- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- स्मृति: 'मार्कंडेय...
कानपुर के माल रोड पर 'मार्कंडेय भवन' की इमारत को खोजना अब कठिन कवायद है। वे निशानात भी पूरी तरह धुंधला गए हैं, जिनके जरिये जाना जा सके कि बाबू मार्कंडेय दास के उस मकान का क्या हुआ, जिसमें उनकी पत्नी शरत कुमारी सिन्हा अपने विप्लवी हौसले से दोनों बेटों को मुक्ति-संग्राम का बड़ा योद्धा बना सकीं। कानपुर इस वीर मां को भी विस्मृत कर चुका है और उन बेटों को भी, जिन्होंने अपने रक्त से क्रांति की इबारत लिखकर इस शहर को इतिहास में जगह दी। इस मां के बेटे राजकुमार सिन्हा को काकोरी मामले में दस साल की सजा हुई थी और छोटे विजय कुमार सिन्हा को भी भगत सिंह वाले मुकदमे में काला पानी का हुक्म सुनाया जा चुका था। दोनों भाई अपनी-अपनी जेलों में भूख हड़ताल पर थे। यह जानकर एक युवा शिवकुमार मिश्र इस मां के पास पहुंचकर रोने लगे। मां ने डांटते हुए कहा, 'कैसा क्रांतिकारी है, जो रोता है? मेरी ओर देख। मैं दो बाघों की मां हूं। मेरे बेटे जेल में अनशन पर हैं। फिर भी मैं खुश हूं।' कभी देश के विप्लवियों का केंद्र और आश्रयस्थल रहे इस घर की, जो अब दफन हो चुका है, मिट्टी को स्पर्श करना मेरी ख्वाहिश था।
सोर्स: अमर उजाला