सम्पादकीय

झुग्गियों ने किया देश व्यस्त

Rani Sahu
17 April 2022 7:21 PM GMT
झुग्गियों ने किया देश व्यस्त
x
कई बार सोचता हूं देश का सबसे बड़ा मसला है क्या

कई बार सोचता हूं देश का सबसे बड़ा मसला है क्या। जाहिर है यह अहम मसलों से अलग होगा और सब पर भारी पड़ने वाला ही होगा। ऐसे में स्वीकार करना होगा कि सबसे बड़ा मसला देश को हर वक्त व्यस्त रखने का है। देश की व्यस्तता और उत्पादकता में भारी अंतर है। किसान देश के लिए उत्पादकता बढ़ा कर भी देश को व्यस्त नहीं रख सकता, जबकि जो मुफ्त मेें अनाज बांट दे, वह यह कारनामा कर सकता है। मैं देखता हूं कि जो लोग बीपीएल सूची में शामिल होने की कुव्वत रखते हैं, वे पूरे देश को व्यस्त रख पाते हैं। बीपीएल परिवारों के कारण अब तो सरकारों से लेकर त्योहारों तक सारी व्यवस्था व्यस्त हो रही है। जो लोग सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण कर पाते हैं, उनके कारण ही कानून-व्यवस्था, कायदे-कानून और देश का पक्ष और विपक्ष व्यस्त हैं। जिस दिन से सरकारें मुफ्त में कुछ यूनिट बिजली बांटने की घोषणाएं कर रही हैं, उपभोक्ता इसी हिसाब में व्यस्त होकर यह नहीं सोच पा रहा कि उसके घर में कितने घंटे विद्युत आपूर्ति हो रही है। हम भारतीय दरअसल केवल व्यस्त होना ही जानते हैं। जरा नजर दौड़ाइए कि साल भर की रफ्तार से भी कहीं अधिक क्षण हमारी व्यस्तता के हैं।

अब तो हर नागरिक की व्यस्तता का प्रारूप तय है और यह भी मुकर्रर है कि किसे कब और कैसे व्यस्त किया जाए। हमारे लिए कोविड कोई महामारी नहीं थी, बल्कि हमने इसे व्यस्तता का कोविड बना दिया। हमारी व्यस्तता कोविड काल से आगे लांघ गई और पीछे रह गया कोरोना शरमा-शरमा के बेअसर मान लिया गया। जरा खुद सोचो कि जिन्होंने आज तक मास्क नहीं पहना, वे व्यस्तता के लिए कितना कुछ कर पाए। पुलिस की सारी सक्रियता केवल इसलिए रही, क्योंकि कोई बिना मास्क के चलता हुआ उसे व्यस्त रख पा रहा था। किसी भी शहर की व्यस्तता का अनुमान लगाना है तो वहां की झुग्गी-झोंपड़ी को जाकर देखें।
आमची मुंबई में सबसे बड़ी झोपड़ पट्टी इलाका धारावी न होता, तो क्या यह शहर इतना व्यस्त हो पाता। यह मानना पड़ेगा कि देश एक-एक झुग्गी का कृतज्ञ है और यह इसलिए भी क्योंकि इन्हीं बस्तियों ने देश की संसद को आजादी से आज तक व्यस्त रखा है। मेरी बस्ती के छोर पर खड़ी झुग्गियां पूरे मोहल्ले को व्यस्त रखती हैं। यहां मानव प्रजाति के बीच के द्वंद्व व्यस्त हैं, तो देश में समानता के अधिकार व्यस्त हैं। झुग्गियां एक तरह की व्यस्तता के पालने को सुरक्षित ्ररखती हैं। अब तो झुग्गी में रहने वाले को भी गुरूर है, क्योंकि देश उसके लिए व्यस्त है। देश की हर चुनावी बिसात केवल झुग्गी के बाहर बिछती है और वह हर सरकार को अपने एंेठ में चुनती है। देश अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन दे रहा है, तो यह मानना पड़ेगा कि झुग्गी के कारण राष्ट्र व्यस्त है। झुग्गी सलामत रहेगी तो देश चलता रहेगा और व्यस्त भी दिखेगा, वरना जो खुद चलने की कोशिश पहले करते रहे हैं, उन्हें आगे भी सिर्फ अपनी व्यस्तता से ही जीना है। अगर देश को व्यस्त रखना है, तो मध्यम वर्ग के भ्रम से नीचे सरक जाओ। पढ़ाई में पिछड़ जाओ। कमाई में सिफर हो जाओ, फिर देखना आपको देश कैसे ऊपर उठाते हुए व्यस्तता दिखाता है। व्यस्त भारत के दर्शन करने हैं, तो किसी महाकुंभ में बाबाओं को देखिए या राजनीतिक रैलियों में समर्थकों की अदाओं में देखिए। कभी भूले से भी आईने को मत पूछना, वरना वह बता देगा कि कभी देश उसके सामने आकर क्यों व्यस्त सा नहीं दिखाई देता।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story