सम्पादकीय

कश्मीर में सिखों और हिंदुओं पर फिर पलायन का खतरा

Tara Tandi
11 Oct 2021 4:31 AM GMT
कश्मीर में सिखों और हिंदुओं पर फिर पलायन का खतरा
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क्योंकि कश्मीर में रह रहे सिखों और हिंदुओं के नए सिरे से पलायन का खतरा पैदा हो गया है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| तिलकराज ।कश्मीर में बचे खुचे अल्पसंख्यकों को चुन चुनकर निशाना बनाए जाने की हाल की घटनाओं के बाद आतंकियों, उनके समर्थकों और अन्य संदिग्ध तत्वों की धरपकड़ आवश्यक ही है, लेकिन इसके साथ यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वैसी घटनाएं फिर न होने पाएं जैसी पिछले कुछ दिनों श्रीनगर में हुई हैं। यह इसलिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए, क्योंकि कश्मीर में रह रहे सिखों और हिंदुओं के नए सिरे से पलायन का खतरा पैदा हो गया है। इस खतरे का सामना हर हाल में किया जाना चाहिए।

यह शुभ संकेत नहीं कि अन्य राज्यों के कामगार कश्मीर छोड़ने को मजबूर दिख रहे हैं। इन कामगारों के साथ वहां रह रहे हिंदुओं और सिखों को केवल पर्याप्त सुरक्षा देने की ही जरूरत नहीं, बल्कि एक ऐसा माहौल बनाने की भी आवश्यकता है जिसमें वे स्वयं को सुरक्षित महसूस करें। ऐसा माहौल बनाने में सफलता तभी मिलेगी जब आतंकियों को कुचलने के अभियान को आगे बढ़ाने के साथ आम कश्मीरी समाज और विशेष रूप से वहां का मुस्लिम समाज अपनी सक्रियता दिखाएगा। उसे यह सक्रियता इसलिए दिखानी होगी, क्योंकि हिंदुओं और सिखों की हत्या से कश्मीरियत कलंकित हो रही है। ऐसे सवाल उठ रहे हैं कि क्या कश्मीरियत में हिंदुओं और सिखों के लिए कोई स्थान नहीं। कश्मीरी समाज इस सवाल से मुंह नहीं मोड़ सकता।
यदि कश्मीर से किसी भी हिंदू-सिख का पलायन होता है तो इससे यही साबित होगा कि कश्मीरियत एक छलावा ही है। श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल के सिख और हिंदू शिक्षक की हत्या के बाद जिस तरह बड़ी संख्या में आतंकियों के मददगार, प्रतिबंधित संगठनों के सदस्य और पत्थरबाज गिरफ्तार किए गए हैं उससे यही पता चलता है कि घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद को खाद पानी देने वाले अभी भी सक्रिय हैं। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि ऐसे तत्वों को शह देने का काम कई नेता भी कर रहे हैं। इन पर भी लगाम कसनी होगी। इसके अलावा पाकिस्तान से होने वाली आतंकियों की घुसपैठ को भी रोकना होगा।
वास्तव में यह सब करने से ही आतंक की विषबेल को जड़ से उखाड़ फेंकने में सफलता मिलेगी। कश्मीर के अल्पसंख्यकों को शेष देश से भी यह संदेश जाना आवश्यक है कि पूरा भारत उनके साथ है। यह संदेश सही तरीके से उन तक पहुंचे, इसके लिए यह जरूरी है कि सभी राजनीतिक दल आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता का वास्तव में प्रदर्शन करें। यह ठीक नहीं कि कश्मीर की घटनाओं को लेकर कई राजनीतिक दल केंद्र सरकार की नीतियों को तो कोसने के लिए आगे आ गए, लेकिन उन्होंने आतंकियों और उनके खुले छिपे समर्थकों के खिलाफ कठोर भाषा का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं समझी।


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