटक में एक बार फिर से राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा और प्रदेश में राजनीतिक गतिरोध ख़त्म करने के लिए नया चुनाव करना पड़ा. 2008 के हुए चुनाव में येदियुरप्पा के नेतृत्व के बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की और येदियुरप्पा दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. पर भ्रष्टाचार के आरोपों में लिप्त पाए जाने के कारण उन्हें 37 महीनों के बाद पद त्यागना पड़ा.
अगर पहली बार येदियुरप्पा सात दिनों तक मुख्यमंत्री रहे तो तीसरी बार वह कुर्सी पर सिर्फ ढाई दिन ही टिक पाए. 2018 के चुनाव में प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा चुनी गयी जिस में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर सामने आयी और बहुमत से मात्र आठ सीटों का फासला रह गया. राज्यपाल बाजुभाईवाला ने सबसे बड़े दल में नेता होने के नाते येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई और उन्हें 15 दिनों के अन्दर विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया. उम्मीद की जा रही थी कि जोड़-तोड़ या विधायकों के खरीद-फ़रोख्त से येदियुरप्पा बहुमत साबित करने में सफल हो जायेंगे. येदियुरप्पा की नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी और खरीद-फरोख्त के अंदेशे को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा को 24 घंटे के अन्दर बहुमत साबित करने का आदेश दिया. लिहाजा तीसरे दिन उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन दिया और दोनों दलों की कुमारस्वामी के नेतृत्व में मिलीजुली सरकार बनी. येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बनना चाहते थे और वह अपने प्रयास में लगातार जुटे रहे. उन्हें सफलता 14 महीनों के बाद मिली जब जेडीएस के 16 विधायकों ने बगावत कर दिया जिनमें से 15 विधायकों ने विधानसभा सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया. बीजेपी पिछले दरवाज़े से बहुमत में आ गयी, येदियुरप्पा ने कुमारस्वामी से उनके साथ धोखा करने का बदला ले लिया. कुमारस्वामी को इस्तीफा देना पड़ा और येदियुरप्पा को चौथी बार 26 जुलाई 2019 मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी. 15 में से 12 जेडीएस के बागी बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव में जीत कर वापस विधायक चुने गए और बीजेपी को पूर्ण बहुमत हासिल हुआ.
उत्तराधिकारी की तलाश
भ्रष्ट्राचार के आरोपों में एक बार फिर से घिरने के अलावा येदियुरप्पा के समय से पहले विदाई का एक बड़ा कारण है बीजेपी के विधायकों की उनसे बढ़ती नाराज़गी. या तो उम्र का तकाजा था या फिर गुमान कि वह अपने दम पर फिर से सरकार बनाने में सफल रहे. कारण जो भी हो,येदियुरप्पा अपने विधायकों को साथ ले कर चलने में असफल रहे. बीजेपी को लगने लगा था कि येदियुरप्पा के नेतृत्व में चुनाव जीतना शायद संभव नहीं होगा और यह बात आम हो गयी थी कि अगर येदियुरप्पा ने इस्तीफा नहीं दिया तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया जाएगा. अनिच्छा से ही पर लगता है कि येदियुरप्पा की विदाई का समय अब आ गया है. माना जा रहा है कि जब भी बीजेपी आलाकमान येदियुरप्पा के उत्तराधिकारी को चुने लेगी, उसी दिन येदियुरप्पा को त्यागपत्र देना का आदेश भी मिल जाएगा. बीजेपी कम से कम छः नामों पर विचार कर रही है. पार्टी को एक ऐसे नेता की खोज है जिसकी छवि बेदाग हो,जिसकेअपनी जाति में अच्छी पकड़ हो और वह लोकप्रिय भी हो ताकि उसके नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव जीता जा सके. अंतिम फैसले की घोषणा अगले दो-तीन दिनों में होने की संभावना है.
कर्नाटक के इतिहास में येदियुरप्पा का नाम इस अनोखे रिकॉर्ड के लिए हमेशा दर्ज रहेगा कि वह सर्वाधिक चार बार मुख्यमंत्री बने पर सबसे कम अवधि के लिए भी वही कुर्सी पर रहे. एक बार सात दिनों और दूसरी बात ढाई दिनों के लिए. पर इस अनूठे रिकॉर्ड के बीच येदियुरप्पा को इसलिए भी याद रखा जाएगा कि कर्नाटक में बीजेपी को एक बड़ी राजनीतिक शक्ति बनाने में उनका महत्वपूर्व योगदान रहा, दक्षिण भारत के वह बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री बने और येदियुरप्पा ने ही सही मायनों में बीजेपी के लिए दक्षिण भारत का द्वार खोला था.
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