सम्पादकीय

स्मृति शेष: जब अशोक गहलोत विनोद दुआ के सवालों का जवाब नहीं दे पाए और फिर एक इस्तीफा..!

Gulabi
5 Dec 2021 10:51 AM GMT
स्मृति शेष: जब अशोक गहलोत विनोद दुआ के सवालों का जवाब नहीं दे पाए और फिर एक इस्तीफा..!
x
विनोद दुआ अब नहीं हैं। इस खबर पर यकीन नहीं करना चाहता, लेकिन यह सच है कि
विनोद दुआ अब नहीं हैं। इस खबर पर यकीन नहीं करना चाहता, लेकिन यह सच है कि वे अब अपनी अनंत यात्रा पर चले गए हैं। बीते चार दशकों से वे भारतीय टेलिविजन पत्रकारिता की मजबूत रीढ़ थे। उम्रभर दबाव आए, तमाम झंझावात आए पर वे अपने सिद्धांतों से डिगे नहीं। कोई भी सरकार रही हो, विनोद दुआ के आगे उसकी नहीं चली। कारण यही था कि विनोद दुआ को कोई भी लालच या प्रलोभन डिगा नहीं सकता था।
दरअसल, आने वाली नस्लें शायद भरोसा भी न करें कि देश में कभी एक ऐसा पत्रकार एंकर भी था, जो ताल ठोक कर कहता था, जो कहूंगा सच कहूंगा। सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा। उनसे मेरे रिश्ते की शुरुआत उन्नीस सौ पचासी से नब्बे के बीच हुई थी।
मैं उन दिनों नवभारत टाइम्स जयपुर में मुख्य उपसंपादक था। दिल्ली आना-जाना लगा रहता था और शाम की किसी महफिल में हम साथ थे। उन्होंने और चिन्ना भाभी ने गाने गाए। कुछ मैंने भी साथ दिया। ब्रायन सिलास पियानो पर साथ दे रहे थे। सुबह चार साढ़े चार बजे तक महफिल चली। फिर जामा मस्जिद के पास पूड़ी सब्जी खाने गए।
उन्होंने निहारी खाई। हमारे रिश्ते की वह शुरुआत थी। इसके बाद तो कई सालों तक उनसे बाबा बुल्ले शाह से लेकर बाबा फरीद, कबीर, तुलसी और जायसी जैसे महान रचनाकारों की अनगिनत रचनाएं सुनी। पुराने गीत सुने और साथ में गाए भी। चिन्ना भाभी भी बहुत अच्छा गाती थीं। उनके घर का एक कमरा हम जैसों के लिए ही आरक्षित रहता था।
उनकी मां भी हम लोगों को बेटे जैसा ही प्यार करती थीं। इसके बाद अखबार के साथ साथ दूरदर्शन से मेरा भी रिश्ता बन गया। हमारी दोस्ती परवान चढ़ी। उन्नीस सौ बानवे में भारत की पहली समाचार पत्रिका परख हम लोगों ने शुरू की। कर्ता-धर्ता विनोद जी ही थे। परख ने शीघ्र ही टीवी पत्रकारिता में झंडे गाड़ दिए। पत्रिका दूरदर्शन पर थी, लेकिन कोई दबाव हमारे ऊपर नहीं था।
केंद्र और राज्य सरकारों की हम खुलकर आलोचना करते थे, पर कभी कोई दबाव नहीं आया। कभी कुछ ऐसा हुआ भी तो विनोद जी ने उसे कपूर की तरह उड़ा दिया। परख की रिपोर्टिंग टीम में हम लोगों के साथ रजत शर्मा भी थे। वे पंजाब से रिपोर्टिंग करते थे।
असल में सरकार और सत्ता प्रतिष्ठानों से सिद्धांतों पर टकराव विनोद जी के स्वभाव में था। परख से पहले जनवाणी नामक एक कार्यक्रम प्रसारित होता था। इसमें विनोद जी एक शख्सियत का साक्षात्कार करते थे। सवाल इतने तीखे होते थे कि सामने वाले को उत्तर देना मुश्किल हो जाता था। उन दिनों राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। अशोक गहलोत नए नए केंद्रीय मंत्री बने थे। विनोद जी के सवालों का उत्तर तक वे नहीं दे पाए। एपिसोड प्रसारित हुआ तो उनकी बड़ी किरकिरी हुई।
अगले दिन कुछ वरिष्ठ मंत्री और कांग्रेस नेता राजीव गांधी के पास पहुंचे और उनसे कहा कि सरकारी दूरदर्शन पर सरकार के ही मंत्री की छवि खराब की जा रही है। विनोद दुआ को हटाया जाए।
राजीव गांधी ने कहा-
अगर कोई मंत्री टीवी पत्रकार के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाए तो इसमें विनोद दुआ की क्या गलती? अगले दिन ही अशोक गहलोत का इस्तीफा हो गया।
फिर एक साक्षात्कार में रक्षा मंत्री शरद पवार आए। विनोद दुआ के सामने नहीं देखकर वे सवालों का उत्तर इधर-उधर देख कर दे रहे थे। टीवी पत्रकारिता में यह असभ्यता मानी जाती है। जब बहुत हो गया तो
विनोद दुआ ने कहा-
शरद पवार जी! मेरी तरफ देख कर उत्तर दीजिए। आप इधर-उधर देखते हैं तो ऐसा लगता है जैसे राष्ट्र के नाम सन्देश दे रहे हैं और मैं अपना वक्त बरबाद कर रहा हूं। यह टिप्पणी दूरदर्शन पर प्रसारित भी हुई। आज किसी पत्रकार में हिम्मत है?
जब मोती लाल वोरा उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे तो मैंने परख के संवाद स्तंभ में साक्षात्कार के लिए उनसे बात की। वोरा जी ने तब तक किसी भी राष्ट्रीय टीवी कार्यक्रम के लिए कोई साक्षात्कार नहीं दिया था। लेकिन विनोद दुआ के कारण पशोपेश में थे। मैनें उन्हें भरोसा दिया कि कुछ भी गड़बड़ नहीं होगी। वे तैयार हो गए।
मैं उनके साथ लखनऊ से दिल्ली आया। रिकॉर्डिंग से पहले विनोद जी से मैंने वोरा जी की यह चिंता जताई और उनसे नरमी बरतने का अनुरोध किया।
विनोद जी बोले-
"राजेश जी! वे एक राज्यपाल हैं और संवैधानिक प्रमुख हैं, उनसे कहिए, निश्चिंत रहें। कम राजनेता ऐसे हैं, जिन्हें मैं पसंद करता हूं और उनमें से एक वोरा जी भी हैं।" जैन स्टूडियो में यह साक्षात्कार रिकॉर्ड किया गया और बेहद पसंद किया गया।
मेरी अपनी परख की अनेक विशेष समाचार रिपोर्टों के कारण सरकारें, बड़े राजनेता तक मुश्किल में पड़ जाते थे। उन रिपोर्टों पर विनोद दुआ की पैनी टिप्पणी सोने में सुहागे का काम करती थी। इसी तरह रजत शर्मा, विनोद दुआ, विजय त्रिवेदी और मुकेश कुमार की धारदार रिपोर्टिंग परख को धारदार बनाती थी। वैसी रिपोर्टिंग तो आज की पीढ़ी के लिए असंभव ही है। मगर दूरदर्शन को यह आजादी मिली रही। आज के दौर को देखते हुए तो शायद ही कोई इस पर भरोसा करेगा।
परख का अपना राष्ट्रीय संवाददाता तंत्र था। उन दिनों दूरदर्शन के पास भी ऐसा तंत्र नहीं था। अस्सी के दशक में प्रणव राय और विनोद दुआ की जोड़ी ने चुनावों के दौरान जो विश्लेषण किए,वे हिंदुस्तान ही नहीं, समूचे एशिया के लिए एक धरोहर से कम नहीं हैं। उन दिनों ईवीएम नहीं होती थी और मतगणना कई दिन चलती थी। उस दरम्यान यह जोड़ी किसी भी पार्टी या सरकार या राजनेता को नहीं छोड़ती थी। मुद्दों पर निष्पक्ष आलोचना की नींव तो इसी जोड़ी ने छोटे पर्दे पर डाली।
दरअसल, लोग यह मानते हैं कि छोटे परदे पर बाहरी प्रोड्यूसर की ओर से डीडी मेट्रो पर दैनिक बुलेटिन आज तक ने प्रारंभ किया था। पर यह सच नहीं है। आज तक से पहले विनोद दुआ ने उसी समय पर न्यूज वेब दैनिक बुलेटिन शुरू किया था। इस बुलेटिन ने एक सप्ताह में ही झंडे गाड़ दिए थे।
अफसोस, यह कुछ महीनों बाद किन्हीं कारणों से बंद हो गया। लेकिन विनोद दुआ ने शानदार पत्रकारिता के जरिए नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए। सहारा, ऑब्जर्वर, चक्रव्यूह और न्यूज ट्रैक पर विनोद दुआ की पत्रकारिता हरदम याद की जाएगी। एनडीटीवी पर उनका दैनिक शो अपनी गुणवत्ता के लिए मशहूर था। लोग उसका बेताबी से इंतजार करते थे। द वायर पर उनकी तीखी टिप्पणियों पर दर्शक रीझते थे क्योंकि वे उनके दिल की बात करते थे।
विनोद जितने अच्छे सरोकारों को समर्पित पत्रकार थे, उससे अच्छे प्रस्तोता यानी एंकर थे। जितने अच्छे प्रस्तोता थे, उससे अच्छे टीवी की बारीकियों के विशेषज्ञ और उससे भी अच्छे गायक। जितने अच्छे गायक, उससे बड़े जानकार थे मुल्क के तमाम हिस्सों के देशज खाने के बारे में। उनका देशभर का जायके का सफर उतने ही चाव से देखा जाता था, जितनी गंभीरता से उनका न्यूज विश्लेषण। सबसे बड़ी बात, वे सबसे बेहतरीन इंसान थे। उनके मानवीय गुण बेमिसाल थे।
उनकी टीम में सारे सदस्य बराबर थे, चाहे वे किसी भी पद पर हों। नए नए लोगों को खोजकर उन्हें टीवी पत्रकारिता सिखाने का उनका हुनर बेजोड़ था। कितने लोग जानते हैं कि आज इंडिया टीवी के मालिक रजत शर्मा ने परख के साथ पंजाब से रिपोर्टिंग करते हुए टीवी पत्रकारिता का ककहरा सीखा था।
टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक दिलीप पडगांवकर और बादशाह सेन भी विनोद दुआ के टीवी स्कूल में रहे थे। मैंने स्वयं उनसे बहुत सी नई बातें सीखी। मेरे साथी विजय त्रिवेदी, डॉक्टर मुकेश कुमार, लोकप्रिय एंकर संदीप चौधरी से लेकर उनसे टीवी पत्रकारिता समझने वालों की एक लंबी सूची है।
अफसोस! हालिया दौर में विनोद दुआ को अपनी स्वस्थ्य पत्रकारिता और सरोकारों पर डटे रहने के लिए परेशान किया गया। हालांकि इसका उन पर कोई खास असर नहीं पड़ा। वे अपने अंदाज में बेखौफ पत्रकारिता करते रहे। अलबत्ता उन्हें झटका जरूर लगा था। अक्सर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हमारी शाम को महफिल जम जाती थी और वे तब खेद प्रकट करते थे कि एक जमाने में राजनीति दूरदर्शन जैसे सरकारी मंच से निष्पक्ष पत्रकारिता करने का अवसर प्रदान करती थी और आज दूरदर्शन किस तरह व्यवहार कर रहा है। एक नवोदित चैनल ने उनके साथ धोखा किया था। शो के लिए तय राशि नहीं दी। यह राशि लगभग पैंतालीस लाख थी।
वे खिन्न थे। मुझसे फोन पर बोले, मेरा पैसा तो मैं निकाल कर रहूंगा।
मेरे घर के सारे सदस्य उनके साथ वैसे ही जुड़े थे, जैसे एक पारिवारिक सदस्य होता है। मेरी मां और पत्नी से उनकी एकदम घरेलू बातचीत होती थी। जब मेरे घर दो जुड़वां बेटे आए तो उनका नाम विनोद जी ने मेघ-मल्हार रखा था। चूंकि मेरी बेटी का नाम मेघना है इसलिए अब भी लाड़ में उन्हें मेघना, मेघ मल्हार कहते थे। बच्चों की अपनी बातचीत में विनोद अंकल भी एक विषय होते थे। एक बार मैनें उन्हें लोक कवि ईसुरी की जीवन दर्शन पर आधारित एक रचना गाकर सुनाई।
उनके अंतर्मन को छू गई। एक सप्ताह बाद रात साढ़े ग्यारह बजे उनका फोन आया। बोले, क्या कर रहे हैं? मैंने कहा सोने की तैयारी। बोले कुछ आवारागर्दी का मूड है। मैंने कहा ,क्यों नहीं ,वह तो टॉनिक है। उससे सेहत को कोई नुकसान नहीं होता। पंद्रह मिनट में ही वे मुझे लेने आ पहुंचे। बैठते ही उन्होंने कहा, उस दिन से ईसुरी की वह रचना मेरे दिमाग में छाई हुई है।
आज वही गाते हैं। फिर हम लोग समवेत वह रचना गाते रहे।
वह रचना थी - अब न होबी यार किसी के, जनम जनम खां सीके, यार करे की बड़ी बिबूचन, बिना यार के नीके.......ईसुरी की प्रेम केंद्रित फागें भी उन्हें बेहद पसंद थीं। हम लोग सारी रात करीब सुबह साढ़े चार बजे तक ईसुरी गाते रहे। बीच-बीच में बाबा बुल्ले शाह भी आ जाते थे तो शिव कुमार बटालवी भी।
मेरे लिए जो क्षति है ,वह तो है ही, सारी विश्व पत्रकार बिरादरी के लिए यह बड़ा आघात है। कुछ बरस पहले अमेरिका में था तो वॉशिंगटन में पाकिस्तान के एआरवाई चैनल के प्रमुख मोहसिन भाई अक्सर कहते थे-,
" राजेश भाई बंटवारे के बाद कुछ हीरे ऐसे हैं जो पाकिस्तान में भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने हिंदुस्तान में होंगे।
इनमें लता मंगेशकर ,जगजीत सिंह ,मोहम्मद रफी ,खुशवंत सिंह और विनोद दुआ। आपका एक विनोद दुआ सौ सौ पत्रकार के बराबर है। बाजू में खड़े नेपाल के पत्रकार रघु मैनाली ,अफगानिस्तान के पत्रकार इकराम सिंघवारी और बांग्लादेश के पत्रकार (मैं नाम भूल रहा हूं) ने तुरंत इसका समर्थन किया। उनका कहना था कि विनोद जी उनके देशों में भी बड़े आदर से याद किए जाते हैं।
अलविदा विनोद जी ! आपके साथ बिताया समय अनमोल है। आपकी पत्रकारिता का यह देश हमेशा ऋणी रहेगा।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है

Next Story