सम्पादकीय

छोटे प्रशासनिक गठबंधन

Rani Sahu
17 Jun 2022 7:14 PM GMT
छोटे प्रशासनिक गठबंधन
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सुशासन की बगिया में फूल खिलाने और तोड़ने के अंतर को अगर तमाम राज्यों के सचिवालय समझ जाएं

सुशासन की बगिया में फूल खिलाने और तोड़ने के अंतर को अगर तमाम राज्यों के सचिवालय समझ जाएं, तो धर्मशाला में मुख्यसचिवों की बैठक का आलम नेक हो जाएगा। मुख्यसचिवों के सम्मेलन में पुरानी फाइलों से नई चेतना निकालने की कोशिश व प्रशासनिक विकेंद्रीकरण की नई लहर खोजने की तमन्ना जाहिर हुई और जहां प्रधानमंत्री ने स्वयं उस नजरिए को प्रमुखता से पेश किया जो स्थानीय संभावनाओं को पुख्ता कर सकता है। इसमें 'वोकल फॉर लोकल' की दृष्टि से निकले उद्गार को अपनी बोली-भाषा और स्थानीय सरोकारों में अभिव्यक्त करना होगा। प्रशासनिक इकाइयों की निचली तह में नए सोच का सृजन अगर स्थानीय मिट्टी पर होता है, तो आत्मनिर्भरता के संकल्प परिपूर्ण होंगे। देश की एक बड़ी तस्वीर बनाते हुए हम भूल जाते हैं कि क्षेत्रीय तौर पर छोटे-छोटे प्रशासनिक गठबंधन होने चाहिएं। ये राज्यों के भीतर और पड़ोसी राज्यों के साथ मिलकर योजनाओं को परिमार्जित कर सकते हैं। खेत में फसलों का विविधिकरण न केवल परंपरागत खेती में सुधार लाएगा, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि को अंगीकार भी करेगा, लेकिन विश्लेषण तो कृषि और बागबानी विश्वविद्यालयों, कृषि विज्ञान केंद्रों और अनुसंधान केंद्रों में थक चुकी परिपाटी का होना चाहिए।

हम हिमाचल का ही संदर्भ लें, तो कभी हम मशरूम उत्पादन में तीस मार खां बन जाते हैं, तो कभी अंगोरा ऊन उत्पादक बन कर खड़े हो जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद हमारी तारीफ केे क्षण विद्रूप हो जाते हैं। हिमाचल में कृषि, बागबानी या ग्रामीण आर्थिकी में नवाचार केवल फर्ज अदायगी जैसा रहा है। शहद उत्पादन को ही लें, तो किसान जब पूरी शिद्दत से उत्पादन कर देता है तो संग्रहण व मार्केटिंग की खामियों के कारण अपनी कीमत वसूल नहीं कर पाता। इसके लिए विकास खंड के प्रशासनिक ढांचे में सारी क्रांतियां अभिलषित रहती हैं और कई खंड विकास अधिकारी इन्हें साबित करते हुए बाजार को नजदीक ले आते हैं, लेकिन ऐसे प्रदर्शन की सारी खूबियां अप्रत्याशित स्थानांतरण में धुल जाती हैं। प्रशासनिक मन में परिवर्तन लाने की कर्मठता व क्रांतिकारी उद्घोष जिस जमीन पर बोलते हैं, उसका विश्लेषण नहीं होता। किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के संदर्भों, कार्यप्रणाली और नवाचार का अध्याय उस समय बंद हो जाता है, जब उसकी असामयिक ट्रांसफर या दायित्व बदल जाता है। एक बीडीओ अगर अगले पल किसी शैक्षणिक संस्थान के परचम तले अपना दायित्व पूरा करने को विवश होगा, तो कार्यप्रणाली का स्पर्श बदल जाएगा। हिमाचल के संदर्भ में प्रशासनिक ढांचा और भी अप्रत्याशित दिखाई देता है।
यहां सीमित दायरों में प्रशासनिक परिधि इतनी संकीर्ण हो गई है कि बिना राजनीतिक हस्तक्षेप कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। कठिन और कठोर फैसलों की दरकार में प्रशासन को अगर एक इंच आगे बढ़ने की अनुमति नहीं मिलेगी, तो किसी तरह के नवाचार या क्रांतिकारी पहल करना नामुमकिन है। उदाहरण के लिए शिमला का माल रोड या कुछ अन्य क्षेत्र वाहन वर्जित घोषित हो सकते हैं, तो यही परिकल्पना प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों में क्यों सिर नहीं उठा पाती। अतिक्रमण के खिलाफ हिमाचल का बड़े से बड़ा प्रशासनिक अधिकारी तीर नहीं मार सकता। जहां जनता के बीच नागरिक, वर्ग बन कर खड़े हो जाएं वहां राजनीति के आगे प्रशासनिक मजबूरियां बढ़ जाती है। सबसे अहम होगा अगर योजनाओं की पुरानी फाइलों को जगा पाएं और यह तय हो जाए कि राज्य के किस क्षेत्र में क्या प्राथमिकता है। क्या हिमाचल का हर विभाग यह तय कर पाया है कि अगले 25 सालों में यह राज्य कहां खड़ा होना चाहिए। हमारे लिए विकास के नए आयाम जोड़ना आसान हो सकता है, लेकिन विकास का प्राशनिक प्रबंधन और प्रबंधन की राज्य स्तरीय तस्वीर बनाना आज भी कठिन है। अगर हम यह तय नहीं कर पा रहे कि प्रदेश के शहरीकरण की चुनौतियों का हल कैसे निकालें या प्रदेश के लिए पर्यटन का स्वरूप क्या होना चाहिए, तो कहीं हमारी योजनाओं और प्राथमिकताओं के खाके में प्रशासनिक स्वतंत्रता-मौलिकता खिन्न या अक्षम साबित हो रही है।

सोर्स- divyahimachal

Rani Sahu

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