सम्पादकीय

'छोटे सपने' गर्मियों के खेलों को बड़ा बनाएंगे! इसलिए बच्चों से कहिए वे अपने खेल खुद खोजें

Gulabi Jagat
9 May 2022 8:38 AM GMT
छोटे सपने गर्मियों के खेलों को बड़ा बनाएंगे! इसलिए बच्चों से कहिए वे अपने खेल खुद खोजें
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ओपिनियन
एन. रघुरामन का कॉलम:
वे सेल्फ़ी ले रहे थे। दस बच्चे 'ईईईईईई' कह रहे थे और सेल्फ़ी खींच रहे ग्यारहवें लड़के ने अपने बायें हाथ से, बायीं जांघ पर एक रिमोट को मारते हुए सेल्फ़ी क्लिक की। मैंने ऐसा मोबाइल फ़ोन और उसका ऐसा रिमोट पहले कभी नहीं देखा था क्योंकि दोनों बराबर आकार के थे। जब उसने जांघ पर रिमोट मारा तो बाकी बच्चों ने तालियां बजाईं। फिर सेल्फ़ी खींच रहे लड़के ने मोबाइल फेंककर, वहीं पड़ा एक हरा नारियल उठाया और दौड़कर उस तथाकथित मैदान के बीच में जाकर रख दिया।
'ईईईईईई' कहने वाले बाकी बच्चे विपरीत दिशा में दौड़े और निश्चित जगह के बाहर खड़े हो गए। तभी नारियल पकड़े लड़के ने मुंह में दो उंगलियां डालकर सीटी बजाई और बाकी बच्चे नारियल की तरफ दौड़े। सभी नारियल पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। उनमें से एक तो लंबी छलांग लगाकर नारियल पर ही गिर पड़ा। फिर नारियल उठाकर एक ओर बने गोल पोस्ट की तरफ दौड़ा।
चार बच्चे उसे किले की दीवार की तरह कवर करने लगे। बाकी पांच इस दीवार को तोड़ने की कोशिश करने लगे और नारियल छीनने लगे। उन्हें सफलता मिली भी। अब दूसरी टीम के बाकी चार बच्चे, उस बच्चे के लिए दीवार बन गए, जिसने सफलतापूर्वक नारियल छीना था। वे अब दौड़ते हुए दूसरी ओर बने गोल पोस्ट की तरफ जा रहे थे। किसी एक टीम के गोल तक पहुंचने से पहले नारियल दोनों टीमों के बीच लगभग 5-6 बार घूमा।
फिर से जश्न मनाया गया और पहले की ही तरह सेल्फी खींची गई। मैं पहले ही अपनी कार खड़ी कर यह मैच देख रहा था। इसलिए नहीं कि मैं रग्बी के इस भारतीय स्वरूप को जानता था, बल्कि इसलिए कि मुझे इसका सेल्फ़ी वाला हिस्सा समझ नहीं आया। चूंकि उनमें से किसी को परवाह नहीं थी कि मोबाइल ग्राउंड पर कहां पड़ा हुआ है, इसलिए मेरी जिज्ञासा और बढ़ी। दूसरी सेल्फ़ी के दौरान मैं मोबाइल और रिमोट को ध्यान से देख पाया।
मैं शर्त लगा सकता हूं कि आपमें से किसी ने मोबाइल-रिमोट की ऐसी जोड़ी नहीं देखी होगी। एपल के सीईओ टिम कुक ने भी ऐसा फ़ोन नहीं देखा होगा। सिर्फ भारतीय ही ऐसा फ़ोन खोज सकते हैं। उन बच्चों में शायद कई ने मोबाइल फ़ोन कभी हाथ में भी नहीं पकड़ा होगा। बच्चों के अनोखे मोबाइल की कीमत 40 रुपए से ज़्यादा नहीं थी। जी हां, इतना सस्ता! दरअसल मोबाइल फ़ोन लाल रंग की रबर स्लिपर (चप्पल) थी।
इसी की जोड़ीदार दूसरी चप्पल रिमोट थी, जिसे जांघ पर मारकर बच्चे ने क्लिक की आवाज निकाली थी। सेल्फ़ी वह लड़का ले रहा था जो नारियल को गोल पोस्ट तक ले गया था। इसका मलतब था कि उसे विजेता घोषित किया गया है और वह अगले गेम में रैफ़री बनेगा। हरा नारियल अंदर से खाली थी। ये बच्चे रोज़ाना दो घंटे यह खेल खेलते हैं।
मैंने उनसे गेम का नाम पूछा तो वे एक साथ बोले, 'ड्रीम स्मॉल ड्रीम 11।' (छोटा सपने देखने वाली ड्रीम 11 टीम) लंबे समय बाद मैंने अनजान बच्चों को किसी खेल की खोज करते देखा। ऐसे खेल गरीब बच्चों को समस्या और संघर्ष सुलझाने तथा संसाधनों का प्रबंधन करने के सबक सिखाते हैं। यह 1950 के दशक तक हमारी संस्कृति थी, जो क्रिकेट के कारण धीरे-धीरे खो गई।
फंडा यह है कि अगर आप अपने बच्चों के लिए गर्मी के खेल मजेदार बनाना चाहते हैं तो उनसे कहें कि वे अपने खेल खुद खोजें। भले ही खेल छोटे हों क्योंकि छोटे सपने भी बड़े सपने बन सकते हैं!
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

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