- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- विकास की ढलान
x
पिछले कुछ सालों से सबसे ज्यादा इस बात का प्रचार जोर-शोर के साथ किया जाता रहा है 'कि भारत की अर्थव्यवस्था की भावी तस्वीर बेहद रोशन है और आने वाले समय में देश एक आर्थिक महाशक्ति बनने वाला है। निश्चित रूप से ऐसा भरोसा देश को विकास लक्ष्यों की ओर आगे कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन क्या जमीनी स्तर पर भी देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए विकास के उन पहलुओं पर ठोस काम करने की जरूरत समझी गई, जिनके बूते देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने में मदद मिलती? इसकी हकीकत समय-समय पर आने वाले उन अध्ययनों की रिपोर्टों में आती रही है, जिनमें विकास के वास्तविक पैमानों पर भारत को अभी बहुत कुछ करने की जरूरत बताई गई।
इसी कड़ी में आई 'भारत में पर्यावरण की स्थिति रिपोर्ट 2021' के मुताबिक सतत विकास लक्ष्यों की ताजा सूची में भारत को एक सौ सत्रहवें स्थान पर माना गया है, जबकि पिछली बार यह एक सौ पंद्रहवें पायदान पर था। महामारी की मार से पहले ही स्वास्थ्य, शिक्षा सहित आर्थिक मोर्चे पर बड़ी तबाही का सामना कर रहे देश के लिए यह बेहद अफसोसनाक स्थिति है।
गौरतलब है कि विकास अपने मकसद में जहां बढ़ते हुए क्रम में सुनिश्चित होना चाहिए, वहीं भारत की हालत यह है कि इसमें लगातार न केवल गिरावट दर्ज की जा रही है, बल्कि इस बार सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के मामले में यह नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका जैसे अपेक्षया कम विकसित देशों से भी नीचे चला गया है। सवाल है कि आखिर किन वजहों से देश की अर्थव्यवस्था और इसके सहायक तत्त्वों के रूप में बुनियादी ढांचे के विकास का पक्ष मजबूत होने के बजाय और कमजोर होता जा रहा है!
रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा मुख्य रूप से इसलिए हुआ है कि भुखमरी समाप्त करने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, लैंगिक समानता हासिल करने, समावेशी, सतत औद्योगीकरण और नवोन्मेष आदि को बढ़ावा देने की कसौटियों पर हमारा देश अभी भी बहुत पीछे है। 'सबका साथ, सबका विकास' जैसे आकर्षक नारे और अर्थव्यवस्था की चमकती तस्वीर के समांतर अगर कुपोषण और भुखमरी जैसी समस्या अपने व्यापक संदर्भों के साथ हमारे सामने मौजूद है, तो इसे कैसे देखा जाएगा? आखिर क्या वजह है कि विकास की सबसे बुनियादी शर्त के तौर पर समाज के सबसे कमजोर तबकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसे मामले में भी हमारा देश बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है?
दरअसल, सतत विकास लक्ष्यों के लिए औद्योगीकरण, नवोन्मेष, अवसंरचना, आर्थिक विकास, अच्छी शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छ जलवायु, ऊर्जा, जैव-विविधता जैसी अन्य जरूरी कसौटियों पर मजबूती तभी संभव हो सकती है, जब भुखमरी, खाद्य सुरक्षा, पीने का साफ पानी, रोजगार आदि बुनियादी जरूरतों से जुड़ी समस्याओं को खत्म कर दिया जाए।
लेकिन आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने के साथ क्या विकास के संतुलन को ध्यान में रख कर वैसे कदम उठाए जाते हैं, जिससे समाज के धनी और गरीब तबकों के बीच असमानता की खाई को पाटा जा सके? सन् 2015 में दुनिया के एक सौ तिरानबे देशों ने सतत विकास लक्ष्यों के लिए 2030 के एजेंडे को स्वीकार किया था, जो लोगों और पृथ्वी के भविष्य के लिए शांति और समृद्धि की रूपरेखा मुहैया कराता है। लेकिन पिछले कई सालों से लगातार ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि देश की ज्यादातर संपत्ति महज कुछ धनी लोगों के हाथ में केंद्रित होती गई है। खुद भारत में जहां केरल, हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्य बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं, वहीं बिहार और झारखंड जैसे राज्यों की हालत बेहद दयनीय है। ऐसे असमान विकास में सतत विकास लक्ष्यों की अन्य कसौटियों को पूरा कर पाना कैसे संभव हो सकेगा?
Subhi
Next Story