सम्पादकीय

सिक्किम का जैविक खेती मॉडल अनुकरणीय

Rani Sahu
29 Aug 2022 6:57 PM GMT
सिक्किम का जैविक खेती मॉडल अनुकरणीय
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हिमाचल की तरह देश के सुदूर पूर्वी भाग में बसा पहाड़ी प्रदेश सिक्किम आज अपनी जैविक खेती के लिए विश्वभर में डंका बजा रहा है। अभी हॉल में ही विश्व के 59 नामांकित देशों को हराकर सिक्किम ने अंतरराष्ट्रीय खाद्य एवं कृषि संगठन, वल्र्ड फ्यूचर काउंसिल एवं आईफोम आर्गेनिक्स यूरोप द्वारा सांझे तौर पर दिया जाने वाला फ्यूचर पॉलिसी अवार्ड प्राप्त किया है। इस पुरस्कार तक पहुंचने की यात्रा सिक्किम सरकार द्वारा 2003 में शुरू की गई थी। इस मॉडल की खास बात यह है कि सिक्किम सरकार द्वारा सर्वप्रथम 396 गांव जैविक गांव बनाने संबंधित पायलट प्रोजैक्ट शुरू किया गया जिसमें क्रमानुसार धीरे-धीरे रासायनिक खेती को जैविक खेती में रूपांतरित किया गया।
सर्वप्रथम गांव के लोगों को जैविक खाद बनाने की ट्रेनिंग दी गई। गांवों में सरकार द्वारा केंचुआ खाद बनाने की नि:शुल्क किट भी बांटी गई ताकि जैविक खाद की उपलब्धता को गांव में सुनिश्चित किया जा सके। इसके साथ-साथ सरकार द्वारा खाद के प्रयोग पर दी जाने वाली सबसिडी को धीरे-धीरे खत्म कर दिया गया और पूरे तरीके से रासायनिक खाद के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी गई। सरकार द्वारा अपनी इस नीति को सख्ती से लागू करने के लिए तीन महीने की सजा या तीन लाख का जुर्माना भी रखा गया है। सिक्किम राज्य 15 मई 1975 को देश का 22वां राज्य बना। इस राज्य की अर्थव्यवस्था भी हिमाचल की अर्थव्यवस्था की तरह कृषि, पर्यटन एवं जल विद्युत परियोजनाओं पर निर्भर करती है। इस छोटे से प्रदेश की सरकार की वचनबद्धता के कारण आज यहां कृषि 100 प्रतिशत जैविक बन चुकी है। सिक्किम आर्गेनिक ब्रांड ने देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपना डंका बजा रखा है।
इसके मुख्य कारण सरकार की निर्णायक नीतियां, उन नीतियों को लागू करने के लिए हर कदम पर सरकार का सहयोग, लोगों की इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सहभागिता को बढ़ाना और सबसे मुख्य बिंदु जैविक खेती संबंधित जागरूकता कार्यक्रम को राज्य के स्कूल व कॉलेजों में अनिवार्य तौर पर लागू किया जाना है। क्योंकि किसी भी नीति के घर तक प्रचार-प्रसार के लिए वहां के युवाओं को जागरूक करना बहुत जरूरी होता है। सिक्किम सरकार इस मुहिम में अपने स्पष्ट उद्देश्य एवं सटीक योजनागत तरीके से नीति के क्रियान्वयन के कारण सफल रही। सरकार ने 2016 में ही स्वयं को 100 प्रतिशत जैविक राज्य घोषित कर दिया। सबसे सुखद बात यह है कि राज्य के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग हज़ारों किसानों को जैविक खेती से फायदा हुआ। प्रदेश में स्वच्छ वातावरण के साथ-साथ साफ, शुद्ध रासायनिक खाद से आज़ाद भोजन की उपलब्धता के कारण वहां के पर्यटन उद्योग में भी काफी इज़ाफा हुआ है। सिक्किम राज्य के जैविक खेती मॉडल को देखने के लिए देश-विदेशों से लाखों सैलानी हर वर्ष वहां पहुंच रहे हैं। अगर जैविक खेती की स्थिति की हिमाचल में बात करें तो वो अभी शुरुआती दौर में हैं।
इस प्रदेश की अर्थव्यवस्था व भौगोलिक स्थिति सिक्किम राज्य के समानांतर ही है। लेकिन इस पहलू पर राज्य की विभिन्न सरकारों द्वारा ध्यान नहीं दिया गया। बेशक वर्तमान की सत्तासीन भाजपा सरकार द्वारा 2019 में प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना शुरू की गई है, जिसके तहत किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण देकर इसे अपनाने पर बल दिया जा रहा है। लेकिन समझने की बात यह है कि इस तरीके की नीतियां तभी सफल होती हैं जब सरकार योजना बनाने से लेकर नीतियों के धरातल तक क्रियान्वयन होने तक, हर पहलू एवं प्रत्येक कदम में शामिल हो, जैसा कि सिक्किम सरकार द्वारा किया गया। किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण देने के साथ-साथ शुरुआती दौर में होने वाली हानि की भरपाई, गांव-गांव में फार्मिंग लैबोरेटरी, नाशीजीवों के नियंत्रण संबंधित तकनीक की उपलब्धता एवं खेती संबंधित पोषक तत्त्वों के प्रबंधन को सरकार को उनके आसपास सुनिश्चित करना चाहिए। क्योंकि जैविक खेती को अपनाने के समय सबसे बड़ी परेशानी गांव में इसके प्रशिक्षण की होती है।
जैसा कि अभी हाल में ही श्रीलंका में हुआ। उस देश की सरकार द्वारा जल्दबाजी में अपने संपूर्ण खेती मॉडल को जैविक खेती में बदल देने का निर्णय लिया गया जिसके कारण उनके खेती उत्पादन में गिरावट आ गई। यह निर्णय भी उस देश को आर्थिक संकट में धकेलने वाले मुख्य कारणों में से एक था। बस समझने की बात यह है कि प्रदेश सरकार कदम-दर-कदम जैविक खेती को अपनाकर, सिक्किम जैविक खेती मॉडल को प्रदेश के लाखों किसानों तक पहुंचाए। इसके लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति, जन सहभागिता और धरातल पर प्रशिक्षण व अनुसंधान की जरूरत है। प्रदेश की सरकारों द्वारा समय-समय पर किसी क्षेत्र में कई तकनीकों को समझने के लिए विदेशों में अधिकारियों का दल भेजा जाता है। आशा की जानी चाहिए कि जल्द ही सिक्किम जैविक खेती के मॉडल को समझने के लिए प्रदेश के अधिकारी वहां जाएंगे। व्यापक अध्ययन के बाद अगर इस मॉडल को अपनाया जाए, तो सफलता मिलना तय है।
निधि शर्मा
लेखिका बिलासपुर से हैं

By: divyahimachal

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