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- शिक्षक को चांटा!
किसी भी वस्तु, व्यक्ति या व्यवस्था पर नियंत्रण या कंट्रोल न होने के कारण घटना या दुर्घटना होती है। फिर चाहे वह नियंत्रण व्यक्तियों, संस्थानों, समाजों, प्रशासनिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था या वित्तीय व्यवस्था पर हो। अनियंत्रित व्यवस्था तथा लचर प्रणाली से असफलता ही प्राप्त होती है। मूल रूप से शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थी का कार्य पढ़ना तथा ज्ञान ग्रहण करना होता है, वहीं पर शिक्षकों का कर्त्तव्य शिक्षण-प्रशिक्षण के माध्यम से विद्यार्थियों के पोषण से संबंधित है। शिक्षक तथा विद्यार्थी का यह संबंध प्रेम तथा मान-सम्मान, नैतिक जि़म्मेदारी एवं आपसी विश्वास पर आधारित है। जहां गुरुकुल शिक्षण पद्धति में नियम बहुत कठोर होते थे, वहीं पर बीसवीं शताब्दी के अंत तक भी शिक्षकों का अनुशासन के नियमों के अंतर्गत विद्यार्थियों पर नियंत्रण रहता था। विद्यार्थियों को गुरु या शिक्षक के दिशा-निर्देश एवं आदेशानुसार शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य करना पड़ता था। शिक्षक का आदेश सर्वोपरि होता था तथा शिक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्था शिक्षक पर कोई प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं करती थी। जहां व्यक्तियों, परिवारों, समाजों तथा व्यवस्थाओं में नियंत्रण समाप्त हो जाता है, वहीं पर अव्यवस्था एवं अनुशासनहीनता जन्म लेती है। संस्थाओं को नियंत्रण करने के लिए तथा उनके उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नियम निर्धारित होते हैं। नीति संहिता में नियमों का पालन करना सभी के लिए आवश्यक होता है। जब हम नियमानुसार कार्य नहीं करते तो अनियंत्रित व्यवस्था के कारण इस प्रकार की दुर्घटनाएं संभव होती हैं।