सम्पादकीय

धुएं में फिक्र

Gulabi
16 Nov 2020 8:34 AM GMT
धुएं में फिक्र
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एक बार फिर साबित गया कि जिन समस्याओं को नागरिक बोध के जरिए हल किया जा सकता है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। एक बार फिर साबित गया कि जिन समस्याओं को नागरिक बोध के जरिए हल किया जा सकता है, उनमें भी लोगों की अपेक्षित भागीदारी नहीं हो पाती। खासकर दिल्ली में दिवाली के बाद बढ़ा वायु प्रदूषण इसकी मिसाल है। दिवाली से बहुत पहले जब हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में पराली जलाने की वजह से दिल्ली की आबो-हवा चिंताजनक स्तर तक खराब हो गई, तो दिवाली पर पटाखे जलाने से पैदा होने वाली परेशानियों को लेकर आशंका जताई जाने लगी थी।

वायु प्रदूषण बढ़ने से कोरोना संक्रमण के फैलने की संभावना बढ़ गई। दिल्ली में संक्रमण के आंकड़े अचानक बढ़ने भी शुरू हो गए थे। इसलिए कई राज्यों ने दिवाली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। दिल्ली सरकार ने भी पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। फिर बार-बार लोगों से अपील की जा रही थी कि इस दिवाली पटाखे न फोड़ें, वरना खतरा और बढ़ सकता है। मगर लोगों ने उन अपीलों और चिंताओं की कोई फिक्र नहीं की। दिवाली के दिन दिल्ली में खूब पटाखे जलाए गए, जिसका नतीजा है कि ज्यादातर इलाकों की हवा में 2.5 कणों की मौजूदगी पांच सौ तक पहुंच गई। यह मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत खतरनाक स्तर माना जाता है।

दिल्ली को दूसरे शहरों की अपेक्षा अधिक पढ़-लिखे, जागरूक और जिम्मेदार नागरिकों वाला शहर माना जाता है। मगर जब यहां लोगों में अपनी और दूसरों की सेहत की परवाह नहीं दिखाई देती, तो दूसरे छोटे और अपेक्षया पिछड़े शहरों की क्या बात की जाए। दिवाली खुशियों का त्योहार है। इस दिन लोग आपस में मिलते-जुलते, उपहार और खुशियां बांटते तथा एक-दूसरे की खुशहाली की कामना करते हैं।

इस दिन पटाखे जलाना धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा नहीं। इस दिन तो दीये जला कर अंधेरा मिटाने और जीवन में प्रकाश भरने का संदेश दिया जाता है। पर लोग शायद भूल जाते हैं कि जब उनके किसी किए से दूसरों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है, तो वह उत्सव भला खुशहाली कैसे ला पाएगा। हजारों लोग सासं की तकलीफ से जूझ रहे हैं, हजारों कोरोना संक्रमित हैं, जिन्हें सांस की तकलीफ से गुजरना पड़ रहा है। बहुत सारे लोग दिल के मरीज हैं। जब तेज आवाज और धुंआ उगलने वाले पटाखे जलाए जाते हैं, तो उनसे ध्वनि और वायु का प्रदूषण कितना बढ़ जाता है, लोगों को इस तथ्य से अनजान नहीं माना जा सकता। फिर भी अपनी क्षणिक खुशियों के लिए वे फिक्र को धुंए में उड़ा दें, तो यह जिम्मेदार नागरिकों की पहचान नहीं कही जा सकती।

दरअसल, अब यह प्रवृत्ति जैसे जड़ जमाती गई है कि हर समस्या का दोष सरकारों पर मढ़ कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया जाए। दिल्ली में सालों से डेंगू, चिकनगुनिया आदि जैसी बीमारियां इसलिए बड़ी समस्या का रूप धारण कर लेती रही हैं कि तमाम अपीलों के बावजूद लोग जगह-जगह कूड़े के ढेर जमा करने से बाज नहीं आते। जिस वक्त शहर की आबो-हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है, उस समय भी लोग कूड़ा जलाना बंद नहीं करते।

दिवाली पर पटाखे जलाने की वजह से हर साल वायु प्रदूषण अचानक खतरनाक स्तर को पार कर जाता है। इसके चलते हर साल हजारों नए लोग सांस के मरीज बन जाते हैं। यह सब जानते-बूझते भी लोगों ने दिवाली पर पटाखे जलाए, तो यह उनके गैर-जिम्मेदार नागरिक होने की ही गवाही हैदिल्ली को दूसरे शहरों की अपेक्षा अधिक पढ़-लिखे, जागरूक और जिम्मेदार नागरिकों वाला शहर माना जाता है। मगर जब यहां लोगों में अपनी और दूसरों की सेहत की परवाह नहीं दिखाई देती, तो दूसरे छोटे और अपेक्षया पिछड़े शहरों की क्या बात की जाए। दिवाली खुशियों का त्योहार है। इस दिन लोग आपस में मिलते-जुलते, उपहार और खुशियां बांटते तथा एक-दूसरे की खुशहाली की कामना करते हैं।

इस दिन पटाखे जलाना धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा नहीं। इस दिन तो दीये जला कर अंधेरा मिटाने और जीवन में प्रकाश भरने का संदेश दिया जाता है। पर लोग शायद भूल जाते हैं कि जब उनके किसी किए से दूसरों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है, तो वह उत्सव भला खुशहाली कैसे ला पाएगा। हजारों लोग सासं की तकलीफ से जूझ रहे हैं, हजारों कोरोना संक्रमित हैं, जिन्हें सांस की तकलीफ से गुजरना पड़ रहा है। बहुत सारे लोग दिल के मरीज हैं। जब तेज आवाज और धुंआ उगलने वाले पटाखे जलाए जाते हैं, तो उनसे ध्वनि और वायु का प्रदूषण कितना बढ़ जाता है, लोगों को इस तथ्य से अनजान नहीं माना जा सकता। फिर भी अपनी क्षणिक खुशियों के लिए वे फिक्र को धुंए में उड़ा दें, तो यह जिम्मेदार नागरिकों की पहचान नहीं कही जा सकती।

दरअसल, अब यह प्रवृत्ति जैसे जड़ जमाती गई है कि हर समस्या का दोष सरकारों पर मढ़ कर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया जाए। दिल्ली में सालों से डेंगू, चिकनगुनिया आदि जैसी बीमारियां इसलिए बड़ी समस्या का रूप धारण कर लेती रही हैं कि तमाम अपीलों के बावजूद लोग जगह-जगह कूड़े के ढेर जमा करने से बाज नहीं आते। जिस वक्त शहर की आबो-हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता है, उस समय भी लोग कूड़ा जलाना बंद नहीं करते।

दिवाली पर पटाखे जलाने की वजह से हर साल वायु प्रदूषण अचानक खतरनाक स्तर को पार कर जाता है। इसके चलते हर साल हजारों नए लोग सांस के मरीज बन जाते हैं। यह सब जानते-बूझते भी लोगों ने दिवाली पर पटाखे जलाए, तो यह उनके गैर-जिम्मेदार नागरिक होने की ही गवाही है

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