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- सादा जीवन, उच्च विचार...
वे मेरे पास 'सादा जीवन-उच्च विचार' की लंगोटी लेकर आए और बोले-'शर्मा तुम इसे पहन लो, अब यह मेरे कोई काम नहीं आ रही। बच्चे कहते हैं, इस युग में यह अपने घर में अच्छी नहीं लगती। तुम तो खुद सिद्धांतवादी हो, इसे पहन लोगे तो पक्के उसूलवादी बन जाओगे। मेरे यहां तो यह बीस वर्षों से खूंटी पर टंगी गंदी हो गई है। किसी बढि़या डिटर्जेंट से धोकर पहन लेना, सच्चे आदर्शवादी बन जाओगे।' मैंने कहा-'श्यामलाल जी, कोठी, बंगला, कार और नौकर-चाकर वाले हो गए तो तुम्हारे लिए यह सादा जीवन-उच्च विचार की लंगोटी अप्रासंगिक हो गई। मैं आपकी इस लंगोटी का क्या करूंगा। मैंने तो ऑलरेडी पहले से ही पहन रखी है और इसी से मेरा जीवनयापन हो रहा है, वरना पांच-सात हजार के वेतन से मेरे बंटता क्या है? उसूलों से और सादगी से रहता हूं तो गुजारा हो जाता है वरना भूखों मरने की नौबत है।' श्यामलाल जी जिद पर अड़े थे, बोले-'तुम एक और लंगोटी पहन लो, गुजारा और आसान हो जाएगा, मैं इसे फेंक भी नहीं सकता।