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- धीरे-धीरे रे मना

लोकेंद्र सिंह कोट: धैर्य के बगैर जीवन में कुछ संभव नहीं है। कितनी ही प्रगति के सोपान पार कर लें, लेकिन धैर्य का जीवन में अपना स्थान है। बीज बोकर हम अगर उसे खोद कर रोज देखेंगे तो निश्चित रूप से कभी पेड़ या पौधे का जन्म नहीं हो सकेगा। उसके लिए धैर्य ही जरूरी है। धैर्य या सहनशीलता कठिन परिस्थितियों को सहने की क्षमता देता है। धैर्य में देरी की स्थिति में दृढ़ता शामिल हो सकती है।
अनादर, क्रोध में प्रतिक्रिया किए बिना उकसावे की सहनशीलता या तनाव में होने पर सहनशीलता, खासकर जब लंबी अवधि की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। धैर्य सहनशक्ति का वह स्तर है जो अनादर से पहले हो सकता है। एक अध्ययन, जिसमें इंटरनेट पर वीडियो देखने वाले लाखों उपयोगकर्ता शामिल थे, अनुसंधानकर्ता ने पाया कि वे अपने चुने हुए वीडियो के चलने की प्रतीक्षा करते हुए कम से कम दो सेकंड में धैर्य खो देते हैं।
अध्ययन से यह भी पता चलता है कि जो उपयोगकर्ता तेज गति से इंटरनेट से जुड़े हैं, वे धीमी गति से जुड़े अपने समकक्षों की तुलना में कम धैर्यवान हैं, जो गति की मानवीय अपेक्षा और मानव धैर्य के बीच एक कड़ी का प्रदर्शन करते हैं। धैर्य के इन और अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों ने कई सामाजिक टिप्पणीकारों को यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित किया है कि प्रौद्योगिकी की तीव्र गति मनुष्यों को कम और कम धैर्यवान होने के लिए प्रेरित कर रही है।
डिजिटल युग की आपाधापी ने परिवर्तनों का एक नया संसार रच दिया है। विभिन्न परिवर्तनों के चलते समय इस आधुनिक समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। 'घंटों का काम मिनटों में' वाली तर्ज अब सामाजिक सतह पर उभर आई है। इस आपाधापी और बौने होते समय में धैर्य की कमी ने सर्वाधिक प्रभावित करने वाला चक्रव्यूह निर्मित कर दिया है।
इन दिनों से अपेक्षाएं बहुत बढ़ गई हैं। हमेशा आशा की जाती है कि हर कोई तुरत-फुरत कुछ कर दिखाए। सारी सफलताएं वे कुछ समय में अर्जित कर लें। खासकर युवाओं के पालकों में यह वृत्ति आम हो चली है कि उनकी संतानें वह कर दिखाएं, जिन्हें वे कर नहीं पाए या कर भी पाए हैं, तो लंबे समय में। आज अधिकांश युवाओं में यह प्रवृत्ति देखी जाती है कि किसी काम को सीखने में या किसी परीक्षा की तैयारी करने में जितना समय लगाना चाहिए, उसका आधा समय भी वे उसमें नहीं लगाते हैं।
असफल होने वाले अधिकांश युवाओं में धैर्य का अभाव पाया जाता है। त्वरित पाने के लालच ने धैर्य को हाशिए पर ला दिया है और इसका सीधा परिणाम सड़क पर वाहन चलाने में परिलक्षित होता है। अनावश्यक हार्न और ट्रैफिक जाम लगने पर तुरंत छोटा रास्ता ढूंढना हमारे अधैर्य का परिचायक बन गए हैं। जल्दबाजी हमारे व्यवहार का हिस्सा बन गई है। कई बार तो यह भी पता नहीं होता कि हमारे अंदर जल्दबाजी किस बात की है। बगैर कारण की जल्दबाजी हमारे व्यवहार में क्रोध, अहंकार, तनाव को बढ़ाती है।
यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि युग में कितना ही परिवर्तन हो जाए, पर सफलता पाने के मूल मंत्र में कोई बदलाव नहीं आ सकता। धैर्य, मेहनत और लगन जैसे गुणों के बगैर सफलता अर्जित नहीं की जा सकती है। आज जो भी सफल हैं, श्रेष्ठ हैं उनके अंदर झांकने पर पता चलता है कि उनकी सफलता, श्रेष्ठता के पीछे कठोर परिश्रम, लगन और धैर्य ही रहा है। एक वैज्ञानिक से यह पूछा गया कि आपकी सफलता का क्या राज है, तो उन्होंने प्रत्युत्तर में कहा, 'मैं कई वर्षों तक लगातार सूर्योदय के पहले ही अपने कार्यालय पहुंच जाता था और किसी भी दिन अट्ठारह घंटे से कम कार्य नहीं करता था।' सफलता के लिए वास्तव में देखा जाए तो कोई छोटा रास्ता नहीं होता है।
फल प्राप्ति के लिए धैर्यपूर्वक पूरी तैयारी करने का नियम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होता है। हम वही प्राप्त कर सकते हैं, जिसके लिए हम निरंतर श्रम करते हैं। किसी विचारक ने ठीक ही लिखा है, 'कल हम क्या होंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम आज क्या हैं, और हम आज क्या हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कल हमने क्या किया था।'
एक विद्यार्थी हमेशा से कक्षा में औसत से कम था। उसने एक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की तथा वास्तव में एक सफल युवा के बराबर ही तैयारी की। मगर तीन प्रयासों के बाद भी असफल रहा। नौकरी न लगने से अवसाद स्वाभाविक था। उसने मन में यही धारणा बना ली थी कि बगैर 'पहुंच' के कुछ नहीं होता है। जबकि उसे यह ख्याल नहीं रहा कि वह सदैव से ही औसत से कम रहा है और उसे एक सफल व्यक्तित्व तक पहुंचने के लिए दो गुना मेहनत करनी होगी। हमारी शिक्षा व्यवस्था को भी लचीला बनना होगा।