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- एक देश दो विधान वाले...
क्या देश में दो विधान हैं? एक हिंदुओं के लिए और दूसरा बाकी पंथों को मानने वालों के लिए? यह सवाल देश की बहुसंख्यक आबादी के मन में बार बार उठता है। यह धारणा किसी नेता के कहने से नहीं अदालतों और सरकारों के समय-समय पर किए गए निर्णयों और कामों से बनती है। नेता उसके बाद आते हैं। ताजा संदर्भ देश की सर्वोच्च अदालत के रवैये का है। उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा पर एक रुख और केरल में बकरीद पर बाजार खोलने के केरल सरकार के फैसले को लेकर दूसरा रुख। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। कोरोना महामारी का खतरा अभी टला नहीं है। अब तीसरी लहर की आशंका बढ़ती जा रही है। ऐसे में सरकार और अदालतें इस बात की चिंता करें कि ज्यादा लोग कहीं इकट्ठा न हों और कोविड प्रोटोकाल का पालन करें तो इसका स्वागत होना चाहिए। इसीलिए जब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में हर साल सावन में होने वाली कांवड़ यात्रा की खबरों का स्वत: संज्ञान लिया तो अच्छा लगा कि शायद राज्य सरकार जो खतरा नहीं देख पा रही, वह अदालत ने देख लिया। कांवड़ यात्रा 25 जुलाई से शुरू होने वाली थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह चुके थे कि पूरे कोविड प्रोटोकाल के तहत यात्रा सीमित दायरे में होगी, पर सुप्रीम कोर्ट ने दस दिन पहले ही सरकार से कहा कि पुनॢवचार कीजिए नहीं तो हम रोक देंगे। कांवड़ यात्रा रुक गई। फिर केरल सरकार ने घोषणा की कि बकरीद के लिए लोग खरीदारी कर सकें, इसलिए 18 से 20 जुलाई तक दुकानें खुलेंगी। यह एकपक्षीय न लगे, इसलिए यह भी कहा कि इस बीच हिंदू सबरीमाला मंदिर जा सकते हैं।