सम्पादकीय

सिंधुताई सपकाल : हजारों बेसहारों की माई का जाना

Gulabi
7 Jan 2022 4:42 AM GMT
सिंधुताई सपकाल : हजारों बेसहारों की माई का जाना
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प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकाल का मंगलवार को 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया
प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकाल का मंगलवार को 74 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें महाराष्ट्र की 'मदर टेरेसा' कहा जाता है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजारी। ताई का जन्म उस दौर में हुआ, जब लड़की का पैदा होना, वह भी एक गरीब के घर, किसी अभिशाप से कम नहीं माना जाता था। उन्हें भी एक अनचाहा अभिशाप माना गया, इसीलिए उनका नाम रखा गया, 'चिंदी' (मतलब एक फटे हुए कपड़े का टुकड़ा)।
घर के हालात कुछ ऐसे थे कि चिंदी को भैंस चराने जाना पड़ता। इसी काम से कुछ वक्त निकालकर वह स्कूल जाने लगीं। पढ़ने में उनका बड़ा मन लगता था। किसी तरह उन्होंने चौथी पास की। पारिवारिक रूढ़िवादी विचारों के कारण आगे की पढ़ाई बंद हो गई। जब वह 10 साल की हुईं, तब उनकी शादी 30 वर्षीय 'श्रीहरी सपकाल' से हुई। 20 साल की उम्र में वह एक बच्ची की मां बन गईं। लेकिन एक घटना ने उनके जीवन को बदल दिया।
एक दिन सिंधुताई ने गांववालों को उनकी मजदूरी के पैसे न देनेवाले गांव के मुखिया की शिकायत जिलाधिकारी से कर दी। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखिया ने सिंधुताई के पति श्रीहरी को उन्हें घर से बाहर निकालने के लिए दबाव डाला और बाध्य किया। उस समय वह नौ महीने से गर्भवती थीं। उसी रात उन्होंने तबेले में (गाय-भैंसों के रहने की जगह) एक बेटी को जन्म दिया। फिर पिता के देहांत के कारण मां ने भी उन्हें अस्वीकार कर दिया।
भटकती हुई मजबूरी में अपनी बेटी के साथ वह रेलवे स्टेशन पर रहने लगीं। वह पेट भरने के लिए भीख मांगतीं और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने के लिए श्मशान में रहतीं। इस संघर्षमयी काल में सिंधुताई अपने और अपनी बच्ची की भूख मिटाने के लिए ट्रेन में गा-गाकर भीख मांगने लगीं। जल्द ही उन्होंने देखा कि स्टेशन पर और भी कई बेसहारा बच्चे हैं, जिनका कोई नहीं है। सिंधुताई अब उनकी भी माई बन गईं।
उन्होंने 1,400 से अधिक अनाथ बच्चों को गोद लिया। ये सभी बच्चे उन्हें माई कहकर बुलाते थे। उनके इस परिवार में आज 207 दामाद और 36 बहूएं और 1,000 से भी ज्यादा पोते-पोतियां हैं। उनकी खुद की बेटी वकील है और उनके गोद लिए बहुत सारे बच्चे आज डॉक्टर, अभियंता और वकील हैं और उनमें से बहुत सारे खुद का अनाथाश्रम भी चलाते हैं। उनके अनाथाश्रम पुणे, वर्धा, सासवड (महाराष्ट्र) में स्थित हैं। उनकी बेटी भी एक अनाथालय चलाती हैं।
राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समेत करीब 172 अवॉर्ड पा चुकीं ताई कहती थीं कि मांगकर यदि इतने बच्चों का लालन-पालन हो सकता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं। समाज सेवा जैसे भारी शब्द भी सिंधुताई के आगे पानी भरते नजर आने लगते हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें याद करते हुए कहा, 'डॉ. सिंधुताई सपकाल का जीवन साहस, समर्पण और सेवा की एक प्रेरक गाथा है। उन्होंने अनाथ और बेसहारा बच्चों, आदिवासियों और हाशिये की जिंदगी जीने वालों को प्रेम किया और उनकी सेवा की।' पिछले साल पद्मश्री से अलंकृत सिंधुताई सचमुच करोड़ों लोगों के लिए एक मिसाल थीं और रहेंगी।
अमर उजाला
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